Thursday 26 December 2013


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! मेष राशि !!

कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! वृष राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! मिथुन राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! कर्क राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि 
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! सिंह राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! कन्या राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! तुला राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! वृश्चिक राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! धनु राशि !!


कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि 
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! मकर राशि !!

कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि 
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! कुंभ राशि !!

कैसा रहेगा वर्ष 2014 आपके लिए, अपनी राशि 
के आधारपर जाने अपना भविष्य !! मीन राशि !!

Monday 16 December 2013


ते जन्मभाजः खलु जीवलोके ये वै सदा ध्यायन्ति विश्वनाथम् !
वाणी गुणान् स्तौति कथां श्रृणोति श्रोत्रद्वयं ते भवमुत्तरन्ति !!

अर्थात - जो सदा भगवान् शिव का ध्यान करते हैं, जिनकी वाणी
शिव के गुणों की स्तुति करती है और जिनके कान उनकी कथा
सुनते हैं, इस जीव-जगत् में उन्हीं का जन्म लेना सफल है ! वै
निश्चय ही संसार-सागर से पार हो जाते हैं ! ''शिवसंकल्पमस्तु''

Sunday 8 December 2013

दिल्ली में त्रिशंकु विधानसभा के आसार

Friday 6 December 2013

!!शुक्र करेंगे अप्रत्याशित चमत्कार!! 

Monday 18 November 2013

'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था द्वारा दिल्ली में आयोजित 'महारुद्र यज्ञ 'में वेद मंत्रों
के उच्चारण के समय भाव मुद्रा में पं. जयगोविंद शास्त्री एवं अन्य सदस्य

Thursday 31 October 2013

भावभरे आंसुओं से करे माँ महालक्ष्मी का स्तवन-अर्चन..

Sunday 27 October 2013


मित्रों ! आपके लिए शुभ समाचार है, कि आगामी 15, 16, 17 नवंबर
को '' श्रीराम मंदिर, मयूर विहार फेज 1 पाकेट 1 दिल्ली 110091'' में
'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था द्वारा नौ कुण्डीय ''महारुद्र यज्ञ'' का आयोजन
किया जा रहा है ! 'यज्ञ' में देश के अलग-अलग राज्यों से वैदिक विद्वानों
को आमंत्रित किया गया है सहभागी बनने हेतु आप सादर आमंत्रित हैं,
संस्था द्वारा सभी 12 ज्योतिर्लिंगों पर ''महारुद्र यज्ञ'' करने का संकल्प भी
लिया जा चुका है जो उज्जैन से आरम्भ हो गया है, आप भी अपनी उपस्थिति
से हमारा उत्साह बढ़ाएं ! shivasankalpmastu.blogspot.com
पं जयगोविंद शास्त्री संस्थापक/अध्यक्ष शिवसंकल्पमस्तु संस्था (पंजी.)दिल्ली
Mb.+91 9811046153, 9868793319, 98685 35099, 83758 51934

मित्रों ! आपके लिए शुभ समाचार है, कि आगामी 15, 16, 17 नवंबर
को '' श्रीराम मंदिर, मयूर विहार फेज 1 पाकेट 1 दिल्ली 110091'' में
'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था द्वारा नौ कुण्डीय ''महारुद्र यज्ञ'' का आयोजन
किया जा रहा है ! 'यज्ञ' में देश के अलग-अलग राज्यों से वैदिक विद्वानों
को आमंत्रित किया गया है सहभागी बनने हेतु आप सादर आमंत्रित हैं,
संस्था द्वारा सभी 12 ज्योतिर्लिंगों पर ''महारुद्र यज्ञ'' करने का संकल्प भी
लिया जा चुका है जो उज्जैन से आरम्भ हो गया है, आप भी अपनी उपस्थिति
से हमारा उत्साह बढ़ाएं ! shivasankalpmastu.blogspot.com
पं जयगोविंद शास्त्री संस्थापक/अध्यक्ष शिवसंकल्पमस्तु संस्था (पंजी.)दिल्ली
Mb.+91 9811046153, 9868793319, 98685 35099, 83758 51934
मित्रों ! आपके लिए शुभ समाचार है, कि आगामी 15, 16, 17 नवंबर
को '' श्रीराम मंदिर, मयूर विहार फेज 1 पाकेट 1 दिल्ली 110091'' में
'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था द्वारा नौ कुण्डीय ''महारुद्र यज्ञ'' का आयोजन
किया जा रहा है ! 'यज्ञ' में देश के अलग-अलग राज्यों से वैदिक विद्वानों
को आमंत्रित किया गया है सहभागी बनने हेतु आप सादर आमंत्रित हैं,
संस्था द्वारा सभी 12 ज्योतिर्लिंगों पर ''महारुद्र यज्ञ'' करने का संकल्प भी
लिया जा चुका है जो उज्जैन से आरम्भ हो गया है, आप भी अपनी उपस्थिति
से हमारा उत्साह बढ़ाएं ! shivasankalpmastu.blogspot.com
पं जयगोविंद शास्त्री संस्थापक/अध्यक्ष शिवसंकल्पमस्तु संस्था (पंजी.)दिल्ली
Mb.+91 9811046153, 9868793319, 98685 35099, 83758 51934

मित्रों ! आपके लिए शुभ समाचार है, कि आगामी 15, 16, 17 नवंबर
को '' श्रीराम मंदिर, मयूर विहार फेज 1 पाकेट 1 दिल्ली 110091'' में
'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था द्वारा नौ कुण्डीय ''महारुद्र यज्ञ'' का आयोजन
किया जा रहा है ! 'यज्ञ' में देश के अलग-अलग राज्यों से वैदिक विद्वानों
को आमंत्रित किया गया है सहभागी बनने हेतु आप सादर आमंत्रित हैं,
संस्था द्वारा सभी 12 ज्योतिर्लिंगों पर ''महारुद्र यज्ञ'' करने का संकल्प भी
लिया जा चुका है जो उज्जैन से आरम्भ हो गया है, आप भी अपनी उपस्थिति
से हमारा उत्साह बढ़ाएं ! shivasankalpmastu.blogspot.com
पं जयगोविंद शास्त्री संस्थापक/अध्यक्ष शिवसंकल्पमस्तु संस्था (पंजी.)दिल्ली
Mb.+91 9811046153, 9868793319, 98685 35099, 83758 51934

Monday 21 October 2013

सितंबर माह में उज्जैन में शिवसंकल्पमस्तु संस्था द्वारा आयोजित महारुद्र यज्ञ ....



 "शरद पूर्णिमा पर पायें ऋण-रोग और दारिद्र्य से मुक्ति "
शरद पूर्णिमा का पावन पर्व आज है ! अगस्त तारे के उदय और चंद्रमा की सोलह कलाओं  की शीतलता का संयोग
देखने लायक होगा ! यह पूर्णिमा सभी बारह पूर्णिमाओं में सर्वश्रेष्ट मानी गयी गई है ! आज के दिन भगवान् कृष्ण
महारास रचाना आरम्भ करते हैं ! देवीभागवत महापुराण में कहा गया है कि, गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए
भगवान् कृष्ण ने चन्द्र से महारास का संकेत दिया, चन्द्र ने भगवान् कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों
से प्रकृति को आच्छादित कर दिया ! उन्ही किरणों ने भगवान् कृष्ण के चहरे पर सुंदर रोली कि तरह लालिमा भर दी !
फिर उनके अनन्य जन्मों के प्यासे बड़े बड़े योगी, मुनि, महर्षि और अन्य  भक्त गोपिकाओं के रूप में कृष्ण लीला रूपी
महारास ने समाहित  हो गए, कृष्ण कि वंशी कि धुन सुनकर अपने अपने कर्मो में लीन सभी गोपियाँ अपना घर-बार
छोड़कर  भागती हुईं  वहाँ आ पहुचीं ! कृष्ण और  गोपिकाओं का अद्भुत प्रेम देख कर चन्द्र ने अपनी सोममय किरणों से
अमृत वर्षा आरम्भ कर दी जिसमे भीगकर यही गोपिकाएं अमरता को प्राप्त हुईं, और भगवान् कृष्ण के अमर  प्रेम का
भागीदार बनी चंद्रमा की सोममय रश्मियां जब पेड़ पौधों और वनस्पतियों पर पड़ी तो उनमें भी अमृत्व का संचार हो गया !
इसीलिए इसदिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे मध्यरात्रि में रखने का विधान है रात्रि में चन्द्र की किरणों से जो
अमृत वर्षा होती है, उसके फलस्वरुप वह खीर भी अमृत समान हो जाती है उसमें चन्द्रमाँ से जनित दोष शांति और आरोग्य
प्रदान करने की क्षमता स्वतः आ जाती है ! यह प्रसाद ग्रहण करने से प्राणी मानसिक क्लान्ति से मुक्ति पा लेता है !
            ! कर्ज से मुक्ति माने का दिन !
प्रलय के चार प्रमुख देवता रूद्र, वरुण, यम और निर्रृति का तांडव जब आषाढ़ शुक्ल एकादशी विष्णु शयन के दिन से
आरम्भ होता है, तो माता लक्ष्मी भी विष्णु सेवा में चली जाती हैं ! जिसके परिणाम स्वरुप देवप्राण शक्तियाँ भी
कमजोर होती जाती है और आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ़ जाता है ! इस अवधि में वरुणदेव  बाढ़ , सुखा,
भूस्खलन, रूद्र नानाप्रक्रार के ज्वर यक्ष्मा आदि  रोग, यम अकाल मृत्यु  और अलक्ष्मी देवी जिन्हें आप निर्र्ति के
नाम से जानते हैं, वै पृथ्वीवासिओं को नाना प्रक्रार के दुःख-दारिद्र्य और  हानि पहुचाती हैं ! इस काल कि मुख्य अवधि
भादों पूर्णिमा तक होती है महालय के बाद नवरात्रिमें शक्ति आराधना के मध्य जब देवप्राण की शक्ति बढ़ने लगती है
तब आसुरी शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं ! विजयदशमी के दिन व्रत पारणा के पश्च्यात भगवान् विष्णु की परमप्रिय
एकादशी को सबके पूजा आराधना के फल, कर्मों के आधार पर दिया जाता है ! जिससे पापकर्मो पर अंकुश लगजाता है
इसीलिए इसे पापांकुशा एकादशी भी कहते हैं ! पाप पर अंकुश लगने के बाद पूर्णिमा को माता महालक्ष्मी का पृथ्वी पर
आगमन होता है ! वै घर-घर जाकर सबको वरदान देती हैं किन्तु जो लोग दरवाजा बंद करके सो रहे होते हैं वहाँ से
लक्ष्मी जी दरवाजे से ही वापस चली जाती है ! तभी शास्त्रों में  इस पूर्णिमा को  कोजागरव्रत, यानी कौन जाग रहा है
व्रत भी कहते हैं ! इसदिन की लक्ष्मी पूजा सभी कर्जों से मुक्ति दिलाती हैं ! अतः शरदपूर्णिमा को कर्ज मुक्ति पूर्णिमा
भी इसीलिए कहते हैं ! इसरात्रि को ''श्रीसूक्त'' का पाठ, ''कनकधारा स्तोत्र'' ''विष्णु सहस्त्र'' नाम का जाप और भगवान् कृष्ण
का 'मधुराष्टकं' का पाठ ईष्टकार्यों की सिद्धि दिलाता है और उस भक्त को भगवान् कृष्ण का सानिध्य मिलता है !
जन्म कुंडली में चंद्रमा क्षीण हों, महादशा-अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा चल रही हो या चंद्रमा छठवें, आठवें या बारहवें भाव
में हो तो चन्द्र की पूजा और मोती अथवा स्फटिक माला से ॐ सों सोमाय नमः मंत्र का जप करके चंद्रजनित दोषों से
मुक्ति पाई जा सकती है ! जिन्हें लो ब्ल्ड प्रेशर हो, पेट या ह्रदय सम्बंधित बीमारी हो, कफ़ नजला-जुखाम हो आखों से
सम्बंधित बीमारी हो वै आज के दिन चन्द्रमा की आराधान करके इस सबसे मुक्ति पासकते हैं ! जिन विद्यार्थियों
का मन पढ़ाई में न लगता हो वै चन्द्र यन्त्र धारण करके परीक्षा अथवा प्रतियोगिता में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं !
यह शरद पूर्णिमा सभी प्रकार के ऋण-रोग और दारिद्र्य से मुक्ति दिलाने वाली है ! पं. जय गोविन्द शास्त्री
करवा चौथ के पवित्र पर्व पर सभी माताओं-बहनों और मित्रों की पत्नियों को शुभकामनाएँ .....

Thursday 17 October 2013


 "शरद पूर्णिमा पर पायें ऋण-रोग और दारिद्र्य से मुक्ति "
शरद पूर्णिमा का पावन पर्व आज है ! अगस्त तारे के उदय और चंद्रमा की सोलह कलाओं  की शीतलता का संयोग
देखने लायक होगा ! यह पूर्णिमा सभी बारह पूर्णिमाओं में सर्वश्रेष्ट मानी गयी गई है ! आज के दिन भगवान् कृष्ण
महारास रचाना आरम्भ करते हैं ! देवीभागवत महापुराण में कहा गया है कि, गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए
भगवान् कृष्ण ने चन्द्र से महारास का संकेत दिया, चन्द्र ने भगवान् कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों
से प्रकृति को आच्छादित कर दिया ! उन्ही किरणों ने भगवान् कृष्ण के चहरे पर सुंदर रोली कि तरह लालिमा भर दी !
फिर उनके अनन्य जन्मों के प्यासे बड़े बड़े योगी, मुनि, महर्षि और अन्य  भक्त गोपिकाओं के रूप में कृष्ण लीला रूपी
महारास ने समाहित  हो गए, कृष्ण कि वंशी कि धुन सुनकर अपने अपने कर्मो में लीन सभी गोपियाँ अपना घर-बार
छोड़कर  भागती हुईं  वहाँ आ पहुचीं ! कृष्ण और  गोपिकाओं का अद्भुत प्रेम देख कर चन्द्र ने अपनी सोममय किरणों से
अमृत वर्षा आरम्भ कर दी जिसमे भीगकर यही गोपिकाएं अमरता को प्राप्त हुईं, और भगवान् कृष्ण के अमर  प्रेम का
भागीदार बनी चंद्रमा की सोममय रश्मियां जब पेड़ पौधों और वनस्पतियों पर पड़ी तो उनमें भी अमृत्व का संचार हो गया !
इसीलिए इसदिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे मध्यरात्रि में रखने का विधान है रात्रि में चन्द्र की किरणों से जो
अमृत वर्षा होती है, उसके फलस्वरुप वह खीर भी अमृत समान हो जाती है उसमें चन्द्रमाँ से जनित दोष शांति और आरोग्य
प्रदान करने की क्षमता स्वतः आ जाती है ! यह प्रसाद ग्रहण करने से प्राणी मानसिक क्लान्ति से मुक्ति पा लेता है !
            ! कर्ज से मुक्ति माने का दिन !
प्रलय के चार प्रमुख देवता रूद्र, वरुण, यम और निर्रृति का तांडव जब आषाढ़ शुक्ल एकादशी विष्णु शयन के दिन से
आरम्भ होता है, तो माता लक्ष्मी भी विष्णु सेवा में चली जाती हैं ! जिसके परिणाम स्वरुप देवप्राण शक्तियाँ भी
कमजोर होती जाती है और आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ़ जाता है ! इस अवधि में वरुणदेव  बाढ़ , सुखा,
भूस्खलन, रूद्र नानाप्रक्रार के ज्वर यक्ष्मा आदि  रोग, यम अकाल मृत्यु  और अलक्ष्मी देवी जिन्हें आप निर्र्ति के
नाम से जानते हैं, वै पृथ्वीवासिओं को नाना प्रक्रार के दुःख-दारिद्र्य और  हानि पहुचाती हैं ! इस काल कि मुख्य अवधि
भादों पूर्णिमा तक होती है महालय के बाद नवरात्रिमें शक्ति आराधना के मध्य जब देवप्राण की शक्ति बढ़ने लगती है
तब आसुरी शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं ! विजयदशमी के दिन व्रत पारणा के पश्च्यात भगवान् विष्णु की परमप्रिय
एकादशी को सबके पूजा आराधना के फल, कर्मों के आधार पर दिया जाता है ! जिससे पापकर्मो पर अंकुश लगजाता है
इसीलिए इसे पापांकुशा एकादशी भी कहते हैं ! पाप पर अंकुश लगने के बाद पूर्णिमा को माता महालक्ष्मी का पृथ्वी पर
आगमन होता है ! वै घर-घर जाकर सबको वरदान देती हैं किन्तु जो लोग दरवाजा बंद करके सो रहे होते हैं वहाँ से
लक्ष्मी जी दरवाजे से ही वापस चली जाती है ! तभी शास्त्रों में  इस पूर्णिमा को  कोजागरव्रत, यानी कौन जाग रहा है
व्रत भी कहते हैं ! इसदिन की लक्ष्मी पूजा सभी कर्जों से मुक्ति दिलाती हैं ! अतः शरदपूर्णिमा को कर्ज मुक्ति पूर्णिमा
भी इसीलिए कहते हैं ! इसरात्रि को ''श्रीसूक्त'' का पाठ, ''कनकधारा स्तोत्र'' ''विष्णु सहस्त्र'' नाम का जाप और भगवान् कृष्ण
का 'मधुराष्टकं' का पाठ ईष्टकार्यों की सिद्धि दिलाता है और उस भक्त को भगवान् कृष्ण का सानिध्य मिलता है !
जन्म कुंडली में चंद्रमा क्षीण हों, महादशा-अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा चल रही हो या चंद्रमा छठवें, आठवें या बारहवें भाव
में हो तो चन्द्र की पूजा और मोती अथवा स्फटिक माला से ॐ सों सोमाय नमः मंत्र का जप करके चंद्रजनित दोषों से
मुक्ति पाई जा सकती है ! जिन्हें लो ब्ल्ड प्रेशर हो, पेट या ह्रदय सम्बंधित बीमारी हो, कफ़ नजला-जुखाम हो आखों से
सम्बंधित बीमारी हो वै आज के दिन चन्द्रमा की आराधान करके इस सबसे मुक्ति पासकते हैं ! जिन विद्यार्थियों
का मन पढ़ाई में न लगता हो वै चन्द्र यन्त्र धारण करके परीक्षा अथवा प्रतियोगिता में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं !
यह शरद पूर्णिमा सभी प्रकार के ऋण-रोग और दारिद्र्य से मुक्ति दिलाने वाली है ! पं. जय गोविन्द शास्त्री

Tuesday 15 October 2013


जागु-जागु जीव जड़ जोहै जगजामिनी !
देह, गेह, नेह, जानु जैसे घनदामिनी !!

अर्थात - हे ! जड़मति जीव जागो-जागो ! जगत को उत्पन्न करने वाली माँ
पराम्बा तुम्हारे सन्मार्ग पर आने की प्रतीक्षा कर रही हैं ! यह देह जिसके
बल पर तुम्हें अभिमान है, यह महल जो तुम्हारे अहंकार को बढ़ावा देता है
और ये रिश्ते-नाते  जो तुम्हारे सच्चिदानंद प्राप्ति में बाधक बन रहे हैं ये
सब बादलों के मध्य चमकती हुई बिजली के समान क्षण भंगुर हैं !

Thursday 3 October 2013


हाल ही में महाकाल ज्योतिर्लिंग उज्जैन ( म.प्र ) में शिवसंकल्पमस्तु संस्था
द्वारा आयोजित 'महारुद्र यज्ञ' को मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया !

हाल ही में महाकाल ज्योतिर्लिंग उज्जैन ( म.प्र ) में शिवसंकल्पमस्तु संस्था
द्वारा आयोजित 'महारुद्र यज्ञ' को मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया !
हाल ही में महाकाल ज्योतिर्लिंग उज्जैन ( म.प्र ) में शिवसंकल्पमस्तु संस्था 
द्वारा आयोजित 'महारुद्र यज्ञ' को मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया !


Sunday 29 September 2013

 !! और भी पुन्यफलदाई होता है पितृ विसर्जन के दिन श्राद्ध-तर्पण  !! पं. जयगोविन्द शास्त्री 
पितृपक्ष का पावन पर्व धीरे-धीरे समापन की ओर बढ़ रहा है ! परिवार के किसी भी मृत व्यक्ति/संबंधी की तिथि न 
मालूम हो तो पितृ विसर्जन के दिन ही श्राद्ध करें ! यह तिथि सभी के लिए ग्राह्य मानी गई है अगर सम्बंधित 
परिजन की मृत्यु की तिथि ज्ञात हो तो उस मृत्यु तिथि में ही उनका श्राद्ध करने का विधान है ! 
पितृ विसर्जन की तिथि का इतना अधिक महत्व क्यों ?
इसतिथि के 'सर्वपितृ श्राद्ध' होने के पीछे एक महत्वपूर्ण घटना है कि, देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' जो 
सोमपथ लोक मे निवास करते हैं ! उनकी मानसी कन्या, 'अच्छोदा' नाम की एक नदी के
रूप में अवस्थित हुई ! एकबार अच्छोदा ने एक हज़ार वर्षतक निर्बाध तपस्या की ! उनकी तपस्या से प्रसन्न 
होकर दिव्यशक्ति परायण देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' अच्छोदा को वरदान देने के लिए दिव्य सुदर्शन शरीर 
धारण कर आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए ! उन पितृगणों में 'अमावसु' नाम के एक अत्यंत सुंदर पितर की 
मनोहारी-छवि यौवन और तेज देखकर अच्छोदा कामातुर हो गयीं और उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं किन्तु अमावसु 
अच्छोदा की कामप्रार्थना को ठुकराकर अनिच्छा प्रकट की ! इससे अच्छोदा अति लज्जित हुई 
और स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरीं ! उसी पाप के प्रायश्चित हेतु कालान्तर में यही अच्छोदा महर्षि पराशर की 
पत्नी एवं वेदव्यास की माता बनी थी !तत्पश्यात समुद्र के अंशभूत शांतनु की पत्नी हुईं और दो पुत्र चित्रांगद तथा 
विचित्रवीर्य को जन्म दिया था ! इन्ही के नाम से कलयुग में इन्ही के नाम से 'अष्टका श्राद्ध' मनाया जाता है !
अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितरों ने सराहना की एवं वरदान दिया कि, यह अमावस्या की तिथि 
'अमावसु' के नाम से जानी जाएगी ! जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न करपाए वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्ध-तर्पण 
करके सभी बीते चौदह दिनों का पुन्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकतें हैं, 
तभी से यह तिथि 'सर्वपितृ श्राद्ध' के रूप में मानाई जाती है ! धन के अभाव में कैसे करें श्राद्ध ? 
वेद के अनुसार मृत पिता को वसुगण, दादा को रूद्रगण और परदादा को आदित्यगण कहागया है हमारे द्वारा किये 
श्राद्ध ये देव अग्नि, चन्द्र और यम के सहयोग से सम्बंधित लोकों में पहुचा देते हैं ! यदि धन-वस्त्रादि खरीदने के लिए
 रुपये न हों तो निराश होने जैसी कोईबात नहीं है - तस्मात्श्राद्धम नरो भक्त्या शाकैरपि यथाबिधिः ! 
अर्थात केवल श्रद्धा सहित शाक ही अर्पित करें और निवेदन करें की हे ! पितृ आप हमें सामर्थ्य वान बनाएँ ताकि 
भविष्य में और अच्छे ढंग से श्राद्ध-तर्पण कर सकूं ! ऐसा कहने से आप को लाखों गुना फल प्राप्त होगा ! 
गौ माता तो खिलाएं घास - पद्मपुराण के अनुसार सृष्टि सृजन के क्रम में ब्रह्मा जी ने सबसे पहले गौ कि रचना की, 
गौ माता में सभी तैतीस करोंड़ देवी-देवाताओं का वास है अतः 'कुतप काल; यानी दिन के ग्यारह बजकर छत्तीस 
मिनट से बारह बजकर चौबीस मिनट के मध्य गौओं का पंचोपचार बिधि से पूजन करके 
 उन्हें हरी घास (दूब) ही श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध के निमित्त खिलादें तब भी श्राद्ध-तर्पण का पूर्णफल प्राप्त हो जायेगा !
ब्राह्मणों के अभाव में किसे कराएं भोजन ?आज-कल श्राद्ध के दिनों में भोजन कराने हेतु ब्राह्मणों का अकाल पडता 
जा रहा है अधिकतर ब्राह्मण भी अब श्राद्ध का भोजन करने से परहेज करने करने लगे हैं ऐसे में कन्या के पुत्र को
 भोजन कराएँ यदि यह भी संभव न हो तो बैगैर पकाया हुआ अन्न मंदिर में दान करें इसके अतिरिक्त गौ
माता की पूजा-प्रदक्षिणा करके उन्ही को अपने हाथों से भोजन खिलायें तो भी अन्न का भाग सभी लोकों-पितृलोकों 
में पहुँच जायेगा ! 
श्राद्ध करने न करने से लाभ हानि - श्राद्ध करने का लौकिक अर्थ है अपने पूर्वजों और बड़ों के प्रति सम्मान 
प्रकट करना, समर्पण भाव रखना ! इसलिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने पर पितृ हमें -
''आयु पुत्रान यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम ! पशून सौख्यं धनं-धान्यं प्राप्नुयात पितृ पूजनात'' 
अर्थात आयु, पुत्र, ख्याति, स्वर्ग, बल-बुद्धि, पशु भौतिक सुखों के साथ-साथ सभी ऐश्वर्य वरदान रूप में प्रदान करते हैं ! 
श्राद्ध न करने पर -श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते ! जैसे शरीर अधिक दिनों तक भूखा रहने पर स्वयं की
 चर्बी को ही खाने लगता है उसी प्रकार पितृ भी इस पक्ष में श्राद्ध-तर्पण न पाने से अपने ही सगे सम्बन्धियों का खून
 पीने लगते हैं तथा अमावस्या के दिन श्राप देकर अपने-अपने लोक चले जाते है अतः श्राद्ध की अनेकों बिधाओं
 में से किसी भी विधा के अनुसार अपने पूर्वजो का सम्मान करें !     '''शिवसंकल्पमस्तु'''


Friday 20 September 2013


!! श्राद्ध-तर्पण से खुलते हैं सौभाग्य के दरवाजे !!
यूँ तो बद्रीनाथ धाम, पुष्कर तीर्थ, शूकर क्षेत्र, कुरुक्षेत्र, गंगा तट, काशी, सातों मोक्षदाईक पुरियां सहित अनेकों स्थानों 
पर श्राद्ध-तर्पण करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है, किन्तु गयातीर्थ में किया गया श्राद्ध-पिंडदान का फल अमोघ 
और पुण्यदाई कहागया है ऐसी मान्यता है कि गया में पिंडदान करने के पश्च्यात जीवात्मा को 
फिर श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती ! इसलिए गया को ही श्रेष्ठतीर्थ मानागया है सभी शास्त्रों-पुराणों में 
इस तीर्थ का फल सर्वाधिक बताया गया है ! शास्त्रों के अनुसार वर्षपर्यंत श्राद्ध करने के 96 अवसर आते हैं ये हैं
 बारह महीने की बारह अमावस्या, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुगके प्रारम्भ की चार तिथियाँ, मनुवों के आरम्भ 
की चौदह मन्वादि तिथियाँ, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ, 
पांच अष्टका पांचअन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने छियानबे अवसर हैं !
पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा उन्हें अक्षत और तिल मिश्रित जल अर्पित करने 
की क्रिया को तर्पण कहते हैं ! तर्पण करना ही पिंडदान करना है अतः सत्य और श्रद्धा से किए गए जिस कर्म से 
हमारे पूर्वज और आचार्य तृप्त हों वह ही तर्पण है ! वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा गया है यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, 
माता, पिता और आचार्य के प्रति एक विशेष तरह का सम्मान का भाव है ! इसी पितृयज्ञ यज्ञ के करने से प्राणी की 
वंश वृद्धि होती है और संतान को सही शिक्षा-दीक्षा भी मिलती है वह व्यक्ति पूर्णतः संपन्न होकर पृथ्वी के 
समस्त ऐश्वर्यों का भोग करता हुआ उत्तम लोक का वासी होता है वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं ब्रह्म यज्ञ, 
देव यज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ, अतिथि यज्ञ, इन पांच यज्ञों के विषय में पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार से 
वर्णन किया गया है। उक्त पांच यज्ञ में से ही एक यज्ञ है पितृयज्ञ ! इसे पुराण में श्राद्ध कर्म की संज्ञा दी गई है ! 
जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है, उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं 
उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पितृलोक चले जाते हैं किसी भी माह की जिस तिथि में 
परिजन की मृतु हुई हो इस श्राद्ध पक्ष (महालय) में उसी संबधित तिथि में श्राद्ध करना चाहियें कुछ ख़ास तिथियाँ 
भी हैं जिनमें किसी भी प्रक्रार की मृत वाले परिजन का श्राद्ध किया जाता है शौभाग्यवती यानि पति के रहते ही 
जिनकी मृत्यु हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है, एकादशी में वैष्णव सन्यासी का 
श्राद्ध चतुर्दशी में शस्त्र, आत्म हत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत लोंगों का श्राद्ध किया जाता है ! इसके अतिरिक्त
सर्पदंश,ब्राह्मण श्राप, वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु के आक्रमण से, फांसी लगाकर मृत्य, क्षय जैसे 
महारोग हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले प्राणी श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के दिन तर्पण 
और श्राद्ध करना चाहिये !जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका भी अमावस्या को ही करना चाहिए !
       पित्रों के स्वामी भगवान् जनार्दन के ही शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उतपत्ति 
हुई है इसलिए तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करना चाहिए ! श्राद्ध में ब्राह्मण भोज का सबसे 
पुण्यदायी समय कुतप, दिन का आठवां मुहूर्त 11बजकर 36मिनट से १२बजकर २४ मिनट तक का समय सबसे 
उत्तम है! शास्त्र मत है की श्राद्धं न कुरुते मोहात तस्य रक्तं पिबन्ति ते ! अर्थात जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितृ 
उनका ही रक्तपान करते हैं और साथ ही, पितरस्तस्य शापं दत्वा प्रयान्ति च !  अतः अमावस्या तक प्रतीक्षा करके
 अपने परिजन को श्राप  देकर पितृलोक चले जाते हैं !  पं जय गोविन्द शास्त्री 

Thursday 19 September 2013


ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति, ग्रहाः राज्यं हरन्ति च !
अर्थात - ग्रह अनुकूल हों तो राज्य दे देतें हैं, और
प्रतिकूल होने पर तत्काल हरण भी कर लेते हैं !!
शास्त्र भी कहते हैं कि-
अहिंसकस्य दान्तस्य धर्मार्जित धनस्य च ! नित्यं च नियमस्थस्य सदा सानु ग्रहा ग्रहाः !!
अहिंसक, जितेन्द्रिय, नियम में स्थित और न्याय से धन अर्जित करने वाले मनुष्यों ग्रहों
की सदा कृपा बरसती रहती है !

Saturday 14 September 2013


श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन (म.प्र ) में दिल्ली की संस्था ''शिवसंकल्पमस्तु''
द्वारा आयोजित विश्वशांति हेतु 'महारुद्र यज्ञ' के समाचार को स्थानीय टेलीविजन/समाचार
पत्रों ने प्रतिदिन प्रमुखता से प्रकाशित करके शिवभक्तों का उत्साह वर्धन किया ! इस सहयोग
के लिए 'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था उन सभी पत्रकार भाईयों, स्थानीय मित्रों/सहयोगियों
को साधुवाद देते हुए उनके सुखद भविष्य की कामना करती हैं !
पं जयगोविन्द शास्त्री ( संस्थापक/अध्यक्ष ) शिवसंकल्पमस्तु संस्था दिल्ली

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पं जयगोविन्द शास्त्री ( संस्थापक/अध्यक्ष ) शिवसंकल्पमस्तु संस्था दिल्ली

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श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन (म.प्र ) में दिल्ली की संस्था ''शिवसंकल्पमस्तु''
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को साधुवाद देते हुए उनके सुखद भविष्य की कामना करती हैं !
पं जयगोविन्द शास्त्री ( संस्थापक/अध्यक्ष ) शिवसंकल्पमस्तु संस्था दिल्ली

Thursday 12 September 2013


'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था ( रजि ) दिल्ली, के संस्थापक-अध्यक्ष पं. जयगोविन्द शास्त्री
विश्वशांति का संकल्प लेकर श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन म.प्र. में महारुद्र यज्ञ
हेतु कलश यात्रा के लिए जाते हुए साथ में संस्था के सभी सदस्य और अलग-अलग
राज्यों से पधारे हुए वैदिक विद्वान ! shivasankalpmastu@gmail.com

Thursday 5 September 2013

................बाकी कुछ बचा तो महँगाई मार गई ! Friends Very Good Morning to all of you ..today You can Read My Artical in AMAR UJALA NEWS PAPER ON SHRDDA ..page !

Sunday 25 August 2013


'जय महाकाल' कई शिवभक्त मित्रों ने हमारी संस्था ''शिवसंकल्पमस्तु''
द्वारा आयोजित महाकाल की नगरी उज्जैन में ०९, १०, ११
सितंबर को ५१ वैदिक विद्वानों द्वारा होने वाले 'महारुद्र यज्ञ'
में सहायता राशि भेजने के लिए बैंक डिटेल मांगा है उन
शिवभक्त मित्रों के लिए संस्था के बैंक खाते का विवरण-
''SHIVASANKALPMASTU'' STATE BANK OF INDIA
BRANCH INDERPRASTHA ESTATE VIKAS BHAVAN
NEW DELHI 110002 CURRENT ACCOUNT NO.
'3316 4919 148' IFSC CODE SBIN 0001187 'जय महाकाल'


Saturday 17 August 2013


  !! रक्षाबंधन निर्विवाद रूप से 20 अगस्त को !!
विष्णु भक्त महात्मा बली एवं विष्णु पत्नी महालक्ष्मी के आपसी स्नेह का पर्व ''राखी'' का पर्व २० अगस्त
को ही मनाया जायेगा ! २० अगस्त को रक्षाबंधन में बाधक सूर्य पुत्री भद्रा का वास स्वर्ग लोक में रहेगा !
''स्वर्गे भद्रा शुभंकरी'' के अनुसार जब भद्रा स्वर्ग लोक में हो तो शुभकारी होती है ! इसलिए २० अगस्त
को सुबह १० बजकर २३ मिनट के बाद किसी भी समय राखी बाँधी जा सकती है किन्तु दोपहर बाद
०३ बजे से ०४ बजकर ३० मिनट के मध्य राहूकाल रहेगा इसलिए इस अवधि के मध्य रक्षासूत्र बाँधने
से परहेज करें !

Saturday 10 August 2013


 नाग पंचमी के पावन पर्व पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं !
नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु,
ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः !!

जो नाग, पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों,
सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते
हैं। वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार
नमस्कार करते हैं !

Thursday 8 August 2013


!! उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु करें नाग पूजा !! 'नाग पंचमी ११ अगस्त '
नाग हमारे शरीर में मूलाधार चक्र के आकार में स्थित हैं एवं उनका फन सहस्रासार चक्र है ! पुराणों में नागोत्पत्ति
के कई वर्णन मिलते हैं ! लिंग पुराण के अनुसार श्रृष्टि सृजन हेतु प्रयासरत ब्रह्मा जी उग्र तपस्या करते हुए हताश
होने लगे तो क्रोधवश उनके कुछ अश्रु पृथ्वी पर गिरे वहीँ पर अश्रुबिंदु सर्प के रूप में उत्पन्न हुए ! बाद में यह ध्यान
में रखकर कि इन सर्पों के साथ कोई अन्याय न हो तिथियों का बंटवारा करते समय भगवान सूर्य ने इन्हें पंचमी तिथि
का अधिकारी बनाया तभी से पंचमी तिथि नागों की पूजा के लिए विदित है इसके बाद ब्रह्मा जी ने अष्टनागों अनन्त,
वासुकि, तक्षक, कर्कोटक,पद्म, महापद्म, कुलिक, और शंखपाल की सृष्टि की, और इन नागों को भी ग्रहों के बराबर
शक्तिशाली बनाया ! इनमें अनन्त नाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक भौम के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के,
महापद्म शुक्र के, कुलिक और शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं ! ये सभी नाग भी सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही
भूमिका निभाते हैं ! इनके सम्मान हेतु गणेश और इन्हें रूद्र यज्ञोपवीत के रूप में, महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु
जी शैय्या रूप में सेवा में लेते हैं ! पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शेषनाग स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं !
गृह निर्माण, पितृ दोष और कुल की उन्नति के लिए नाग पूजा का और भी अधिक महत्व है ! इनकी पूजा
आराधना से सर्पदंश का भय नहीं रहता ! नाग पंचमी के दिन नाग पूजन और दुग्ध पान करवाने का विशेष महत्व है !
पूजा में ''ॐ सर्पेभ्यो नमः" अथवा ॐ कुरु कुल्ले फट स्वाहा ! कहते हुए अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार गंध, अक्षत,
पुष्प, घी, खीर, दूध, पंचामृत, धुप दीप नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए ! पूजन के पश्च्यात इस मंत्र से प्रणाम करें
!! नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु, ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः !!
जो नाग, पृथ्वी, आकाश, स्वर्ण, सूर्य की किरणों, सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं।
वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं इसप्रकार नागपंचमी के दिन सर्पों की पूजा करके
प्राणी सर्प एवं विष के भय से मुक्त हो सकता है पं. जयगोविंद शास्त्री

Tuesday 6 August 2013

                                            !! श्रावण माह में पायें शिव की कृपा !!
वैसे तो सनातन धर्म में प्रत्येक माह,तिथि और वार का अपना अलग अलग महत्व है,किन्तु श्रावण  का माह आते ही हर जीवात्मा चाहे वह ॐ रूपी परमात्मा के किसी भी रूप का पूजक हो, इस माह में शिवमय हो जाता है ! श्रावण का माह शिव पूजा,रुद्राभिषेक,दरिद्रता निवारक अनुष्ठान, मोक्ष प्राप्ति , आसुरी शक्तियों से निवृत्ति,भक्ति प्राप्ति तथा  दैहिक, दैविक,और भौतिक, तीनो तापों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रेष्ट माना गया है !इस माह में एक बेल पत्र भी अगर शिव जी को अर्पित किया जाए तो वह अमोघ फलदायी होता है !
जिस प्रकार मकर राशि पर सूर्य के पहुचने पर सभी देवी-देवता,यक्ष आदि पृथ्वी पर आते हैं,उसी प्रकार कर्क राशिगत सूर्य में भी सभी देवी देवता पृथ्वी पर आते हैं ! और ये सभी भगवान् शिव की आराधना पृथ्वी पर करके अपना पुन्य बढाते हैं, स्वयं भगवान् बिष्णु,ब्रह्मा इंद्र शिवगण आदि सभी श्रावण में पृथ्वी पर ही वास करते हैं और सभी अलग-अलग रूपों में अनेकों प्रक्रार से शिव आराधना करते हैं ! ऐसा माना जाता है की इस माह में की गयी शिव पूजा तत्काल शुभ फलदायी होती है ! इसके पीछे स्वयम शिव का ही वरदान ही है !
समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नामक  विष निकला तो उसके ताप से सभी देवी- देवता भयभीत हो गए ! तीनो लोकों में त्राहि -त्राहि  मच गयी ! किसी के पास भी  इसका निदान नहीं था,उस कालकूट विष से वायु मंडल प्रदूषित होने लगा, जिससे पर जीवन पर घोर संकट आ गया ! तभी सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए, और इस विष से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की ! लोक कल्याण के लिए भोलेनाथ ने इस  विष का पान कर लिया,और उसे अपने गले में ही रोक लिया जिसके प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया और वे नील कंठ कहलाये ! विष के ताप-गर्मी से व्याकुल शिव तीनो लोको में भ्रमर करने लगे पर कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिली,अंत में वे पृथ्वी पर आकर पीपल के वृक्ष के पत्तों को चलता हुआ देख उसके  नीचे बैठगए  जहां कुछ शांति मिली, शिव के साथ ही सभी तैतींस करोड़ देवी-देवता उस पीपल वृक्ष में अपनी शक्ति समाहित कर शिव को सुंदर छाया और जीवन दायीनी  वायु प्रदान करने लगे ! चन्द्रमा ने अपनी पूर्ण शीतल शक्ति से शिव को शांति पहुचाई तो शेषनाग ने गले में लिपटकर उस कालकूट विष के दाहकत्व को कम करने में लग गए !,देवराज इन्द्र  और गंगा माँ निरंतर शिव शीश पर जलवर्षा  करने लगे ! यह जानकर की विष ही विष के असर को कम करसकता है, शभी शिवगण भांग ,धतूर ,बेलपत्र आदि शिव को खिलाने लगे,जिससे भोलेनाथ को शांति मिली ! श्रावण माह कि समाप्ति तक भगवान शिव पृथ्वी पर ही रहे,उन्होंने चन्द्रमाँ, पीपल वृक्ष शेषनाग आदि सभी को वरदान दिया,कि  इस माह में जो भी जीव मुझे पत्र,पुष्प, भांग,धतूर और बेल पत्र आदि चढ़ाए गा! उसे  संसार के तीनो कष्टों दैहिक,यानी स्वास्थय से सम्बंधित , दैविक यानी दैवीय आपदा से सम्बंधित और भौतिक यानी  दरिद्रता से सम्बंधित तीनों  कष्टों से मुक्ति मिलेगी,साथ ही उसे  मेरे लोक की प्राप्ति भी  होगी ! चंद्रमा और शेष नाग पर विशेष अनुग्रह करते हुए शिव ने कहा की जो तुम्हारे दिन सोमवार को मेरी आराधना करेगा वह मानसिक कष्टों से मुक्त हो जायेगा उसे किसी प्रकार की दरिद्रता नहीं सताएगी ! शेष नाग को शिव ने आशीर्वाद  देते हुए कहा की जो इस माह में नागों को दूध पिलाएगा,उसे काल कभी नहीं सताएगा और उसकी वंश बृद्धि  में कोए रुकावट नहीं आएगी ! साथ ही 
उसे सर्प दंश का भय नहीं रहेगा !गंगा माँ को भगवान् शिव ने कहा की जो इस माह में गंगा जल मुझे अर्पित करेगा वह जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जायेगा ! पीपल वृक्ष को आशीर्वाद देते हुए भोले ने कहा कि तुम्हारी शीतल छाया में बैठकर मुझे असीम शांति मिली इस
लिए मेरा अंश तुम्हारे अंदर हमेशा विद्यमान रहेगा,जो तुम्हारी पूजा करेगा उसे मेरी पूजा का फल प्राप्त होगा ! शिव के इस वचन को सुनकर सभी देवों ने उन्हें भांग धतूर,बेलपत्र और गंगा जल अर्पित किया ! इसी लिए  जो इस माह में शिव पर गंगाजल चढाते हैं, वे देव तुल्य हो जाते हैं,साथ ही जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं ! मानशिक परेशानी ,कुंडली में अशुभ चन्द्र का  दोष मकान- वाहन  का सुख और संतान से संबधित चिंता सोमवार को शिव आराधना से दूर हो जाती है ! इस माह में सर्पों को दूध पिलाने कालसर्प-दोष ,से मुक्ति मिलती है, और उसके वंश का विस्तार होता है ! "ॐ नमः शिवाय करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय" का जप करते हुए शिव आराधना करें ! अथवा "काल हरो हर,कष्ट हरो हर, दुःख हरो दारिद्र्य हरो ! नमामि शंकर,भजामि शंकर, शंकर शम्भो तव शरणम् !! का भजन जीवन के सारे दुःख दूर कर देगा ॐ नमः शिवाय ! पं.जय गोविन्द शास्त्री  "वरिष्ठ ज्योतिर्विद"  

Saturday 3 August 2013


 !! परमब्रह्म शिव की अनेकता के रूपों का कीर्तन-आराधन !!
जिन ओंकारस्वरुप परब्रह्म का हम चिंतन करते हैं, श्रुति ने भी जिन्हें सत्य, ज्ञानस्वरुप, अनंत, परमानन्दमय, परम
ज्योतिःस्वरूप, निराकार, निर्विकार, निर्गुण, सर्वव्यापी, योगिगम्य, आधाररहित, मायातीत, अनादि, अनंत, अजन्मा,
जराजन्म से परे कहा है जो नाम तथा रूप-रंग से भी शून्य हैं न स्थूल हैं न कृष्, न ह्रस्व हैं न दीर्घ, न लघु हैं न गुरु,
जिनमें न वृद्धि होती है न ह्रास, जो आत्मारूपी प्रकाश हैं, जो पिंड और ब्रह्मांड दोनों में एकाकार रूप में स्थित
हैं वेद भी जिनके विषय में अधिक जानते श्रृष्टि का सृजन, पालन और प्रलय जिनकी चेष्ठा हैं ब्रह्मलोक जिनके शीश,
पाताल जिनके चरण, ब्रह्मा जिनकी बुद्धि, वेद जिनकी वाणी, प्रलयंकारी मेघ जिनके काले केश, रूद्र जिनके अहंकार,
जिनके बाएं अंग में विष्णु, दाहिये अंग में ब्रह्मा और वक्षस्थल में रूद्र का वास है जिनके अंतर्मन में शक्ति निवास करती हैं
वे ज्योतिस्वरूप अविनाशी परमब्रह्म निराकार ईश्वर भगवान शिव ही हैं ! श्रृष्टिलय के पश्च्यात ब्रह्मांड में अनंतकाल
तक घोर अन्धकार ही रहता है ! ऐसे में परमब्रह्म जब नई श्रृष्टि सृजन हेतु कुछ मायाकौतुक करना चाहते हैं
तो अपने ही तत्सदरूप ब्रह्म में से एक से अनेक करने का संकल्प करते हैं जिनके विग्रह रूप को सदाशिव कहागया है
इन्हीं सदाशिव में संसारी तत्व के रूप में विष्णु जी विद्यमान रहते हैं जो शिवाज्ञा से जीवजगत का भरण पोषण
करते हैं ! इन्हीं शिव में ही शुक्रतत्व के रूप में ब्रह्मा जी भी विद्यमान रहते हैं जो शिवाज्ञा से मैथुनी क्रिया के द्वारा
श्रृष्टि का सृजन करते हैं तथा इन्हीं अनंतशिव का जो अंश कालरूप है जिनके पास जीवों को कर्मानुसार जन्म-मरण
के द्वारा जीवन-मृत्यु देने का अधिकार है वे भी काल के भी काल अर्थात महाकाल भगवानरूद्र सदाशिव ही हैं
भक्तवत्सल महादेव अपने भक्तों की रक्षा के लिए, उनके कष्टों को दूर करने हेतु अपने एक और मृत्युंजय रूप में
भी प्रकट होकर जीवों का कल्याण करते हैं इनका महामृत्युंजय स्वरूप जनमानस को ही नहीं, देवाताओं को भी
अन्यन्त प्रिय है देवता भी इनकी कृपा का आश्रय पाने के लिए निरंतर इन्हीं ईश्वर सदाशिव का ही ध्यान करते रहते हैं
मृत्युलोक के प्राणी इनके रूद्र रूप की सर्वाधिक पूजा करते हैं जो 'रुद्राभिषेक' के रूप में जाना जाता है !
रूद्र अभिषेक अकाल मृत्यु नाशक, त्रिबिधतापों दैहिक, दैविक एवं भौतिक दुखों से मुक्ति दिलाकर शिवत्व प्राप्त कराता है
इनका जल से अभिषेक करने से सूखा-अकाल का संकट दूर होता है, कुश और जल से अभिषेक करने मात्र से मानव शरीर
 की समस्त व्याधियाँ दूर हो जाती हैं, शहद अथवा घी से रूद्र का भक्तिभाव से अभिषेक किया जाय तो भगवान रुद्रदेव
 प्राणियों को कर्जमुक्ति दिलाते हुए सफल उद्यमी बनाते हैं दूध से योग्य संतान प्राप्ति, दूध एवं मिश्री
से ज्ञान एवं गंगाजल से मुक्ति प्रदान करते हैं ! सभी रसों में श्रेष्ठ गन्ने के रस से अभिषेक करने मात्र से ही प्राणियों को
 सुंदर मनोकूल पति/पत्नी तथा ख्याति प्राप्त कराते हैं व्यक्ति देश-विदेश में खूब मान-सम्मान प्राप्त करता है !
त्रिलोकवासी इनके रूद्र एवं मृत्युंजय  दोनों रूपों की सर्वाधिक पूजा करते हैं जहां इनका रूद्ररूप दैहिक, दैविक और भौतिक
तीनों तापों से मुक्ति दिलाकर जीवन मरण के बंधन से मुक्त करके मोक्ष प्रदान करता है वहीँ मृत्युंजय स्वरूप अकाल मृत्यु
का हरण करके आयु-आरोग्य की वृद्धि करता है इन्हीं की कृपा से प्राणी मरणासन्न अवस्था में भी म्रत्यु पर विजय
प्राप्त करलेता है जन्मकुंडली में अशुभ गोचर, मारकेश की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यांतरदशा, सूक्ष्म एवं प्राणदशा,
शनिदेव की शाढेसाती, ढैया अथवा छठें, आंठवें और बारहवें भाव के स्वामी तथा अकारक ग्रहों का दोष भी नष्ट हो जाते हैं !
इनकी कृपा प्राप्ति के पश्च्यात कुछ भी पाना शेष नही रहजाता ! इनकी आठों मूर्तियों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश
 सूर्य, चन्द्रमा तथा यजमान की पूजाकरके प्राणी संसार के सभी ऐश्वर्य भोगता है ! यदि भक्ति भाव से इनके परिवार के
सभी दस सदस्यों ईशान, नंदी, चंड, महाकाल, भृंगी, बृषभ, स्कन्द, कपर्दीश्वर, सोम, तथा शुक्र की रुद्र्पूजा के समय आराधना
की जाय तो परमब्रह्म शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है प्राणी में शिवोऽहं का भाव ही स्वतः आ जाता है और व्यक्ति में
जीवों के कल्याण की भावना जागृत होती है !इन परमब्रह्म सदाशिव ने जब अपने विग्रहरूप से श्रृष्टि की रचना आरम्भ की तो
सर्व प्रथम अपने ही शरीर से स्त्रीतत्व शक्तिस्वरूपा प्रकृति को प्रकट किया जो पराम्बा अंबिका के रूप जानी जाती हैं
जिन्हें प्रकृति, सर्वेश्वरी, गुणवती, माया, श्रद्धा, योनिरुपा, और नित्या कहागया है सदाशिव द्वारा प्रकट की गयी इन
पराशक्ति की आठ भुजाएँ है वे विचित्र मुखवाली नित्यस्वरूपा परमसत्य शिव की ही शक्ति हैं ! इनके मुख की
कान्ति हज़ारों चन्द्रमा को भी लज्जित करदेने वाली थी ! ये नाना प्रकार के आभुषणों एवं
सभी अस्त्र-शस्त्रों को धारण करती हैं इन्हें ही शिवशक्ति कहागया है तत्पश्च्यात कुछ काल के पश्च्यात शिवशक्ति ने
एक त्रैलोक्य सुंदर पुरुष उत्पन्न किया जो शांत सर्वगुण संपन्न और गंभीरता में सागर के समान थे उनके शरीर का वर्ण
इन्द्रनील मणि के समान था नेत्र कमल के समान शोभा पा रहे थे ये विशाल भुजावों वाले युद्ध में अजेय थे !
इन्होने सदाशिव को प्रणाम किया और अपनानाम पूछा तो ईश्वर ने कहाकि वत्स सर्वत्र व्याप्त होने के कारण तुम इस
संसार में 'विष्णु' नाम से जाने जाओगे भक्तों के कल्याण में लगे रहने एवं भक्तों के वश में रहने के फलस्वरूप तुम्हारें
और भी असंख्य नाम होंगे जिनके स्मरण मात्र से भक्तों की सभी कठिनाइयां दूर हो जाएंगी !
इस प्रकार विष्णु को अनेकों वरदान एवं श्रृष्टि के सभी अधिकार देकर शिव शक्ति के साथ अविमुक्त क्षेत्र काशी चले गए !
भगवान शिव के संसारी रूप विष्णु ने सर्व प्रथम प्रकृति को उत्पन्न किया फिर महतत्व और उसके पश्च्यात सतोगुण,
तमोगुण और रजोगुण को उत्पन्न किया ! इन्हीं गुणों के भेद से अहंकार, अहंकार से पांच तन्मात्रायें और इनसे पंचभूतों
सहित चौबीस तत्वों को उत्पन्न किया ! महादेव के अंतस्थल में ही वैरागी स्वरूप शमशान का भी वास रहता है !
इनकी पूजा राक्षस, दैत्य-दानव, देव, नाग, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर, ऋषि, मुनि, योगी, यति, हठयोगी आदि सामान रूप
 करते हुए यही प्रार्थना करते हैं कि, शिवे भक्तिः शिवे भक्तिः शिवेभक्तिः भवे भवे !
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम !! अर्थात- प्रत्येक जन्म में मेरी शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो,
शक्ति में भक्ति हो ! शिव के शिवा दूसरा कोई मुझे शरणं देने वाला नहीं ! महादेव आप ही मेरेलिए शरण दाता हैं !
इस तरह अपने-अपने श्रद्धा-भाव के अनुसार आराधना करके प्राणी शिव का सानिध्य प्राप्त करते हैं ! पं जय गोविन्द शास्त्री


Thursday 1 August 2013


                      !! त्रिबिध तापों से मुक्ति साधन है, ''रुद्राभिषेक'' !!
'रुतम्-दुःखम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्रः' अर्थात जो सभी प्रकार के 'रुत' दुखों को विनष्ट करदेते हैं वै ही रूद्र हैं !
ईश्वर, शिव, रूद्र, शंकर, महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं ! ब्रह्म का विग्रह-साकार रूप शिव है ! इन शिव
की शक्ति शिवा हैं इनमें सतोगुण जगत्पालक विष्णु हैं एवं रजोगुण श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं ! श्वास वेद हैं ! सूर्य चन्द्र नेत्र हैं !
वक्षस्थल तीनों लोक और चौदह भुवन हैं विशाल जटाओं में सभी नदियों पर्वतों और तीर्थों का वास है जहां श्रृष्टि के सभी
ऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्या रत रहते हैं ! वेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मा ईश्वर शिव के श्वाँस से
विनिर्गत हुए हैं इसीलिए वेद मन्त्रों के द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप, यज्ञ आदि करके प्राणी शिव की कृपा
सहजता से प्राप्त करलेता है ! रुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के पश्च्यात् प्राणी को फिर किसी
भी पूजा की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि- ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, ब्रह्मा विष्णु भी रूद्रमय ही हैं ! शिवपुराण के अनुसार
वेदों का सारतत्व, 'रुद्राष्टाध्यायी' है जिसमें आठ अध्यायों में कुल १७६ मंत्र हैं, इन्हीं मंत्रो के द्वारा त्रिगुण स्वरुप रूद्र का
पूजनाभिषेक किया जाता है शास्त्रों में भी कहागया गया है कि शिवः अभिषेक प्रियः अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है !
रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के 'शिवसंकल्पमस्तु' आदि मंत्रों से 'गणेश' का स्तवन किया गया है द्वितीय अध्याय
पुरुषसूक्त में नारायण 'विष्णु' का स्तवन है तृतीय अध्याय में देवराज 'इंद्र' तथा चतुर्थ अध्याय में भगवान 'सूर्य' का
स्तवन है पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है तो छठे में सोम का स्तवन है इसी प्रकार सातवें अध्याय में 'मरुत' और आठवें
अध्याय में 'अग्नि' का स्तवन किया गया है अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है !
अतः रूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है !
रुद्राभिषेक में श्रृष्टि की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने की शक्ति है अतः अपनी आवश्यकता अनुसार अलग-अलग
 पदार्थों से अभिषेक करके प्राणी इच्छित फल प्राप्त कर सकता है इनमें दूध से पुत्र प्राप्ति, गन्ने के रस से यश
उतम पति/पत्नी की प्राप्ति, शहद से कर्ज मुक्ति, कुश एवं जल से रोग मुक्ति, पंचामृत से अष्टलक्ष्मी तथा तीर्थों के जल
 से मोक्ष की प्राप्ति होती है सभी बारह ज्योतिर्लिंगों पर अभिषेक करने प्राणी जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर
शिव में विलीन होजाता है ! पिता दक्ष प्रजापति के घर शरीर त्यागने के पश्च्यात माता सती ने श्रावण में पुनः तपस्या
करके शिव को पति रूप प्राप्त करलिया था तभी से शिव को श्रावण का माह अति प्रिय है सम्पूर्ण श्रावणमाह शिव पृथ्वी पर
वास करते हैं अतः इस महीने में रुद्राभिषेक करने से शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, 'शिवसंकल्पमस्तु' ! पं जयगोविन्द शास्त्री

शिवसंकल्पमस्तु एक सामाजिक संस्था है जिसका उद्देश्य समाज कल्याण एवं जन-मानस को वेद-पुराणों
की शिक्षा देते हुए वैदिक परंपरा को आगे ले जाना है ! इस संस्था ने सभी बारह ज्योतिर्लिंगों
पर महारुद्र यज्ञ एवं शिवकथा करने का संकल्प लिया है !    अध्यक्ष - पं जयगोविंद शास्त्री
shivasankalpmastu@gmail.com   mb.+91 98685 35099
शिवसंकल्पमस्तु एक सामाजिक संस्था है जिसका उद्देश्य समाज कल्याण एवं जन-मानस को वेद-पुराणों
की शिक्षा देते हुए वैदिक परंपरा को आगे ले जाना है ! इस संस्था ने सभी बारह ज्योतिर्लिंगों
पर महारुद्र यज्ञ एवं शिवकथा करने का संकल्प लिया है !    अध्यक्ष - पं जयगोविंद शास्त्री
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शिवसंकल्पमस्तु एक सामाजिक संस्था है जिसका उद्देश्य समाज कल्याण एवं जन-मानस को वेद-पुराणों
की शिक्षा देते हुए वैदिक परंपरा को आगे ले जाना है ! इस संस्था ने सभी बारह ज्योतिर्लिंगों
पर महारुद्र यज्ञ एवं शिवकथा करने का संकल्प लिया है !    अध्यक्ष - पं जयगोविंद शास्त्री
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