Monday 22 December 2014

शिवलिंगेऽपि सर्वेषां देवानां पूजनं भवेत ! सर्वलोकमये यस्याः शिवशक्तिः विभुः प्रभुः ! 
अर्थात - शिवलिंग में ही सभी देवताओं का पूजन करना चाहिए, क्योंकि सभी लोकों 
एवं ईश्वरों के स्वामी शिव माँ शक्ति के साथ शिवलिंग में ही विराजमान रहते हैं ! 
श्रीमहारुद्राभिषेक पाठ एवं भंडारे में शामिल होने हेतु सभी शिवभक्त सादर आमंत्रित 
हैं ! आपके 'रुद्राभिषेक' एवं भोजन की व्यवस्था का खर्च संस्था द्वारा वाहन किया 
जाएगा ! दिए गये नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं !

Friday 5 December 2014

नए वर्ष की बसंतपंचमी से तीन दिनों यानी 24, 25, एवं 26 जनवरी को हमारी संस्था 'शिवसंकल्पमस्तु' द्वरा श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पर महारुद्राभिषेक पाठ करने का संकल्प लिया गया है उसी की व्यस्था हेतु हमें प्रभु का दर्शन करने का सौभाग्य मिला ! आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! संपर्क करें अध्यक्ष -098110 46153, महासचिव -098687 93315

Saturday 1 November 2014


शनि का बृश्चिक राशि में प्रवेश
भगवान शनि लगभग 28 वर्षों के बाद पुनः 2 नवम्बर की रात्रि 08 बजकर 53 मिनट पर तुला राशि की यात्रा समाप्त करके बृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे | इनके राशि परिवर्तन को ज्योतिषजगत बड़ी घटना के रूप में देखता है | बृश्चिक राशि में प्रवेश करते ही कन्या राशि वाले जातकों की साढ़ेसाती समाप्त हो जायेगी तथा धनुराशि वालों की साढ़ेसाती आरंभ हो जाएगी, कर्क और मीन राशि वाले जातक भी शनि की ढैय्या से मुक्त हो जाएँगे ! मेष और सिंहराशि वालों पर ढैय्या आरंभ हो जाएगी | रविवार को सतभिषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण और कुम्भ राशि के चंद्र के मध्य शनिदेव का बृश्चिक राशि में प्रवेश होने से मेष, कन्या एवं कुम्भ राशि वालों के लिए स्वर्ण का पाया रहेगा, जो संघर्ष के बाद सफलता का सूचक है | बृषभ, सिंह एवं धनु राशि के जातकों के लिए तांबे का पाया रहेगा, जो हर कार्य योजनाओं को सफल बनाएगा | मिथुन, तुला एवं मकर राशि वालों के लिए चांदी का पाया रहेगा, जो मान-सम्मान में वृद्धि और आय के श्रोत बढ़ाएगा | कर्क, बृश्चिक एवं मीन राशि वालों पर लोहे का पाया रहेगा, जो पारिवारिक कलह और मानसिक उलझन देगा, आर्थिक तंगी से भी जूझना पड़ सकता है |शनि की साढ़ेसाती के पड़ाव - अपनी साढ़ेसाती की यात्रा में मध्य शनि का पहला पड़ाव 100 दिनोंतक प्राणियों के मुख पर रहता है, जो किसी भी राशि पर इनकी आरंभिक यात्रा होती है, यह हानिकारक होती है उदाहरण के तौर पर बृश्चिक राशि पर शनि का आगमन 02 नवंबर से हो रहा है तो आगे 100 दिनोंतक यानी 12 फरवरी की रात्रि 08 बजकर 53 मिनटतक के मध्य साढ़ेसाती का प्रभाव इस राशि वालों के मुख पर रहेगा, जो स्वास्थय के लिए हानिकारक रहेगा | इसीप्रकार साढ़ेसाती का दूसरा पड़ाव 400 दिनतक जातकों की दाहिनी भुजा पर रहेगा, जो नानाप्रकार की कामियाबियों के चरम पर पंहुचाएगा | साढ़ेसाती की यह अवधि सफलताओं के कई कीर्तिमान स्थापित करवाएगी | उसके बाद साढ़ेसाती का तीसरा पड़ाव 600 दिन तक जातकों के पाँव में रहेगा जिसके फलस्वरुप उन्हें तीर्थयात्रा, विदेश भ्रमण, अनेक यात्राएं तथा समारोहों में शामिल होने सुअवसर मिलता है, उसके पश्च्यात चौथा पड़ाव 500 दिनतक जातकों के पेट पर रहेगा, जो हर प्रकार से शुभफलदाई रहेगा भौतिक सुखों की अधिकता रहेगी ! साढ़ेसाती का पांचवाँ पड़ाव 400 दिनोंतक बाईभुजा पर रहेगा, जो अशुभ फल कारक है साढ़ेसाती की यह अवधि सबसे खतरनाँक होती है जो जातक को कुछ हताश करने लगती है इसके बाद छठा पड़ाव 300 दिनोंतक मस्तक पर रहेगा जो यश एवं वैभव कारक रहेगा ! सातवाँ पड़ाव 200 दिनोंतक नेत्रों पर रहेगा जो हर प्रकार से सम्मान दिलायेगा और जनप्रेमी भी बनाएगा ! साढ़ेसाती का आठवाँ और अंतिम पड़ाव 200 दिनोंतक जातकों के गुदास्थान पर रहेगा जो कष्टकारक रहेगा इस अवधि के मध्य प्रभावित जातकों को अनेकों उलझनों से जूझना पड़ता है ! साढ़ेसाती की ये अंतिम अवधि भयावह रहती है, इसप्रकार किसी भी राशि पर शनि की साढ़ेसाती 2700 दिनोंतक रहती है | इसी सूत्र के आधारपर आप अपने शरीर के किस अंग पर साढ़ेसाती चल रही है उसे ज्ञात कर सकते है | शनि को प्रसन्न करने के लिए शमी अथवा पीपल का वृक्ष लगाएं, परिवार के बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें, प्रतिदिन असहाय लोगों की मदद करें, रिश्वत लेने से बचें धूर्तता एवं बेईमानी का अनाज खाने से भी परहेज करें ! प्रातः स्नान के बाद प्रतिदिन ॐ नमोऽ भगवते शनैश्चराय' मंत्र का जप कम से कम 11 बार करें !

Saturday 25 October 2014

!!राहुकाल में नया कार्य शुरू करने से बचें !!

Thursday 23 October 2014

!! जब यम ने यमुना के प्रति स्नेह जताया !!
!! पवन तनय संकट हरन !!
!! शुभ परिणाम देने वाला सुयोग आया  !!
!! ग्रहण होगा इस शरद पुनम के चाँद पर !!

Friday 26 September 2014

ॐ सीतायाः पतये नमः ! राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम रामराम राम राम राम राम राम राम राम रामॐ सीतायाः पतये नमः

Monday 22 September 2014


कन्या पूजन से ही प्रसन्न होती हैं माँ - पं जयगोविन्द शास्त्री
नवरात्र व्रत के नवें दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना करने के पश्च्यात ही व्रत समापन के सन्दर्भ में हवन और कन्या पूजन किया जाता है ! इसदिन हवन
सामग्री के रूप मे अनेकों पदार्थों का प्रयोग भक्तगण करते हैं किन्तु कुछ सामग्री ऐसी भी होती हैं जिनसे सकामभाव से हवन करके आप अपने सभी मनोरथ
पूर्ण कर सकते हैं ! इसके लिए जिन लोंगों पर क़र्ज़ अधिक हो गया हो घर में अन्न की कमी हो या जो बेरोजगार हो उन्हें नवरात्र के नवें दिन हवन करते
समय सामग्री में कमलगट्टे की प्रधानता रखनी चाहिए ! जिनको अपने मकान, फैक्ट्री में, दुकान अथवा अन्य प्रतिष्ठान में जादू-टोने या नकारात्मक ऊर्जा
की परेशानी हो उन्हें हवन सामग्री में गूगल-दशांग का अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए ! शिक्षा-प्रतियोगिता में आशातीत सफलता, मुकदमों में
अपेक्षित परिणाम पाने और शत्रुओं पर विजय के उद्देश्य पूर्ति के लिए अक्षत, जौ और शहद का प्रयोग अधिक मात्रा में करना अच्छे परिणाम देगा !
हवन के पश्च्यात करें कन्या पूजन - नवरात्र में नौ दिनों के व्रत में यदि कोई त्रुटि या कमी रह जाय तो कन्या पूजन के पश्च्यात उसका प्रायश्चित्त पूर्ण
हो जाता है कन्या श्रृष्टिसृजन श्रंखला का अंकुर होती हैं ये पृथ्वी पर प्रकृति स्वरुप माँ शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जैसे श्वांस लिए बगैर आत्मा नहीं
रह सकती वैसे ही कन्याओं के बिना इस श्रृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती ! कन्या प्रकृति रूप ही हैं अतः वह सम्पूर्ण है ! शास्त्रों के अनुसार
सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौ दुर्गा, व्यस्थापक रूपी नौ ग्रह, त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाकर चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली नौ प्रकार की भक्ति ही संसार
संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं ! जिस प्रकार किसी भी देवता के मूर्ति की पूजा करके हम सम्बंधित देवता की कृपा प्राप्त कर लेते हैं उसी प्रकार
मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करके साक्षात भगवती की कृपा पा सकते हैं ! इन कन्याओं में माँ दुर्गा का वास रहता है शास्त्रानुसार कन्या के जन्म
का एक वर्ष बीतने के पश्च्यात कन्या को कुवांरी की संज्ञा दी गई है अतः दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति,
चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की
कन्या सुभद्रा के समान मानी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात शक्ति का स्वरूप मानी जाती है ।
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि "कुमारीं पूजयित्या तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्" अर्थात दुर्गापूजन से पहले भी कुवांरी कन्याका पूजन करें तत्पश्च्यात ही
माँ दुर्गा का पूजन आरंभ करें और पारणा के भक्तिभाव से की गई एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग, तीन की चारों पुरुषार्थ,
और राज्यसम्मान, पांच की पूजा से -बुद्धि-विद्या, छ: की पूजा से कार्यसिद्धि, सात की पूजा से परमपद, आठ की पूजा अष्टलक्ष्मी और नौ कन्या की पूजा से
सभी एश्वर्य की प्राप्ति होती है। पुराण के अनुसार इनके ध्यान और मंत्र इसप्रकार हैं
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम् । नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि । पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
कुमार्य्यै नम:, त्रिमूर्त्यै नम:, कल्याण्यै नमं:, रोहिण्यै नम:, कालिकायै नम:, चण्डिकायै नम:, शाम्भव्यै नम:, दुगायै नम:, सुभद्रायै नम: !!
कन्याओं का पूजन करते समय पहले उनके पैर धुलें पुनः पंचोपचार बिधि से पूजन करें और तत्पश्च्यात सुमधुर भोजन कराएं और प्रदक्षिणा करते हुए यथा
शक्ति वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें ! इस तरह नौरात्र पर्व पर कन्या का पूजन करके भक्त माँ की कृपा पा सकते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Monday 15 September 2014


 'सूर्य और राहु की युति'
सूर्यदेव 17 सितंबर की प्रातः कन्या राशि में प्रवेश कर रहे हैं, वहाँ ये पहले से ही विराजमान राहु से युति करेंगें जिसके परिणामस्वरूप 'ग्रहणयोग'
बनेगा ! कन्या राशि के अधिपति बुध हैं किन्तु यह राहु की भी प्रिय राशि है कारण यह है कि, यह स्त्री राशि है और राहु, केतु अथवा कोई भी
अन्य पाप या क्रूर ग्रह जब किसी भी स्त्री राशि के प्रवेश करते हैं तो उनके स्वाभाव में सौम्यता आ जाती है, कारण यह है कि आसुरी शक्तियां
सर्वाधिक स्त्रियों के ही वशीभूत रहती हैं अतः कन्याराशि के जातकों का एक माह मानसिक तनाव वाला तो रहेगा परन्तु कार्य व्यापार की दृष्टि से
अधिक नुकसान नहीं होगा ! उससे भी बड़ी खुशखबरी इसराशि वालों के लिए यह है कि अब कामयाबियों के मार्ग में आनेवाली सभी बाधाएं धीरे-धीरे
दूर होती जायेगी ! इसराशि वालों पर शनि की शाढेसाती के बचे हुए अंतिम 50 दिनों का कुप्रभाव अभी भी जातकों के शरीर में कमर से नीचे रहेगा
जो थोडा कष्टकारक तो है किन्तु अब इससे भी मुक्ति मिलाने वाली है इसलिए इस युति से किसी प्रकार के घबराहट या वहम् में पड़ें ! राहु-सूर्य के
एक साथ आ जाने से सूर्य, राहु का कुप्रभाव और भी कम कर देंगें क्योंकि, जन्मकुंडली में यदि सूर्य बलवान हों तो अकेले ही सात ग्रहों का दोष
शमन कर देते हैं, 'सप्त दोषं रबिर्र हन्ति, शेषादि उत्तरायने ! अगर उत्तरायण सूर्य के समय आपका जन्म हुआ हो तो सूर्य सभी आठ ग्रहों चन्द्र,
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू और केतु का दोष शमन कर देते हैं ! अतः सूर्य को प्रसन्न करने से राजपद, श्रेष्ठ पुरस्कार, उत्तम स्वास्थय, संतान
प्राप्तिं, पाप शमन, शत्रु विनाश, खोई हुई प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्ति होती है !
शिव-पार्वती संवादशास्त्र, कर्मविपाक संहिता में सूर्य के महत्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि "ब्रह्मा विष्णुः शिवः शक्तिः देव देवो मुनीश्वराः !
ध्यायन्ति भास्करं देवं शाक्षी भूतं जगत्त्रये ! अर्थात- तीनों प्रकार श्रेष्ट, मध्यम और अधम जगत के शाक्षी ब्रह्मा, विष्णु, शिव, देवी, देव, श्रेष्ट इंद्र और
मुनीश्वर भी भगवान् भास्कर ही ध्यान करते हैं ! आप ही ब्रह्मा, विष्णु ,शिव, प्रजापति अग्नि तथा वषट्कार स्वरुप कहे जाते है आप  समस्त संसार के
शुभ-अशुभ कर्मों के दृष्टा हैं ! यह चराचर जगत आपके ही प्रकाश से दीप्यमान होता है, आप जगत की आत्मा हैं आपकी तेजस्वी किरणों के प्रभाव से
ही जीव की उतपत्ति होती है ! सूर्य रश्मितो जीवोभि जायते ! जन्मकुंडली में अथवा ग्रह गोचर देखते समय सूर्य की भावस्थिति का ध्यानपूर्वक विवेचन
करना चाहिए ! इनका राशि परिवर्तन मेष, बृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, बृश्चिक, धनु, और मकर, राशि वालों के लिए उत्तम फलदायी रहेगा जबकि, मिथुन,
तुला,कुम्भ और मीन राशि वाले जातकों के लिए मध्यम रहेगा !  पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 4 September 2014


त्रिबिध तापों से मुक्ति दिलाता है, श्रावण माह पं जयगोविन्द शास्त्री
वैसे तो सनातन धर्म में प्रत्येक माह,तिथि और वार का अपना अलग अलग महत्व है,किन्तु श्रावण  का माह आते ही हर जीवात्मा चाहे वह ॐ रूपी परमात्मा
के किसी भी रूप का पूजक हो, इस माह में शिवमय हो जाता है ! श्रावण का माह शिव पूजा,रुद्राभिषेक,दरिद्रता निवारक अनुष्ठान, मोक्ष प्राप्ति , आसुरी
शक्तियों से निवृत्ति,भक्ति प्राप्ति तथा  दैहिक, दैविक,और भौतिक, तीनो तापों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रेष्ट माना गया है !इस माह में एक बेल पत्र भी
अगर शिव जी को अर्पित किया जाए तो वह अमोघ फलदायी होता है !
जिस प्रकार मकर राशि पर सूर्य के पहुचने पर सभी देवी-देवता,यक्ष आदि पृथ्वी पर आते हैं,उसी प्रकार कर्क राशिगत सूर्य में भी सभी देवी देवता पृथ्वी पर
आते हैं ! और ये सभी भगवान् शिव की आराधना पृथ्वी पर करके अपना पुन्य बढाते हैं, स्वयं भगवान् बिष्णु,ब्रह्मा इंद्र शिवगण आदि सभी श्रावण में पृथ्वी
पर ही वास करते हैं और सभी अलग-अलग रूपों में अनेकों प्रक्रार से शिव आराधना करते हैं ! ऐसा माना जाता है की इस माह में की गयी शिव पूजा तत्काल
शुभ फलदायी होती है ! इसके पीछे स्वयम शिव का ही वरदान ही है !
समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नामक  विष निकला तो उसके ताप से सभी देवी- देवता भयभीत हो गए ! तीनो लोकों में त्राहि -त्राहि  मच गयी ! किसी
के पास भी  इसका निदान नहीं था,उस कालकूट विष से वायु मंडल प्रदूषित होने लगा, जिससे पर जीवन पर घोर संकट आ गया ! तभी सभी देवता भगवान
शिव की शरण में गए, और इस विष से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की ! लोक कल्याण के लिए भोलेनाथ ने इस  विष का पान कर लिया,और उसे अपने गले
 में ही रोक लिया जिसके प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया और वे नील कंठ कहलाये ! विष के ताप-गर्मी से व्याकुल शिव तीनो लोको में भ्रमर करने लगे
 पर कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिली,अंत में वे पृथ्वी पर आकर पीपल के वृक्ष के पत्तों को चलता हुआ देख उसके  नीचे बैठगए  जहां कुछ शांति मिली, शिव
के साथ ही सभी तैतींस करोड़ देवी-देवता उस पीपल वृक्ष में अपनी शक्ति समाहित कर शिव को सुंदर छाया और जीवन दायीनी  वायु प्रदान करने लगे !
चन्द्रमा ने अपनी पूर्ण शीतल शक्ति से शिव को शांति पहुचाई तो शेषनाग ने गले में लिपटकर उस कालकूट विष के दाहकत्व को कम करने में लग गए !
देवराज इन्द्र  और गंगा माँ देव निरंतर शिव शीश पर जलवर्षा  करने लगे ! यह जानकर की विष ही विष के असर को कम करसकता है, शभी शिवगण
भांग,धतूर ,बेलपत्र आदि शिव को खीलाने लगे,जिससे भोलेनाथ को शांति मिली ! श्रावण माह कि समाप्ति तक भगवान शिव पृथ्वी पर ही रहे,उन्होंने चन्द्रमाँ,
 पीपल वृक्ष शेषनाग आदि सभी को वरदान दिया,कि  इस माह में जो भी जीव मुझे पत्र,पुष्प, भांग,धतूर और बेल पत्र आदि चढ़ाए गा! उसे  संसार के तीनो
\ कष्टों दैहिक,यानी स्वास्थय से सम्बंधित , दैविक यानी दैवीय आपदा से सम्बंधित और भौतिक यानी  दरिद्रता से सम्बंधित तीनों  कष्टों से मुक्ति मिलेगी,
साथ ही उसे  मेरे लोक की प्राप्ति भी  होगी ! चंद्रमा और शेष नाग पर विशेष अनुग्रह करते हुए शिव ने कहा की जो तुम्हारे दिन सोमवार को मेरी आराधना
करेगा वह मानसिक कष्टों से मुक्त हो जायेगा उसे किसी प्रकार की दरिद्रता नहीं सताएगी ! शेष नाग को शिव ने आशीर्वाद  देते हुए कहा की जो इस माह में
नागों को दूध पिलाएगा,उसे काल कभी नहीं सताएगा और उसकी वंश बृद्धि  में कोए रुकावट नहीं आएगी ! साथ ही उसे सर्प दंश का भय नहीं रहेगा !गंगा माँ
को भगवान् शिव ने कहा की जो इस माह में गंगा जल मुझे अर्पित करेगा वह जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जायेगा ! पीपल वृक्ष को आशीर्वाद देते हुए
भोले ने कहा कि तुम्हारी शीतल छाया में बैठकर मुझे असीम शांति मिली इस लिए मेरा अंश तुम्हारे अंदर हमेशा विद्यमान रहेगा,जो तुम्हारी पूजा करेगा उसे
मेरी पूजा का फल प्राप्त होगा ! शिव के इस वचन को सुनकर सभी देवों ने उन्हें भांग धतूर,बेलपत्र और गंगा जल अर्पित किया ! इसी लिए  जो इस माह में
शिव पर गंगाजल चढाते हैं, वे देव तुल्य हो जाते हैं,साथ ही जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं ! मानशिक परेशानी ,कुंडली में अशुभ चन्द्र का  दोष
मकान- वाहन  का सुख और संतान से संबधित चिंता सोमवार को शिव आराधना से दूर हो जाती है ! इस माह में सर्पों को दूध पिलाने कालसर्प-दोष ,से मुक्ति
मिलती है, और उसके वंश का विस्तार होता है ! "ॐ नमः शिवाय करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय" का जप करते हुए शिव आराधना करें !
अथवा "काल हरो हर,कष्ट हरो हर, दुःख हरो दारिद्र्य हरो ! नमामि शंकर,भजामि शंकर, शंकर शम्भो तव शरणम् !! का भजन जीवन के सारे दुःख दूर कर
देगा ॐ नमः शिवाय ! पं.जय गोविन्द शास्त्री  "वरिष्ठ ज्योतिर्विद"

Friday 29 August 2014


मंगल का बृश्चिक राशि में प्रवेश बनाया 'रुचकयोग'
अदम्य साहसी एवं पराक्रमी ग्रह अवनेय मंगल लगभग 2 वर्ष बाद पुनः अपनी राशि बृश्चिक में प्रवेश कर रहे हैं इस राशि में ये 18 अक्टूबर तक रहेंगें,
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ये बड़ी घटना है ! क्योंकि वर्तमान समय में निर्मित शनि-मंगल योग भंग हो जायेगा और पृथ्वी पर फैली अराजकता में कमी आएगी !
मंगल मेटल्स, पावर, पेट्रोरसायन, हैंडीक्राफ्ट, प्रापर्टी, रियलस्टेट, इंफ्रा, सीमेंट, ज्वलनशील पदार्थों, कमोडिटीज के कारक होते हैं अतः स्टॉक मार्केट में इन पदार्थों
के सेक्टर्स में भारी उतार चढ़ाव की आशंका बनती है ! प्राणियों के शरीर में इनका प्रभाव खून में रहता है, अशुभ प्रभावी होने पर रक्तविकार, लो या हाई
ब्लड प्रेशर, ब्लडकैंसर आदि रोग जन्म लेते हैं यही नहीं न्यूरोलोजिकल समस्याएं, एवं विषाणु जनित गुप्त रोगों की समस्याएं देने में भी मंगल पीछे नहीं
रहते ! जन्मकुंडली में इनके द्वारा बनाये गए 'रुचक योग' से प्राणियों में अद्भुत शक्ति, साहस, सामर्थ्य, शारीरिक बल तथा मानसिक क्षमता रहती है जिसके
फलस्वरूप व्यक्ति सेना अथवा पुलिस में, आग्नेयास्त्र बनाने वाले संस्थानों में, अग्निशमन विभागों, अनेकों खेलों में भरपूर कामयाबी मिलती है ये अग्नितत्व
कारक मेष राशि के भी स्वामी हैं मकर इनकी उच्च और कर्क नीचराशि संज्ञक है ! ये प्रत्येक व्यक्ति में शारीरिक ताकत, मानसिक शक्ति एवम मजबूती प्रदान
करते हैं । निर्णय लेने की क्षमता और दृढ निश्चयता के साथ उस निर्णय पर टिके रहना इनकी नियति है ऐसे जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के
आगे घुटने नहीं टेकते तथा इनके उपर दबाव डालकर अपनी बात मनवा लेना बहुत कठिन होता है इन्हें दबाव की अपेक्षा तर्क देकर समझा लेना ही उचित
होता है । जन्मकुंडली में यदि मंगल शुभ स्थान में हो अथवा बलवान हो तो जातक को सभी प्रकार के ऐश्वर्य और भौतिक सुख प्रदान करते हैं किन्तु अशुभ,
अकारक एवं बलहीन हों तो ये प्राणियों के शारीरिक तथा मानसिक उर्जा पर विपरीत प्रभाव डालते हैं जिसके परिणाम स्वरूप जातक में बलहीनता, सिरदर्द, थकान,
चिड़चिड़ापन, तथा निर्णय लेने में अक्षमता रहती है । बृश्चिक राशि में इनका आगमन मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, मकर, कुम्भ, और मीन राशि के जातकों
के लिए उत्तम रहेगा जबकि अन्य राशियों के लिए मध्यम रहेगा ! अपने ही घर पहुचे मंगल किसी भी जातक को अधिक परेशान नही करेंगें, यहाँ तक कि इस
अवधि के मध्य किसी भी दिन अथवा किसी भी लग्न में जन्मे नवजात शिशुओं की जन्म कुण्डलियाँ मांगलिक दोष से भी मुक्त रहेंगी ! मंगल मृगशिरा, चित्रा
तथा धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी हैं इसलिए इनके अशुभ प्रभाव से बचने और शुभप्रभाव की प्राप्ति के लिए इन नक्षत्रों से उत्पन्न वृक्षों खैर, बेल और शमीवृक्ष
किसी भी सुरक्षित स्थान जैसे, मंदिर, सरोवर, नदी, तीर्थ, बगीचों, पार्कों तथा सड़कों के समीप लगाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 21 August 2014


  'गृहस्थों के लिए वरदान पाने का दिन सोमवती अमावस्या 25 अगस्त '
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को सोमरुपी पितृ, सभी प्रकार की औषधियों का स्वामी तथा जीव-जगत के मन का अधिकारी कहा गया है ! प्राणियों के जीवन
में रोग-आरोग्य, हानि-लाभ, जीवन-मरण के प्रकार, यश-अपयश, मानसिक मजबूती एवं कमजोरी और निर्णय लेने की क्षमता का सीधा सम्बन्ध जातकों
की जन्मकुंडलियों में चंद्रमा की स्थिति से है ! वर्तमान श्रीश्वेतवाराहकल्प के आरम्भ में सभी तिथियों के अधिपति सूर्यदेव थे ! कालान्तर में उन्होंने इन
तिथियों को अन्य देवताओं में बँटवारा कर दिया ! जिनमे अमावस्या के अधिपति अमावसु नामक पितृ को बनाया गया ! इन पितृों में सोम एवं अग्निष्वात
सर्वोपरि कहे गए हैं इन्हीं सोम के दिन जब अमावस्या तिथि पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है ! जो प्रत्येक वर्ष में एक या दोबार पड़ती है,
वर्ष के किसी भी अमावस्या के दिन मन-चिंतन स्वामी चंद्रमा आकाश से ओझल रहते हैं ! चूँकि चंद्रमा का जल के प्रति चुम्बकीय प्रभाव रहता है जिसका
सम्बन्ध जीवों में उपस्थित द्रव पदार्थ रूपी रक्त से है अतः इसदिन मनुष्य को अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक वैराग्य का भाव रहता है !
इस दृष्टि से भी यह दिन मानसिक दोषों से मुक्ति पाने के लिए उत्तम माना गया है ! इसदिन पितृदोष से मुक्ति के निमित्त किया गया पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध,
दान-पुण्य आदि का विशेष महत्व रहता है ! मौनव्रत करने तथा पीपल वृक्ष की पूजा व १०८ बार परिक्रमा करने से समस्त प्रकार की दैहिक, दैविक और भौतिक
कष्टों से भी मुक्ति मिलती है ! द्वापर युग में पितामह भीष्म ने धर्मराज युधिष्ठिर को इसदिन के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि हे ! कुंती नंदन
इसदिन जो मनुष्य किसी भी नदी, तीर्थ, समुद्र में स्नान करेगा उसे समस्त कष्टों के साथ-साथ पितृशाप से भी मुक्ति मिलेगी ! सोमवती अमावस्या के सम्बन्ध
में मुहूर्त ज्योतिष के महान ग्रन्थ 'निर्णयसिन्धु' में कहा गया है कि इसदिन 'पीपल' के वृक्ष की पूजा करने से पति के स्वास्थ्य में सुधार, न्यायिक समस्याओं
से मुक्ति, आर्थिक परेशानियों का समाधान होता है । पीपल को विष्णु स्वरूप माना जाता है जिनमे सभी पितृों, देवों सहित ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास
रहता है ! पुराणों के अनुसार इसदिन पितृशाप से मुक्ति के लिए पीपल, उत्तम दाम्पत्य सुख अथवा मनोनुकूल पति/पत्नी प्राप्ति के लिए पाकड़, शनि कृपा एवं
पुण्य वृद्धि के लिए शमी वृक्ष, अन्न भण्डार के लिए महुआ, धन वृद्धि के लिए जामुन, कामना पूर्ति के लिए आम, सूर्य की कृपा तथा यश प्राप्ति के लिए बेल
का वृक्ष, बृहस्पति की कृपा और ज्ञान वृद्धि के लिए अनार, लो ब्लड प्रेशर से मुक्ति के लिए अशोक आदि का वृक्ष किसी भी मंदिर, सरोवर, नदी अथवा सड़क
के किनारे लगाने से उपरोक्त कही गई बातों के अतिरिक्त जन्मकुंडली के छठें, आठवें एवं बारहवें भाव से सम्बंधित दोष नष्ट हो जाते हैं ! किसी भी स्त्री या
पुरुष के विवाह में अड़चन आरही हो, बार-बार रिश्ता टूट रहा हो तो वृक्षारोपण करने से इन समस्त विषमताओं से मुक्ति तो मिलेगी ही साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा,
कानूनी विवाद, आर्थिक परेशानियों और पति-पत्नी सम्बन्धी विवादों में कमी आएगी ! सोमवार भगवान रूद्र को भी अति प्रिय है अत: सोमवती अमावस्या
के दिन रुद्राभिषेक करने से शिव की अति कृपा मिलती है । पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 14 August 2014


       'अनेकों उपलब्धियों भरा रहेगा भारत का 68वाँ वर्ष'
आज हम स्वाधीनता दिवस का 68वाँ जन्मदिन मना रहें हैं ! आज़ादी के 67 वर्ष व्यतीत हो जाने के बावजूद अभी भी गरीब भूँखे मर रहें है, किसान
आत्म हत्या कर रहा है ! देश आज जिन विषमताओं से जूझ रहा है, क्या इन विपत्तियों का कुहासा कभी छटेगा..? इसका ज्योतिषीय विश्लेषण
करते हैं ! स्वतंत्र भारत की जन्मकुंडली बृषभ लग्न की है कुंडली के लग्न में ही राहू, द्वीतीय धनभाव में मारकेश मंगल, तीसरे पराक्रम भाव में
चन्द्र, सूर्य, बुध, शुक्र और शनि, छठे शत्रु भाव में बृहस्पति और सातवें भाव में केतु बैठे हैं ! कुंडली में 'अनंत' नामक कालसर्प योग बना हुआ है
जिसके स्वामी स्वयं भगवान् सूर्य हैं, मेदिनी ज्योतिष में किसी भी राष्ट्र की जन्मकुंडली का लग्न, द्वीतीय, चतुर्थ, छठा और नवम् भाव अति
महत्वपूर्ण होता है ! कारण यह है, कि लग्न से उस देश की प्रगति और शासनसत्ता की ईमानदारी आदि, द्वीतीय भाव से धन और पडोसी राष्ट्रों से
सम्बन्ध, चतुर्थ भाव से देश की जनता की मानसिक स्थिति और छठे भाव से ऋण, रोग और शत्रु के बारे में ज्ञात किया जाता है ! भारत की जन्मकुंडली
के द्वितीयभाव में बैठा मारकेश मंगल हमेशा अपने ही लोंगों से भीतरघात तथा आपसी कलह कराएगा जो देशहित में कदापि नहीं रहेगा ! देश को खतरा
उन गद्दारों से होगा जो भारत माँ की ही छाती का अन्न खाते हैं और इन्हीं की छाती पर भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद जसे संगीन
अपराधों को जन्म देते हैं ! ख़ुशी की बात यह है कि भगवान् सूर्य और शनि ने अकेले ही राजयोग बनाया है इसलिए देश तरक्की में पीछे नहीं रहेगा !
वर्तामान समय में भारत की कुंडली के अनुसार अनंत कालसर्प योग के बनाए राहु की महादशा 06 जुलाई 2011 चल रही है उसमे भी 18 मार्च 2014 से
अगस्त 2016 तक के लिए बृहस्पति की अंतर्दशा आरम्भ हो चुकी है ! बृहस्पति वर्तमान समय में अपनी उच्चराशि कर्क में संचार कर रहे हैं जो भारतवर्ष
की जन्म राशि भी है इस वर्ष का वर्ष लग्न भी कर्क राशि का है जिनमें भाग्येश होकर गुरु लग्न में ही सूर्य और शुक्र के साथ बैठे हैं ! शुक्र जन्मकुंडली
में लग्न के स्वामी हैं और सूर्य चतुर्थ भाव के स्वामी हैं ! इन सभी अच्छे योंगों के परिणाम स्वरूप 15 अगस्त के बाद देश में मँहगाई में कमी होनी
आरम्भ हो जायेगी  ! 7 नवंबर से शनि बृश्चिक राशि में जा रहे हैं जो लग्न को पूर्ण दृष्टी से देखेगें ! शनि भारत की जन्मकुंडली में अकेले ही राजयोग
कारक हैं अतः आने वाला वर्ष भारत की एकता अखंडता एवं संप्रभुता के लिए गौरवपूर्ण तथा वरदान की तरह रहेगा ! दशाओं और शुभ गोचर के फलस्वरूप
वर्तमान शासनसत्ता देश का गौरव बढाने में कहीं पीछे नहीं रहेगी ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 7 August 2014


भादों में करें गणपति को प्रसन्न
श्रीगणेश आराधना का पावन माह भादौं 11 अगस्त सोमवार से आरम्भ हो रहा है, जिस तरह श्रावणमाह में शिव की आराधना का फल अमोघ है उसी प्रकार
भादौंमाह भगवान गणेश की आराधना के लिए सर्वोपरि है ! शास्त्रों के अनुसार भादौं माह में गणेश की आराधना प्राणियों का संकल्पित मनोरथ पूर्ण करती है !
इसवर्ष भादौं माह में अपने घर में गणेश की मूर्ति बिठाना, उनकी पूजा आराधना करना विशेष फलदायी रहेगा क्योंकि वर्तमान संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों
का अधिकार चन्द्रमा के पास है जो मन, माता, मित्र, मकान, मानसिक सुख-तनाव आदि के स्वामी हैं चन्द्र एवं गणेश सर्वदा साथ-साथ ही रहते हैं इसलिए
इसवर्ष विद्यार्थियों अथवा अन्य प्रतियोगिताओं में बैठने वाले युवकों के लिए 'गणेश' पूजा का फल अक्षुण रहेगा !
शास्त्र कहते हैं,'गणानां जीवजातानां य ईशः स गणेशः' अर्थात जो समस्त गणों तथा जीव-जाति के स्वामी हैं वही गणेश हैं ! इनका जन्म वर्तमान श्रीश्वेतवाराहकल्प
के सातवें वैवस्वत मनवंतर में भादौं माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि सोमवार को स्वाति नक्षत्र की सिंह लग्न एवं अभिजित मुहूर्त में हुआ ! जन्म के समय
सभी शुभग्रह कुंडली में पंचग्रही योग बनाए हुए थे तथा पाप ग्रह अपने-अपने कारक भाव में बैठे थे ! पंचभूतों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में,
पृथ्वी 'शिव', 'जल' 'गणेश', अग्नि 'शक्ति', वायु 'सूर्य' और आकाश 'श्रीविष्णु' हैं इन पांच तत्वों के वगैर जीव-जगत की कल्पना भी नहीं की जा सकती !
जल तत्व के स्वामी गणेश का स्वाति नक्षत्र में जन्म होने के फलस्वरूप इस नक्षत्र में बारिस की एक-एक बूँद अमृततुल्य मानी गई है जो वृक्षों, वनस्पतियों
औषधियों, और फसलों को रोग रहित बनाती है गाँवों में किसान इस नक्षत्र पर सूर्य की यात्रा के मध्य वर्षा की अत्यधिक कामना करते हैं ऐसा माना गया है
कि यह नक्षत्र धान की फसलों के लिए तो अमृत तुल्य है ही, इसके बाद की गेहूं की फसल भी रोग रहित होती है जिससे पैदावार में भी बृद्धि होती है ! सभी
प्राणियों में गणेश 'रक्त' रूप में विराजते हुए चारों देवों सहित पंचायतन में पूज्य हैं जैसे श्रृष्टि का कोई भी शुभ-अशुभ कार्य जल के बिना पूर्ण नहीं होता
वैसे ही गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं होता !
वेदांग ज्योतिष में अश्विनी आदि नक्षत्रों के अनुसार देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण इन तीनों गणों के 'ईश' गणेश ही हैं ! जिनमे 'ग' ज्ञानार्थवाचक और 'ण'
निर्वाणवाचक है 'ईश' अधिपति हैं ! अर्थात ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के 'ईश' गणेश ही 'परब्रह्म' हैं ! प्राणियों के शरीर में मेरुदंड के मध्य सुषुम्ना नाडी जो ब्रह्मरंध्र
में प्रवेश करके मष्तिष्क के नाडी समूह से मिलजाती है इसका आरम्भ 'मूलाधार चक्र' है जिसे 'गणेश' स्थान कहते हैं ! आध्यात्मिक भाव से ये चराचर जगत की
आत्मा है सबके स्वामी हैं सबके ह्रदय की बात समझ लेने वाले 'सर्वज्ञ' हैं !इनका सिर हाथी का और वाहन मूषक है ! मूषक प्राणियों के भीतर छुपे हुए काम, क्रोध
मद, लोभादि पापकर्म की वृत्तियों का प्रतीक है ! अतः गणेश पूजन से ये विनाशक पापकर्म वृत्तियाँ दबी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप जीवात्मा की चिंतन-स्मरण
की शक्ति तीक्ष्ण बनी रहती है ! जनकल्याण हेतु गणेश पाश, अंकुश और वरमुद्रा धारण करते हैं ! पाश मोह का प्रतीक है जो तमोगुण प्रधान है, अंकुश वृत्तियों
का प्रतीक है जो रजोगुण प्रधान है, वरमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है जो आत्मसाक्षात्कार कराकर परम पद दिलाते हुए परमेश्वर का दर्शन भी कराता है इनका पूजन
करके प्राणी तमोगुण, रजोगुण से मुक्त होकर सतोगुणी हो जाता है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 31 July 2014


 नागपूजा का पावन पर्व, 'नाग पंचमी'
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है इसदिन देश के अलग-अलग राज्यों में अनेकों प्रकार से नाग देवता
की पूजा-आराधना की जाती है ! पौराणिक मान्यता के अनुसार वर्तमान श्रीश्वेतवाराह कल्प में सृष्टि सृजन के आरम्भ में ही एकबार किसी कारणवश
ब्रह्मा जी को बड़ा क्रोध आया जिनके परिणामस्वरूप उनके आँशुओं की कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं और उनकी परिणति नागों के रूप में हुई, इन नागों में
प्रमुख रूप से अनन्त, कुलिक, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, और शंखपाल आदि प्रमुख हैं, अपना पुत्र मानते हुए ब्रह्मा जी ने इन्हें ग्रहों के
बराबर ही शक्तिशाली बनाया ! इनमें अनन्तनाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक मंगल के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के, महापद्म शुक्र के, कुलिक
और शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं ! ये सभी नाग भी सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही भूमिका निभाते हैं ! इनसे गणेश और रूद्र यज्ञोपवीत के रूप में,
महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु जी शैय्या रूप में सेवा लेते हैं ! ये शेषनाग रूप में स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं !
वैदिक ज्योतिष में राहु को काल और केतु को सर्प माना गया है ! अतः नागों की पूजा करने से मनुष्य की जन्म कुंडली में राहू-केतु जन्य सभी दोष तो
शांत होते ही हैं इनकी पूजा से कालसर्प दोष और विषधारी जीवो के दंश का भय नहीं रहता ! नए घर का निर्माण करते समय इन बातों का ध्यान रखते
हुए कि परिवार में वंश वृद्धि हो सुख-शांति के साथ-साथ लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहे, इसके लिए नींव में चाँदी का बना नाग-नागिन का जोड़ा रखा जाता है !
ग्रामीण अंचलों में आज के ही दिन गावों में लोग अपने-अपने दरवाजे पर गाय के गोबर से सर्पों की आकृति बनाते हैं और नागों की पूजा करते हैं !
नाग लक्ष्मी के अनुचर के रूप में जाने जाते हैं ! इसीलिए कहाजाता है कि जहाँ नागदेवता का वास रहता है वहां लक्ष्मी जरुर रहतीं हैं ! इनकी पूजा अर्चना
से आर्थिक तंगी और वंश बृद्धि में आ रही रुकावट से छुटकारा मिलता है ! आज नाग पंचमी को आप इस मंत्र को-
! नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु ! ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः पढते हुए नाग-सर्प पूजन करें ! भावार्थ ! जो नाग, पृथ्वी, आकाश,
स्वर्ग,सूर्य की किरणों, सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं । वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं इसप्रकार
नागपंचमी के दिन सर्पों की पूजा करके प्राणी सर्प एवं विष के भय से मुक्त हो सकता है ! यदि नाग उपलब्ध न हों तो शिवमंदिर में प्राणप्रतिष्ठित
शिवलिंग पर स्थापित नाग की पूजा भी कर सकते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 24 July 2014

शमी का वृक्ष लगाएं, शनिदेव को मनाएं, सुखी जीवन पाएँ |

Wednesday 23 July 2014

शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए लगाएं शमी का वृक्ष, करें इन मंत्रो से प्रार्थना...
शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी । अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया । तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥

हे शमी वृक्ष ! आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले
हैं आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले और श्रीराम को भी अति प्रिय हैं जिस
तरह श्री राम ने आपकी पूजा की, मैं भी करता हूँ मेरे विजपथ पर आने वाली
सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये ! 'शिवसंकल्पमस्तु'

Thursday 17 July 2014

मित्रों सुप्रभातं ! 823 वर्षों के बाद एक माह में पाँच शुक्रवार, पाँच शनिवार, और पाँच रबिवार, का अद्भुद योग ! इस माह का नाम है, ''अगस्त 2014''

Monday 14 July 2014

मित्रों सुप्रभातं ! राहु/केतु के राशि परिवर्तन का अचूक प्रभाव..! इस विषय पर मेरा आलेख आज ही पढ़े हिन्दुस्तान हिंदी समाचार पत्र के ''धर्म क्षेत्रे'' पेज पर...पं.जयगोविन्द शास्त्री

Sunday 13 July 2014

ॐ नमः शिवाय ! करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय 'श्रावणमास 
में ही माँ शक्ति ने पार्वती रूप में तपस्या करके भगवानशिव को पुनः पति 
रूप में प्राप्त किया था अतः इस माह में शिव की आराधना/अभिषेक आदि 
करने से मनुष्य के लिए इस पृथ्वी सबकुछ पाना संभव रहजाता है ! 
ॐ नमः शिवाय ! करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय....

Friday 11 July 2014


अष्टाविंशे द्वापरे तु पराशरसुतो हरिः ! यदा भविष्यति व्यासो नाम्ना द्वैपायनः प्रभुः !!
व्यासाय विष्णुरुपाय विष्णु रुपाय व्यासवे ! नमो वै ब्रह्म निधये वाशिष्ठाय नमो नमः !!

भगवान शिव ने कहा, हे ! नन्दीश्वर, जब अट्ठाईसवें द्वापर में भगवान श्री महाविष्णु
पराशरपुत्र व्यास रूप में प्रकट होंगें तब वै द्वैपायन नाम से विख्यात होकर वेदों का
विस्तार करेंगें ! इस प्रकार अट्ठाईस द्वापर में आषाढ़शुक्ल पूर्णिमा को भगवान
व्यास का जन्म हुआ ! विष्णु स्वरुप होने और वेदों का विस्तार करने के
फलस्वरूप वै वेद व्यास कहलाये तथा देवों तथा मनुष्यों में गुरुरूप में पूजित
हुए ! तभी से इनके जन्मदिन को गुरुपूर्णिमा के रूप मनाया जाने लगा !

Wednesday 9 July 2014


पुरुष एवेद गूँ सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्व्यम् ! उतामृतवत्वस्येशानो यदन्ने नातिरोहति !

अर्थात - इस जगत में भूत, भविष्य एवं वर्तमान में जो कुछ हुआ, हो रहा है, होने
वाला है वह इन विराट पुरुष का ही अवयव है प्रत्येक कल्प में जीव देहधारी होकर
इन्हीं के अंश रूप में रहते हैं यही परमात्मा जीव रूप में पूर्वकर्मवश जन्म मृत्यु के
चक्कर में पड़कर भी अजमर-अमर और अजन्मा है !  इति वेदाः !

Friday 4 July 2014


'श्रावण में 'रुद्राभिषेक' करके महादेव को प्रसन्न करें'
'रुतम्-दुःखम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्रः' अर्थात जो सभी प्रकार के 'रुत' दुखों को विनष्ट करदेते हैं वै ही रूद्र हैं !
ईश्वर, शिव, रूद्र, शंकर, महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं ! ब्रह्म का विग्रह-साकार रूप शिव है ! इन शिव
की शक्ति शिवा हैं इनमें सतोगुण जगत्पालक विष्णु हैं एवं रजोगुण श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं ! श्वास वेद हैं ! सूर्य चन्द्र नेत्र हैं !
वक्षस्थल तीनों लोक और चौदह भुवन हैं विशाल जटाओं में सभी नदियों पर्वतों और तीर्थों का वास है जहां श्रृष्टि के सभी
ऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्या रत रहते हैं ! वेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मा ईश्वर शिव के श्वाँस से
विनिर्गत हुए हैं इसीलिए वेद मन्त्रों के द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप, यज्ञ आदि करके प्राणी शिव की कृपा
सहजता से प्राप्त करलेता है ! रुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के पश्च्यात् प्राणी को फिर किसी
भी पूजा की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि- ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, ब्रह्मा विष्णु भी रूद्रमय ही हैं ! शिवपुराण के अनुसार
वेदों का सारतत्व, 'रुद्राष्टाध्यायी' है जिसमें आठ अध्यायों में कुल १७६ मंत्र हैं, इन्हीं मंत्रो के द्वारा त्रिगुण स्वरुप रूद्र का
पूजनाभिषेक किया जाता है शास्त्रों में भी कहागया गया है कि शिवः अभिषेक प्रियः अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है !
रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के 'शिवसंकल्पमस्तु' आदि मंत्रों से 'गणेश' का स्तवन किया गया है द्वितीय अध्याय
पुरुषसूक्त में नारायण 'विष्णु' का स्तवन है तृतीय अध्याय में देवराज 'इंद्र' तथा चतुर्थ अध्याय में भगवान 'सूर्य' का
स्तवन है पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है तो छठे में सोम का स्तवन है इसी प्रकार सातवें अध्याय में 'मरुत' और आठवें
अध्याय में 'अग्नि' का स्तवन किया गया है अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है !
अतः रूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है !

Thursday 3 July 2014


'देवताओं की तपस्या का पावन पर्व है, 'चातुर्मास्य'
ऋषियों, मुनियों, योगियों, यक्षों, गंधर्वो, नागों, किन्नरों एवं देवताओं आदि की तपस्या का पावन पर्व 'चातुर्मास्य' आषाढ़ शुक्ल एकादशी 09 जुलाई बुधवार
से आरम्भ हो रहा है, भगवान श्रीहरि के योगनिद्रा में प्रवृत्त हो जाने के साथ ही तपस्या का यह पर्व आरंभ होगा, जो कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरिप्रबोधिनी)
03 नवम्बर तक चलेगा | इस मध्य भगवान विष्णु का शयन काल रहेगा जिसके परिणाम स्वरूप देव शक्तियां क्षीण होती जायेगी | इस व्रत को गृहस्तवर्ग
भी कर सकते है | देवर्षि नारद के पूछने पर भगवान शिव ने इस व्रत की विधि और महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि देवर्षि ! इस अवधि के मध्य
न तो घर में या मंदिर में मूर्ति आदि स्थापना/प्राणप्रतिष्ठा होती है न ही विवाह आदि यज्ञोपवीत आदि कर्म होते है इस व्रत को करने से प्राणी संसार के सभी
भोगों ऐश्वर्यों को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है उसके लिए कुछ भी पाना श्रेष्ठ नहीं रह जाता ! आराधना की बिधि इसप्रकार है कि गृहस्त अपने घर
में चतुर्भुज श्रीविष्णु की प्रतिमा स्थापित करे ! प्रतिमा को पीताम्बर पहनाएं, उसे शुद्ध एवं सुंदर पलंगपर, जिसके ऊपर सफेद चादर बिछी हो और तकिया रखी
हो, स्थापित करे | फिर दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, शर्करा, लावा और गंगाजल से स्नान कराकर उत्तम गोपी चन्दन का लेप करें पुनः गंगा जलसे स्नान
कराकर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पुष्प, सुगन्धित पदार्थों से श्रृंगार करे ! इस प्रकार श्रीहरि की पूजा करके इस मंत्र से प्रार्थना करे !
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम् | विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत्सर्वं चराचरम् || अर्थात हे ! जगदीश्वर ! जगन्नाथ ! आपके सो जानेपर यह सारा
जगत् सो जाता है तथा आपके जागृत होने पर सम्पूर्ण चराचर जगत् जग उठता है | इस प्रकार भगवान विष्णु की प्रार्थना करे और ॐ नमो नारायण' का जप
प्रतिदिन इन्हीं ध्यान मंत्र से पूजन जप करे ऐसा करने से नारायण उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करदेते हैं | वेदों में भी कहा गया है कि अहिंसा श्रेष्ठ धर्म है
इसलिए जीव हत्या न करे, वाणी पर संयम रखे ! व्रत के मध्य गुड़ छाछ दही दूध आदि के सेवन से बचे किन्तु बाल बृद्ध एवं रोगियों के लिए यह परहेज
मान्य नही होगा ! कार्तिक शुक्ल एकादशी को व्रत समाप्ति हेतु उद्यापन कर ब्राह्मण भोजन दानपुण्य करके प्राणी समस्त भवबंधनों से मुक्त होकर श्रीविष्णु
लोक वासी होता है ! पं जयगोविंद शास्त्री

Tuesday 1 July 2014

!! सकारात्मक सोच ही व्यक्ति की सफलता की कुंजी होती है !!

Sunday 29 June 2014


सृष्टि उस विराट चेतनाशक्ति की अभिव्यक्ति मात्र है ! धर्म उस चेतना
को उपलब्ध होने वाला विज्ञान है ! संन्यास और वैराग्य इसका आरम्भ
है तथा मुक्ति अंत ! यह जीव की अंतिम स्थिति है, 'शिवसंकल्पमस्तु'

Saturday 28 June 2014

ममैवांशे जीवलोके जीवभूतः सनातनः !

प्राणियों में जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है ! अतः जो मुझे 
भजता है वही मुझे प्राप्त करता है, यह राधेगोविंद का वचन है

Friday 27 June 2014


हे ! परमेश्वर ! परमपिता ! मोहरूपी अंधकार को दूर करने वाले पतितोत्धारक,
अपनी ज्योतियों की ज्योति ज्ञानज्योति से आत्मज्ञान का सत्यपथ आलोकित
करके हमें अमृतमय मोक्ष प्रदान कीजिये !

Thursday 26 June 2014


शक्ति आराधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र'
पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाली दस महाविद्याओं की आराधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' कल से आरंभ हो रहे हैं पालनहार
श्री विष्णु के शयन काल की अवधि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के मध्य जब देव प्राण क्षीण हो जायेंगें और पृथ्वी पर रूद्र, वरुण, यम
आदि के द्वारा नाना प्रकार के रोग, बाढ़ सुखा आदि का प्रकोप रहेगा तो इन संभावित विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में माँ दुर्गा की उपासना की जाती
है शास्त्रों के अनुसार सतयुग में चैत्र शुक्लपक्षीय नवरात्र, त्रेता में आषाढ़ शुक्लपक्षीय नवरात्र, द्वापर में माघ शुक्लपक्षीय और कलयुग में आश्विन शुक्लपक्षीय
यानी शारदीय नवरात्र में माँ शक्ति की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है, यह नवरात्र आषाढ़ शुक्लपक्ष प्रतिपदा से नवमी तक रहता है दशमी के दिन
पारणा होती है और एकादशी को यज्ञदेव श्री विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए जाते हैं ! मार्कंडेय पुराण में उक्त चारों नवरात्रों में
शक्ति की आराधना के साथ-साथ अपने ईष्ट आराधना का भी विशेष महत्व बताया गया है ! घर में वास्तुदोष हो, पारिवारिक कलह हो, वंशवृद्धि अथवा संतान
प्राप्ति में बाधा आ रही हो शत्रुओं द्वारा प्रताणना हो रही हो, कोर्ट कचहरी के मामलों का भय हो या किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का भय सता रहा हो
तो ऐसे समय माँ दुर्गा की आराधना गुप्तरूप से की जाती है इस नवरात्र में साधक को अपनी समस्त योजनाएं एवं पूजा संबंधी बिधि तथा मंत्र आदि गुप्त रखने
चाहिये ! विद्यार्थी वर्ग के लिए इसकाल में मां सरस्वती की आराधना भी विशेष फलदायी रहती है ।
शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में 'रुरु' नामक महाबली दैत्य के पुत्र दुर्ग ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके वरदान स्वरुप चारों वेद प्राप्त किया जिसके
परिणाम स्वरुप वह अजेय होकर उपद्रव करने लगा ! उस समय वेदों के नष्ट हो जाने से देवता एवं ब्राह्मण पथभ्रष्ट होगये और जप-तप, दान, यज्ञ का भाव होने
लगा जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही ! सभी देवता माँ पराम्बा की शरण में गए और माँ से पृथ्वी की सारी विपत्तियों के निदान का निवेदन किया कि,
माँ उस 'दुर्ग' नामक महादैत्य का वध करो ! देवताओं के स्तवन से माँ प्रसन्न होकर उस दुर्ग नामक महादैत्य के वध का संकल्प लिया और अपने शरीर से काली,
तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बागला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट किया और महादैत्य दुर्ग की
सौ अक्षौहिणी सेना नष्ट करके अपने त्रिशूल द्वारा उस दुर्ग नामक महादैत्य का विनाश कर देवताओ को भय मुक्त किया जिसने फलस्वरूप  इनका
नाम 'दुर्गा' पड़ा |तभी से उपरोक्त दस महाविद्याओं की साधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' के रूप में मनाया जाने लगा ! 28 जून से 07 जुलाई तक चलने वाले इस
नवरात्र में यदि आप स्नान ध्यान करके एकांत में शुद्ध आसन पर विराजते हुए केवल ॐ दुं दुर्गायै नमः मंत्र का जप करेंगें तो मंत्र के प्रभाव से आपकी समस्त
परेशानियाँ नष्ट हो जायेंगी ! पं जयगोविंद शास्त्री

Thursday 19 June 2014

!! शिव के तांडव के बाद भी छाया रहेगा यात्रियों का उत्साह केदारनाथ यात्रा !!

Monday 16 June 2014


 '12वर्षों बाद बृहस्पति पहुचे उच्चराशि में, बनाया 'परमहंस' योग'
अग्नि के अंशावतार देवगुरु बृहस्पति 12वर्षों बाद पुनः 19 जून को अपनी उच्चराशि कर्क में प्रवेश कर रहे हैं, गुरु एक सदी में लगभग आठ बार उच्चराशिगत
रहते हैं ! इसके पहले ये जुलाई 2002 से जुलाई 2003 के मध्य कर्कराशि की यात्रा पर थे, जब-जब गुरु कर्क राशि में गोचर करते हैं तब-तब 'परमहंस'
योग बनता है और जब ये अपनी स्वयं की राशि धनु एवं मीन में गोचर करते हैं तबतब 'हंस' योग का निर्माण होता है ! जिन जातकों की जन्मकुंडली में
गुरु कर्क राशि में होकर केन्द्र या त्रिकोण में होंगें उनके लिए इनका उच्चराशिगत होना श्रेष्ठतम फलदाई रहेगा उपरोक्त अंकित वर्षों के अनुसार आप स्वयं
की कुंडली में भी गुरु के राशि परिवर्तन के प्रभाव का मिलाप करसकते हैं !
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को सर्वाधिक शुभ एवं शीघ्र फलदाई ग्रह माना गया है शुक्ल यजुर्वेद में तो इन्हें आत्मा की शक्ति कहा गया है जो प्राणियों को
आत्मबोध की ज्योति प्राप्त कराकर अज्ञान के अन्धकार को दूर करते हुए जीव को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते है वेदों में भी कहा गया है
कि, 'बृहस्पतिः प्रथमं जायमानो महो ज्योतिषः परमे व्योम्..अर्थात - बृहस्पति जो सबसे महान है अपनी स्थिति से आकाश के उच्चतम स्तर से
सभी दिशाओं से, सात किरणों से, अपनेकानेक जन्मों से, अपनी ध्वनि से हमें आच्छादन करने वाले अन्धकार को पूर्णतया दूर करते हैं ! सृजन में
प्रजापिता ब्रह्मा का सहयोगी होने के फलस्वरूप इन्हें 'जीव' भी कहा गया है ! सुंदर पीतवर्ण वाले गुरु अपने याचक को वांछित फल प्रदान कर उसे संपत्ति
तथा बुद्धि से संपन्न कर देते हैं ! पुनर्वसु, विशाखा एवं पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों के स्वामी गुरु मकर राशि में नीचराशिगत रहते हैं ! जन्मकुंडली में द्वितीय, पंचम,
नवम तथा एकादश भाव के कारक होते हैं !
शिक्षा और व्यापार में होगा भारी सुधार - इसवर्ष शिक्षा के अधिपति गुरु के उच्चराशिगत होने से शिक्षा के क्षेत्र सरकार द्वारा नई नई योजनाएं घोषित की
जो पूर्णतः कारगर सिद्ध होंगी आप कह सकते हैं कि यह वर्ष शिक्षा को समर्पित रहेगा ! इसी के साथ शेयर बाज़ार के टॉप फिफ्टी शेयर्स जैसे बैंक, बीमा
भारी उद्योग, फार्मा इंफ्रा आदि में सकारात्मक खरीदारी से बाज़ार भारी उछाल आएगा ! बृहस्पति का कर्क राशि में गोचर सभी राशियों के लिए कैसा रहेगा
इसका ज्योतिशीय विश्लेषण करते हैं !
मेष - मकान वाहन का सुख किन्तु माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, कार्य व्यापार में उन्नति, स्थान परिवर्तन एवं विदेश यात्रा के योग !
बृषभ - साहस पराक्रम की वृद्धि-भाग्योन्नति किन्तु भाइयों में अहं का टकराव, धार्मिक एक मांगलिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेंगे, आर्थिक उन्नति !
मिथुन - यात्रा तीर्थाटन का लाभ, अधिक खर्च से उलझने बढेंगी किन्तु किसी बड़े समाचार से मन प्रसन्न होगा, रोजगार के अवसर उपलब्ध रहेंगे !
कर्क - वर्ष का बेहतरीन समय शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता, मंजिल तक आसानी से पहुचेंगे, नौकरी में पदोन्नति एवं पुरस्कार प्राप्ति !
सिंह - अधिक खर्च से परिवार में तनाव रहेगा, किन्तु आपके द्वारा लिए गए निर्णय एवं कार्यों की सराहना होगी, मातापिता के स्वास्थय का रखें
कन्या - आय के साधन बढेंगे, शिक्षा एवं संतान संबंधी चिंता दूर होगी, परिश्रम का पूर्ण फल एवं उच्चाधिकारियों से सहयोग मिलेगा!
तुला - मान-सम्मान में वृद्धि, विद्यार्थी वर्ग के लिए यह परिवर्तन वरदान की तरह, निर्णय लेने में शीघ्रता दिखाएँ, कर्ज से मुक्ति मिलेगी !
बृश्चिक - आकस्मिक बड़े अनुबंध प्राप्ति के अवसर, शासन सत्ता का भरपूर सहयोग, विद्यार्थी वर्ग को भी मिलेगी शिक्षा-प्रतियोगिता में बड़ी सफलता !
धनु - नए प्रेमप्रसंग से हो सकती है बदनामी, स्थान परिवर्तन के योग, उच्च अधिकारियों से मधुर सम्बन्ध बनाएँ, यात्रा सावधानी पूर्वक करें !
मकर - शादी विवाह की वार्ता सफल रहेगी, व्यापार में उन्नति, आपके द्वारा किये गए कार्यों की सराहना होगी, विद्यार्थियों के लिए सफलतादायक वर्ष !
कुंभ - गुप्त शत्रुओं से बचें, कोर्टकचहरी के मामले बाहर ही निपटा लें तो बेहतर रहेगा, यात्रा के समय सामान चोरी होने से बचाएं, नई नौकरी मिलने के योग !
मीन - संतान तथा शिक्षा संबंधी चिंता दूर होगी, आयके साधन बढेंगें नए अनुबंध के सुअवसर, सरकारी अथवा अदालती निर्णय आपके पक्ष में आयेंगें !
बृहस्पति को अधिक प्रसन्न करने उपाय - गुरुवार का व्रत करें. पीले वस्त्र धारण करें, गौओं की सेवा करें झूँठ कम से कम बोलें, आम, पीपल, अनार का
वृक्ष लगाएं प्रतिदिन ॐ बृं बृहस्पतये नमः मन्त्र का ११ बार जप करें ! --- पं जयगोविंद शास्त्री

Saturday 14 June 2014


अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् |
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ||

जो मनुष्य अन्तकाल में मुझ को ही स्मरण करता हुआ
शरीर को छोडकर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरुप को
प्राप्त होता है इसमें कुछ भी संशय नहीं है |

Thursday 5 June 2014


                 'त्रिबिध तापों से मुक्ति देने वाली निर्जला एकादशी 09 जून को'
चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ एवं अक्षुणफल प्रदान करने वाली भीमसेनी एकादशी 09 जून सोमवार को है, ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की इस एकादशी
को 'अपरा' और 'निर्जला' एकादशी नामों से भी जाना जाता है | पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी को निर्जल व्रत रखते हुए परमेश्वर विष्णु की
भक्तिभाव से पूजा-आराधना करने से प्राणी समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त होता है श्रीश्वेतवाराह कल्प के आरंभ में देवर्षि
नारद की 'श्रीविष्णु' भक्ति देख ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए | नारद ने आग्रह किया कि हे ! परम पिता मुझे ऐसा कोई मार्ग बतायें जिससे मै
श्री विष्णुके चरणकमलों में स्थान पा सकूं ! पुत्र नारद का नारायण प्रेम देख ब्रह्मा जी श्रीविष्णु की प्रिया 'अपरा' की तिथि,'एकादशी' को निर्जल
व्रत करने का सुझाव दिया, नारद जी प्रसन्नचित्त होकर एक हजार वर्षतक 'निर्जल' रहकर यह कठोर व्रत किया !
कुछ वर्षों बाद तपस्या के मध्य ही उन्हें अपने चारों तरफ उन्हें नारायण ही नारायण दिखने लगे, परमेश्वर की इस माया से वै भ्रम में पड़ गए कि
कहीं यही विष्णुलोक तो नहीं तभी उन्हें भगवान श्रीविष्णु का दर्शन हुआ, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति
का वरदान देते हुए अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया ! तभी से इस निर्जल व्रत का प्रचलन आरम्भ हुआ ! एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है इसलिए
इसदिन जप-तप पूजा पाठ करने से प्राणी श्रीविष्णु का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है ! इस व्रत को देव 'व्रत'
भी कहा जाता है क्योंकि सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि अपनी रक्षा और श्रीविष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी
का व्रत रखते हैं पौराणिक मान्यता है कि एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों को शमन करने की शक्ति होती है ! इसदिन किसी भी तरह
का पापकर्म करने से बचने का प्रयास करें ही साथ ही मासं, मदिरा, तथा अन्य तामसी पादार्थों के सेवन से भी बचना चाहिए !
वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में भगवान शिव के अंशावतार महर्षि व्यास ने इस निर्जला एकादशी के व्रत के महत्व को पांडवों को बताया था,
इस कथा के पीछे भी एक घटना है-कि जब सर्वज्ञ वेदव्यास पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली
भीम ने पूछा कि देव ! मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है।
तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा ? महर्षि व्यास ने कहा, नहीं वत्स ! तुम ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष
की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो तो तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों काफल प्राप्त होगा। और तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त
कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इस सलाह पर भीम भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। तभी से वर्ष भर की चौबीस एकादशियों का
पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में भीमसेनी एकादशी नाम दिया गया गया ! इस दिन जो प्राणी स्वयं निर्जल रहकर
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करता है वह जन्म जन्मांतर के पापों से छुटकारा पाते हुए गोलोक वासी होता है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Monday 2 June 2014


                                 !! गंगे तव दर्शनात मुक्तिः !!
विष्णुपदी माँ गंगा का प्राकट्य पर्व गंगा दशहरा ८ जून रबिवार को है सूर्यवंशी महाराजा भागीरथ का अपने पितामहों का उद्धार करने का संकल्प
लेकर हिमालय पर्वत पर घोर तपस्या करके गंगा माँ प्रसन्न किया, जिसके फलस्वरूप ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र, बृषभ राशिगत सूर्य
एवं कन्या राशिगत चन्द्र की यात्रा के मध्य गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ ! इनकी महिमा का गुणगान करते हुए भगवान
महादेव श्रीविष्णु से कहते हैं कि हे हरे ! ब्राहमण की शापाग्नि से दग्ध होकर भारी दुर्गति में पड़े हुए जीवों को गंगा के शिवा दूसरा कौन
स्वर्गलोक में पहुँचा सकता है क्योंकि गंगा शुद्ध, विद्यास्वरूपा, इच्छा ज्ञान एवं क्रियारूप, दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों को शमन करने
वाली, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को देने वाली शक्ति स्वरूपा हैं, इसीलिए इन आनंदमयी, शुद्ध धर्मस्वरूपिणी, जगत्धात्री,
 ब्रह्मस्वरूपिणी अखिल विश्व कि रक्षा करने वाली गंगा को मै अपने मस्तक पर धारण करता हूँ ! कलयुग में काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर,
इर्ष्यादि अनेकानेक विकारों का समूल नाश करने में गंगा के सामान कोई और नही है ! विधिहीन, धर्महीन आचरणहीन, मनुष्यों को भी गंगा का
सानिध्य मिलजाय तो वह मोह एवं अज्ञान के भव सागर से पार हो जाता है, इसदिन ''ॐ नमः शिवाय नारायन्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा'' मन्त्रों के
द्वारा गंगा का पूजन करने से जीव को मृत्युलोक में बार-बार भटकना नहीं पड़ता ! गंगा दशहरा को लेकर शास्त्रों कई ज्योतिषीययोग ग्रहयोग
बताएं गए हैं जिनमे जब गंगा दर्शन, स्नान, पूजन दान, जप, तपादि अति शुभ हो जाता है ! बहुत से विद्वानों का मत है कि निष्कपट भाव से
इनके दर्शन करने मात्र से जीव को कष्ट से मुक्ति मिल जाती है इसवर्ष इसदिन हस्त नक्षत्र होने के परिणामस्वरूप गंगा स्नान अति पुण्यदाई
रहेगा ! पं जयगोविंद शास्त्री

Friday 30 May 2014


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की चुनौतियाँ होंगी परास्त ! देश वासियों को अच्छे दिन आने आहट भी
सुनाई देने लगी है, इसी विषय पर मेरा आलेख पढ़ें 'अमर उजाला' अखबार के श्रद्धा पेज पर..

Tuesday 29 April 2014


ग्रहा राज्यं प्रयच्छन्ति ग्रहा राज्यं हरन्ति च !
ग्रहैः व्याप्तमिदं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् !!
अर्थात - मनुष्यों को केवल ग्रह ही राज्य देते हैं और ग्रह ही राज्य
हर भी लेते हैं चराचर सहित तीनों लोक सब ग्रहों से ही व्याप्त है !

Sunday 16 March 2014

रंगों का त्यौहार लाये आपके जीवन में लाये खुशियों बहार, 
आपके लिए दिल से यही कामना करता है ''शिवसंकल्पमस्तु'' 
परिवार, होली आप सभी मित्रों के लिए कल्याणकारी रहे !

रंगोंत्सव के पावन पर्व 'होली' पर आप सभी मित्रों को वेदविज्ञान प्रचार
संस्था 'शिवसंकल्पमस्तु' परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ !

Thursday 13 March 2014

मित्रों दिल्ली की संस्था ''शिवसंकल्पमस्तु'' द्वारा श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन (म.प्र.) में भव्य/ऐतिहासिक महारुद्र यज्ञ के सफल आयोजन के पश्च्यात अब गुजरात के सौराष्ट्र में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पर महारुद्र यज्ञ की तैयारियों का शुभारंभ ! आप सादर निमंत्रित हैं, तारीखें शीघ्र ही घोषित की जायेंगी ! पं जयगोविंद शास्त्री संस्थापक/अध्यक्ष 'शिवसंकल्पमस्तु संस्था' (पंजी) दिल्ली
CONTACT 098110 46153, 09868535099, Email-jaigovindshastri@gmail.com, shivasankalpmastu@gmail.com

Thursday 27 February 2014

!! अपने कर्मो में लाएं सुधार, क्योंकि शनिदेव हुए वक्री !!


Thursday 6 February 2014

 !! क्या कहते हैं, शरदपवार के सितारे !
आगामी लोकसभा चुनाव की सुगंध मिलते ही सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपने-अपने नाँक-कान खड़े कर लिए हैं, दरअसल जो भी
यू,पी,ए के सहयोगी कांग्रेस के साथ मिलकर पिछले 57 महीने से एकसाथ सत्तासुख भोग रहे थे, चुनाव का बिगड़ता समीकरण
देखकर अचानक उनकी निष्ठाएं बदली-बदली सी लगने लगी हैं सभी को अब कांग्रेस सरकार में खोट नज़र आने लगी है इसी कड़ी में
नया नाम एन,सी,पी का जुड़ गया है ! क्या कहते हैं इनके मुखिया श्री शरद पवार के सितारे.? ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं !
भारतीय राजनीति में कौटिल्य कहेजाने वाले श्री शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर 1940 को सुबह 06 बजकर 35 मिनट पर बारामती
महाराष्ट्र में हुआ ! इनके जन्म के समय क्षितिज पर भरणी नक्षत्र एवं बृश्चिक लग्न का उदय हो चुका था ! बृश्चिक लग्न की
कुंडली में लग्न में ही सूर्य-बुध, पंचमभाव में केतु, छठेंभाव में चन्द्र, शनि, गुरु एकादशभाव में राहू और बारहवेंभाव में मंगल तथा शुक्र
बैठे हैं ! कुंडली में शिवयोग, बुधादित्य, शत्रुमर्दी, विष, खल, गुप्त शत्रु, अंतर्मुखी, विलासिता, मांगलिक, बहुपत्नी, क्षत्रप, विषयी,
राजनेता, मुखिया, पराक्रमी, चन्द्र-गुरु, विपुल लक्ष्मीयोग सहित शुभाशुभ मिलाकर लगभग 83 से भी अधिक योग बने हैं और कुंडली में
निर्मित इन्हीं योगों के अनुरूप इनका जीवन भी रहा है ! विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री आदि सभी पदों का सुख भोगने के
पश्च्यात भी अभी प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब बचा हुआ है आने वाले चुनाव में एकबार फिर मिस्टर पीएम को रेस में दिख रहे
हैं चार प्रमुख दावेदारों में से तीन श्री नरेंद्र मोदी, श्री राजनाथ सिंह और श्री शरदपवार की एक ही लग्न बृश्चिक है जबकि राहुल गांधी
के सितारे अलग हैं ! शरद पवार की कुंडली के सबसे बलवान राहू और केतु हैं ! किसी भी जातक की जन्मकुंडली यदि बृश्चिक लग्न
की हो और केतु पंचमभाव में हो तो वह जातक कुशल कूटनीतिज्ञ अंतर्मुखी और राजनेता होता है यहाँतक कि जातक की योजनाओं को
भी समझ पाना मुश्किल होता है और ऐसे में राहू एकादश होजाते हैं जो 'त्रिषट एकादशे राहू सर्वारिष्ट विनश्यति' के सूत्र को चरितार्थ
करते हुए सभी अरिष्टों का शमन करते हैं ! कुंडली के लग्नेश मंगल एवं द्वादशेश शुक्र की युति बारहवेंभाव में भी पूर्णराजयोग का
निर्माणकरही है इस प्रकार का योग विश्व के कई राजनेताओं की भी कुंडलियों में देखा गया है !
वर्तमान समय में इनपर 26 जनवरी 2000 से शनि की महादशा चल रही है उसमें भी 08 सितंबर 2013 से 14 जुलाई 2016 तक
राहू की अंतर्दशा चलेगी ! इसी के मध्य 12 फ़रवरी 2014 से 28 जून 2014तक शनि की महादशा में राहू की अंतर्दशा में बृहस्पति
की प्रत्यंतरदशा चलेगी ! बृहस्पति पंचमेश हैं जो भाग्येश चन्द्र, तृतीयेश-चतुर्थेश शनि में साथ मित्र मंगल के घर में बैठे हैं स्वयं
मंगल की स्वगृही दृष्टि भी है साथ ही महाराजयोग निर्मित किये हुए शुक्र की भी पूर्ण दृष्टि है बृहस्पति वर्तमान समय में मिथुन
राशि में भ्रमण कर रहे हैं जिनके अष्टक वर्ग में 4 बिन्दु हैं जून से कर्क राशि में बृहस्पति के आने से 6 बिंदु हो जायेंगें जो अति
शुभफल कारक  रहेंगें ! ग्रह-योंगों का विश्लेषण करने के पश्च्यात निष्कर्ष निकल रहा है, कि आने वाला समय इनके लिए वरदान
 की तरह रहेगा ! पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 30 January 2014

मित्रों प्रणाम !  आज ही पढ़ें 'अमरउजाला' समाचार पत्र के श्रद्धा पेज पर
मेरा यह आलेख ! ''अनुकूल रहेगा वक्त भारतीय जनता पार्टी के लिए''

Friday 24 January 2014

!! निखर कर आएगा सोनिया का पराक्रम !!

Thursday 2 January 2014


मित्रों सुप्रभातम ! आज ही पढ़ें, अमर उजाला अखबार के श्रद्धा
पेजपर मेरा आलेख ! सबके लिए कल्याणकारी होगा नया साल !