Thursday 8 December 2016

मंगलवार को इंडिगो एयरलाईन द्वारा दिल्ली से लखनऊ की यात्रा के मध्य सपा अध्यक्ष आदरणीय श्रीमुलायम सिंह यादव जी के साथ मुलाक़ात/वार्ता अविस्मरणीय रही | उनकी शालीनता-सादगी बेमिशाल थी, उन्होंने मुझसे पूछा कि आजकल अमरउजाला' में लिखना बंद क्यों कर दिया ! मैं तो अवाक़ रह गया और अपनी व्यस्तता का हवाला देकर कहा कि नेता जी मैं शीघ्र ही लिखना आरम्भ करूँगा |

Sunday 2 October 2016

अच्छे विद्यार्थी बनने के लिए करें माँ ब्रह्मचारिणी का स्तवन- पं जयगोविन्द शास्त्री
ब्रह्मं चारयितुम शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी
अर्थात- जो ब्रह्मज्ञान दिलाकर मोक्ष मार्ग को प्रसस्त करे वे ही माँ ब्रह्म चारिणी हैं | माँ शक्ति का दूसरा रूप देवी ब्रह्म चारिणी का है जिस प्रकार नवधा भक्ति में परमेश्वर प्राप्ति के नौ मार्ग बताये गए हैं उसी प्रकार देवी सती भी नौ रूपों के द्वारा अलग-अलग तप करके परमेश्वर श्री शिव को प्राप्त किया | तभी इन नौ दुर्गाओं को नवधा भक्ति का सूक्ष्म तत्व भी कहा जाता है ये वही माँ हैं जो भक्तों को मोहजाल से मुक्ति दिलाती हैं |नवरात्र के दूसरे दिन इन्हीं माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-आराधना की जाती है | साधक इस दिन अपने मन को माँ के श्रीचरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और माँ की कृपा प्राप्त करते हैं | ऋषि मुनियों ने कहा है कि 'वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेदतत्व और ताप का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है, इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है | श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं | अपनी कुंडलिनी जागृत करने के लिए साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं |माँ का ध्यान मंत्र इस प्रकार है- 'दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
पूजन विधि -
माँ मूलरूप से तपस्विनी हैं भगवान् शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्ष तक घोर तपस्या की और जंगल के फलों-पत्तों को खाकर अपनी साधना पूर्ण की और शिव को प्राप्त किया इसलिए इनका का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है | मात्र एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में चन्दन माला लिए हुए प्रसन्न मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य क्रोध रहित और तुरन्त वरदान देने वाली देवी हैं | नवरात्र के दूसरे दिन शाम के समय देवी के मंडपों में ब्रह्मचारिणी दुर्गा का स्वरूप बनाकर उसे सफेद वस्त्र पहनाकर हाथ में कमंडल और चंदन माला देने के बाद फल, फूल एवं धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करके आरती करने का विधान है | इनकी आराधना में ॐ या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: || इस सबसे सरल मंत्र के द्वारा पूजा के लिए लाये गए पदार्थों को अर्पित करना चाहिए |लाभ- इनकी आराधना से घर में सौम्य लक्ष्मी का वास रहता है दरिद्रता दरवाजे से वापस चली जाती है | विद्यार्थियों के लिए इनकी आराधना करना अति लाभप्रद रहता है उन्हें किसी भी तरह की शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता और गृहस्थों के लिए सदैव सुख शान्ति बनी रहती है | पं जयगोविन्द शास्त्री

Friday 30 September 2016

माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद लायेगा परिवार में खुशहाली-   पं जयगोविन्द शास्त्री
शारदीय नवरात्र में नौदुर्गा पूजन के क्रम में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा आराधना की जाती है | इन्हीं की आराधना से हम सभी मनोवांछित फल
प्राप्त कर सकते हैं | पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था | माँ का वाहन
वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है | अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं
इनका विवाह भगवान शिव से हुआ था | प्रजापति दक्ष अपने जमाईराज को पसंद नहीं करते थे जिसके कारण एकबार यज्ञ करने के अवसर पर उन्होंने
अपने दामाद शिव को यज्ञ में सम्लित होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया जिसके परिणाम स्वरूप उनकी पत्नी सती ने बिना बुलाये ही पिता से प्रश्न करने के
लिए यज्ञ में सम्लित होने गईं वहाँ अपने पति भगवान शिव के विषय में अशोभनीय बातें सुनकर अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दिया |
और अगले जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं | इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं |
नव दुर्गाओं में माँ शैलपुत्री का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं ये सहजभाव से भी पूजन करने पर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं |
इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं | यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है तभी माँ के इसी स्वरूप का आज के दिन
ध्यान-पूजन किया जाता है |  माँ की आराधना करने के लिए इन मन्त्रों के द्वारा ध्यान करें |
ध्यान-
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम् | वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम् ||
पूर्णेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम् ||
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
अर्थात- माँ वृषभ पर विराजित हैं | इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है, और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं |
इन्ही के पूजन के साथ नवरात्र का शुभारंभ होता है इनकी पूजा में लाल पुष्प, का प्रयोग उत्तम रहेगा
गृहस्थों के लिए माँ शैलपुत्री की पूजा बिधि-
नवरात्र के प्रथम दिन सुबह स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान् गणेश नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ-साथ कलश स्थापन करें |
कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक आदि लिख दें | कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा
घर के आँगन से पोर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर  सात प्रकार के अनाज रखें, संभव हो तो नदी की रेत रखें फिर जौ भी डाले इसके उपरांत कलश में जल
गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें फिर ॐ भूम्यै नमः कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित
रेत के ऊपर स्थापित करें, अब कलश में थोडा और जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः कहें और जल से भर दें इसके बाद आम का पल्लव या
पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर में से किसी भी वृक्ष का पल्लव कलश के ऊपर रखें तत्पश्च्यात जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर
रखें और अब उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखें | हाथ में हल्दी, अक्षत पुष्प लेकर इच्छित संकल्प लें
पश्च्यात इस मंत्र से दीप पूजन करें | ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः ! दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते | यह मंत्र पढ़ें !
माँ की आराधना के समय नवार्ण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ! से सभी पूजन सामग्री अर्पण कर सकते हैं इस प्रक्रार माँ की कृपा से आपके घर
में दुःख-दारिद्र्य कलह,और निर्धनता का प्रवेश कभी नही होगा | पं जयगोविन्द शास्त्री
माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद लायेगा परिवार में खुशहाली-   पं जयगोविन्द शास्त्री
शारदीय नवरात्र में नौदुर्गा पूजन के क्रम में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा आराधना की जाती है | इन्हीं की आराधना से हम सभी मनोवांछित फल
प्राप्त कर सकते हैं | पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था | माँ का वाहन
वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है | अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं
इनका विवाह भगवान शिव से हुआ था | प्रजापति दक्ष अपने जमाईराज को पसंद नहीं करते थे जिसके कारण एकबार यज्ञ करने के अवसर पर उन्होंने
अपने दामाद शिव को यज्ञ में सम्लित होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया जिसके परिणाम स्वरूप उनकी पत्नी सती ने बिना बुलाये ही पिता से प्रश्न करने के
लिए यज्ञ में सम्लित होने गईं वहाँ अपने पति भगवान शिव के विषय में अशोभनीय बातें सुनकर अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दिया |
और अगले जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं | इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं |
नव दुर्गाओं में माँ शैलपुत्री का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं ये सहजभाव से भी पूजन करने पर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं |
इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं | यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है तभी माँ के इसी स्वरूप का आज के दिन
ध्यान-पूजन किया जाता है |  माँ की आराधना करने के लिए इन मन्त्रों के द्वारा ध्यान करें |
ध्यान-
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम् | वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम् ||
पूर्णेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम् ||
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
अर्थात- माँ वृषभ पर विराजित हैं | इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है, और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं |
इन्ही के पूजन के साथ नवरात्र का शुभारंभ होता है इनकी पूजा में लाल पुष्प, का प्रयोग उत्तम रहेगा
गृहस्थों के लिए माँ शैलपुत्री की पूजा बिधि-
नवरात्र के प्रथम दिन सुबह स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान् गणेश नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ-साथ कलश स्थापन करें |
कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक आदि लिख दें | कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा
घर के आँगन से पोर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर  सात प्रकार के अनाज रखें, संभव हो तो नदी की रेत रखें फिर जौ भी डाले इसके उपरांत कलश में जल
गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें फिर ॐ भूम्यै नमः कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित
रेत के ऊपर स्थापित करें, अब कलश में थोडा और जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः कहें और जल से भर दें इसके बाद आम का पल्लव या
पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर में से किसी भी वृक्ष का पल्लव कलश के ऊपर रखें तत्पश्च्यात जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर
रखें और अब उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखें | हाथ में हल्दी, अक्षत पुष्प लेकर इच्छित संकल्प लें
पश्च्यात इस मंत्र से दीप पूजन करें | ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः ! दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते | यह मंत्र पढ़ें !
माँ की आराधना के समय नवार्ण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ! से सभी पूजन सामग्री अर्पण कर सकते हैं इस प्रक्रार माँ की कृपा से आपके घर
में दुःख-दारिद्र्य कलह,और निर्धनता का प्रवेश कभी नही होगा | पं जयगोविन्द शास्त्री

Friday 29 July 2016

शिवकृपा प्राप्ति का मुख्य पर्व 'श्रावण शिवरात्रि' सोमवार को- PT JAIGOVIND SHASTRI ASTROLOGER
यूँ तो सनातन धर्म में सृष्टि संहार के स्वामी श्रीरूद्र की उपासना के लिए श्रावण माह को सर्वाधिक पुण्यफलदाई माना गया है, किन्तु इसवर्ष पड़ने वाली 'श्रावण शिवरात्रि' को सोमवार दिन भी है इसलिए यह 'अमृतयोग' तुल्य शुभमुहूर्तयोग बन गया है ऐसे में प्राणियों को इस दिन शिवोपासना अथवा रुद्राभिषेक का कोई भी सुअवसर खोना नहीं चाहिए | सम्पूर्ण श्रावणमाह में शिव-शक्ति पृथ्वी पर ही निवास करते हैं अतः सभी देव-दनुज, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, शिवगण, शिव भक्त आदि 'शिवः अभिषेक प्रियः, श्रावणे पूजयेत शिवम्' आदि-आदि सूक्तिओं के संकेत से भगवान् रूद्र की आराधना एवं अभिषेक करते हैं | इस माह के आरम्भ होते ही शिवभक्त कांवडि़ये हरिद्वार, ऋषिकेश और गोमुख से गंगाजल भरकर कांवड़ उठाये अपने-अपने घर को लौटते हैं | मार्ग में इन शिवभक्तों द्वारा ॐ नमः शिवाय, बोल बं, 'बम-बम भोले' आदि के उद्घोष से पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है | वेदों के अनुसार 'मुमुक्षुः तीर्थ वारिणाः' | शिवरात्रि के दिन किसी भी तीर्थजल, समुद्र्जल, गंगाजल से अभिषेक शिव को अतिशय प्रिय है, किन्तु गंगाजल के द्वारा भगवान शंकर का अभिषेक सर्वोत्तम माना गया है | ऋषियों का कहना है कि 'भावी मेट सकहिं त्रिपुरारी | अर्थात- ब्रह्मा जी द्वारा प्राणियों के भाग्य में लिखा गया त्रिबिध दुःख भी भगवान् शिव ही समाप्त कर सकते हैं | जो श्रद्धालु मंदिर नहीं जा पाते हैं, वे घर में ही रखे शिव परिवार का अभिषेक कर सकते हैं सभी गृहस्थ शिवभक्तों को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि घर में दो शिवलिंग न हों और अभिषेक करने के समय शिव परिवार के सभी सदस्य, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी एवं आभूषण नागदेवता सभी शिवलिंग के चारों ओर विराजमान रहें | वैरागियों, साधुसंतों, बालब्रह्मचारियों, घर-पारिवार से मुक्त शिवभक्तों के लिए ऐसा करना अनिवार्य नहीं है, वै केवल शिवलिंग की ही पूजा करते हैं, उनके लिए कहागया है कि 'शिवलिंगेपि सर्वेषां देवानां पूजनं भवेत' अर्थात शिवलिंग पर ही सभी देवों का भी अभिषेक करें | शुक्ल यजुर्वेद में विभिन्न द्रव्यों से भगवान शिव का अभिषेक करने का फल बताया गया है | गन्ने के रस से शीघ्र विवाह श्री एवं धन प्राप्ति, शहद कर्जमुक्ति एवं पूर्ण पति का सुख, दही से पशुधन की वृद्धि, कुश एवं जल से आरोग्य शरीर, मिश्री एवं दूध से उत्तम विद्या प्राप्ति, कच्चे दूध से पुत्र सुख, और गाय के घी द्वारा रुद्राभिषेक करने पर सर्वकामना पूर्ण होती है | भगवान रूद्र को भस्म, लाल चंदन, रुद्राक्ष, आक का फूल, धतूरा फल, बिल्व पत्र और भांग विशेष रूप से प्रिय हैं अतः इन्ही पदार्थों से आगामी श्रावण शिवरात्रि सोमवार 1अगस्त को शिवपूजन करें | पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 7 July 2016

सूर्य, बुध एवं शुक्र के एक साथ आने से बनेगा अद्भुद योग- PT JAIGOVIND SHASTRI ASTROLOGER
ग्रह अनुकूल हों तो दीन दरिद्र को भी राजपाट दे देते हैं लेकिन प्रतिकूल हों तो राजा को भी रंक बना देते हैं इस तरह के अनेकों उदाहरणदेखे भी गए हैं अतः ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव से कोई नहीं बच सका | कुछ इसी तरह के ग्रह संयोग इनदिनों बनने वाले हैं | वर्तमानमें सूर्य, बुध और शुक्र एक साथ कर्क राशि में मिलने वाले हैं शुक्र पहले से ही कर्क राशि में हैं, बुध 11 जुलाई को और सूर्य 16 जुलाईको पहुचेंगें जिसके परिणाम स्वरूप 'त्रिग्रही' योग का निर्माण होगा जिसका भारतवर्ष और जनमानस प्रभाव कुछ इस तरह पड़ेगा |स्वतंत्र भारत की प्रभाव राशि कर्क है और पन्द्रह अगस्त सन् उन्नीस सौ सैतालीस मध्यरात्रि के समय जब भारतवर्ष को आज़ादी मिली तो उस समय भीकर्क राशि में ही सूर्य, बुध और शुक्र एक साथ विराजमान थे | इस अवधि में इन ग्रहों द्वारा निर्मित 'त्रिग्रही' योग देश की प्रगति के लिए अति उत्तम हैक्योंकि वर्तमान संवतवर्ष के भी राजा शुक्र और मंत्री बुध ही हैं जिसके फलस्वरूप आने वाला समय देश और देश की जनता के लिए अति शुभ रहेगा |वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की जन्मकुंडली में बिगत तीन महीने से बना हुआ अशुभ ग्रह गोचर भी समाप्त हो जाएगा | इनदिनों बनने वालेयोगों के प्रभाव से भारत सरकार के द्वारा लोकसभा में लाये गये बिल तो आसानी से पास होंगे ही बल्कि पन्द्रह अगस्त से पहले जी,एस,टी बिल भी आजाए तो उसपर भी बात बन सकती है | स्टॉक मार्केट की दृष्टि से भारतवर्ष की कुंडली और वर्तमान सरकार की कुंडली के ग्रह अति सकारात्मकफल देने वाले हैं जिसके परिणाम स्वरूप यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग हो जाने के बावजूद भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्किबैंकिंग सेक्टर्स, बीमा, आई टी, मेटल्स, हैवी इंडस्ट्री जैसे क्षेत्रों में निवेशकों का रुझान तो बढेगा ही साथ कमोडिटी सेक्टर्स में लॉन्गटर्म के निवेशकों के लिए भीलाभ के अच्छे योग रहेंगें | मोदी सरकार के शपथग्रहण के समय की तुला लग्न की कुंडली के अनुसार यह योग दशमकर्म भाव में बनरहा रहा है यह केंद्र औरकर्म दो नामो से जाना जाता है अतः सरकार के द्वारा किये जारहे कार्य एवं आरम्भ की गई कल्याणकारी योजनायें अति प्रभावशाली ढंग से कार्य करेंगी | केंद्रसरकार के मंत्रियों में नई ऊर्जा का संचार होगा | कृषक वर्ग के लिए यह योग अति कल्याणकारी रहेगा | इन ग्रहों का एक नकारत्मक प्रभाव यह रहेगा किजलतत्व की राशि कर्क में इनका मिलन अतिवर्षा एवं देश के कई भागों में अतिबाढ़ जैसे हालात उत्पन्न कर सकता है | पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 23 June 2016

मानसिक विकारों और कुष्ट रोगों से मुक्ति दिलाती है, 'योगिनी एकादशी'
परमेश्वर श्री विष्णु ने मानवकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों को मिलाकर कुल छबीस एकादशियों को प्रकट किया | कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली इन एकादशियों के नाम और उनके गुणों के अनुसार ही उनका नामकरण भी किया | इनमें उत्पन्ना, मोक्षा, सफला, पुत्रदा,षट्तिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, निर्जला, देवशयनी और देवप्रबोधिनी आदि हैं | सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने का सामर्थ्य हैं इनकी पूजा-आराधना करनेवालों को किसी और पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि, ये अपने भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति कराकर उन्हें विष्णुलोक पहुचाती हैं | इनमे 'योगिनी' एकादशी तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्मरोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है | पद्मपुराण के अनुसार 'योगिनी' एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के समान है |साधक को इसदिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को 'ॐ नमोऽभगवते वासुदेवाय' मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चंदन, जनेऊ गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, ताम्बूल, नारियल आदि अर्पित करके कर्पूर से आरती उतारनी चाहिए | योगिनी एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप,गुण और यश देने वाली है | इस एकादशी के संदर्भ में पद्मपुराण में एक कथा भी है जिसमे धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ ! अलकापुरी में राजाधिराज महान शिवभक्त कुबेर के यहाँ हेममाली नाम वाल यक्ष रहता था | उसका कार्य नित्यप्रति भगवान शंकर के पूजनार्थ मानसरोवर से फूल लाना था | एक दिन जब पुष्प लेकर आरहा था तो मार्ग से कामवासना एवं पत्नी 'विशालाक्षी' के मोह के कारण अपने घर चला गया और रतिक्रिया में लिप्त होने के कारण उसे शिव पूजापुष्प के ने पुष्प पहुचाने की बात याद नही रही | अधिक समय व्यतीत होनेपर कुबेर क्रोधातुर होकर उसकी खोज के लिए अन्य यक्षों को भेजा | यक्ष उसे घर से दरबार में लाये उसकी बात सुनकर क्रोधित कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया | शाप से कोढ़ी होकर हेम माली इधर-उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ॠषि के आश्रम में जा पहुँचा और करुणभाव से अपनी व्यथा बताई | ॠषि ने अपने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और उसके सत्यभाषण से प्रसन्न होकर योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी | हेममाली ने व्रत का आरम्भ किया और व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया | पं जयगोविन्द शास्त्री

Saturday 7 May 2016

अक्षयफल प्रदान करने वाली 'अक्षय तृतीया' 09 मई को- पं जयगोविन्द शास्त्री
माँ पार्वती द्वारा अक्षुणफल देने और श्रेष्ठतम् मुहूर्त के रूप में वरदान प्राप्त वैशाख शुक्ल तृतीया 09 मई सोमवार को है | सनातम धर्म का कोई भी
कार्य जिसके लिए मुहूर्त न निकल रहा हो वो भी इस स्वयंसिद्ध मुहूर्त में किया जा सकता है | इसके अतिरिक्त वैदिक एवं पौराणिक शास्त्रों ने चैत्रमाह के शुक्लपक्ष की रामनवमी, वैशाख शुक्लपक्ष की अक्षयतृतीया, आश्विन शुक्लपक्ष की विजयदशमी, कार्तिक शुक्लपक्ष की देवोत्थानी एकादशी और माघ शुक्लपक्ष की बसंत पंचमी को भी अमोघ पुण्यफलदाई मुहूर्तों में गणना की है | इसीदिन त्रेतायुग का आरम्भ, भगवान के परशुराम, नरनारायण एवं हयग्रीव अवतारों का प्रादुर्भाव हुआ | इन मुहूर्तों के मध्य किया गया कोई भी कार्य कभी भी निष्फल नहीं होता | अतः भूमिपूजन, नये व्यापार का शुभारम्भ, गृहप्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, जप-तप, पूजा-पाठ, एवं दान-पुण्य का फल अक्षय रहता है | इसीलिए हर प्राणी को इसदिन का पूर्ण सदुपयोग अच्छे कार्यों और समाज की भलाई के लिए किये जाने वाले कर्मों के लिए करना चाहिए | वाराहकल्प की इस तिथि को मानव कल्याण हेतु माँ पार्वती ने शक्ति संपन्न किया है | वे कहती हैं कि जो नारियां संसार के सभी प्रकार का सुख-वैभव चाहती हैं उन्हें अक्षयतृतीया का व्रत करना चाहिए | व्रत के दिन नमक नहीं खाना चाहिए | माँ पार्वती कहती हैं कि यही व्रत करके मैं भगवान् शिव के साथ आनंदित रहती हूँ | उत्तम पति की प्राप्ति के लिए कुँवारी कन्याओं को भी यह व्रत करना चाहिए | जिनको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही हो वे भी यह व्रत करके संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं | मनुष्य को इसदिन झूट बोलने, पापकर्म करने और दूसरों को आत्मिक कष्ट पहुचाने से बचना चाहिए क्योंकि, इसदिन किया गया पाप कभी नष्ट नहीं होता वह हर जन्म में जीव का पीछा करता हुआ उसे प्रताणित करता है | इसदिन जगतगुरु भगवान् नारायण की लक्ष्मी सहित गंध, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धुप, दीप नैवैद्य आदि से पूजा करनी चाहिए | अगर भगवान् विष्णु को गंगा जल और अक्षत से स्नान करावै तो मनुष्य को राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है प्राणी सब पापों से मुक्त हो जाता है | यहदिन वृक्षारोपण के लिए सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, इसदिन पंचपल्लव जिनमें पीपल, आम, पाकड़, गूलर, बरगद, और पञ्चअमृत वृक्ष जिनमें आंवला, बेल, जामुन, हरर और बहेड़ा अथवा अन्य फलदार वृक्ष लगाने से मनुष्य सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है | जिसप्रकार अक्षयतृतीया को लगाये गये वृक्ष हरे-भरे होकर पल्लवित- पुष्पित होते हैं उसी प्रकार इसदिन वृक्षारोपण करने वाला प्राणी भी कामयाबियों के शिखर पर पहुंचता है, अतः आनेवाले अक्षय मुहूर्त को पूर्ण सदुपयोग करना चाहिए |

Thursday 24 March 2016

शनि हुए वक्री बढ़ेगी अराजकता
आज 25 मार्च दोपहरबाद 03 बजकर 17 मिनट पर ज्येष्ठा नक्षत्र के द्वितीय चरण एवं बृश्चिक राशि पर शनि वक्री हो रहे हैं ये पुनः 13 अगस्त को
अनुराधा नक्षत्र के चतुर्थ चरण एवं बृश्चिक राशि पर मार्गी होंगे | इसप्रकार शनि 4 माह 19 दिनतक वक्र गति से चलेंगें | मार्गी का विलोम शब्द वक्री होता है, जिसका अर्थ है टेढ़ा चलना अथवा मुह फेर लेना | इसे आप व्यावहारिक भाषा में शनि का मुह फेर लेना भी कह सकते हैं | इसलिए जिन राशि के जातकों की जन्मकुंडलियों में शनि शुभ स्थान अथवा शुभ गोचर में चल रहे हैं उनके लिए तो वक्री शनि अच्छे नहीं कहे जायेगें क्योंकि आपकी मदद करने वाले ने आपसे मुह फेर लिया, किन्तु जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में शनि अशुभफलकारक हैं अथवा गोचर में अशुभ भाव में चलरहे हैं उनके लिए तो राहत है क्योंकि प्रताड़ित करने पीछे मुड़ गया | जिन असामाजिक तत्वों अथवा आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे नेताओं, अधिकारियों को शनि दंड दे रहे थे वै अब राहत की साँस लेगें और अवसर मिलते ही पुनः अनैतिक गतिविधियों में लग जायेंगें | देश द्रोहियों एवं गद्दारों का वर्चस्व पुनः बढ़ने लगेगा वै बेलगाम हो जायेंगें क्योंकि उन्हें प्रशासन का डर नहीं रहेगा | इसीलिए ज्योतिषीय विद्वान् फलित करते समय वक्री शनि को अशुभ बताते हैं क्योंकि इस अवधि में सामाजिक शान्ति तो भंग होती ही है व्यावहारिक समरसता का भी अभाव रहता है | शेयर बाज़ार में कमोडिटी के सेक्टर्स के साथ-साथ क्रूड आयल, स्टील, कोल, सीमेंट्स लौह, ऑटो एवं शनिदेव से सम्बंधित वस्तुओं के सेक्टर्स में अच्छी खरीदारी-बिकवाली रहेगी | इसी अवधि के मध्य पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाएं, आँधी-तूफ़ान चक्रवातीय वर्षा की अधिकता रहेगी | मेष और सिंह राशि पर शनि की ढैया, तथा तुला, बृश्चिक एवं धनु राशि पर शाढ़ेसाती चलने के परिणामस्वरूप इन राशि वाले जातकों कुछ दिनों के लिए राहत मिलेगी इसलिए इन्हें अपने कर्मों में और अधिक सुधार लाना चाहिए ताकि आने वाला समय अनुकूल रहे | बृषभ,मिथुन, कर्क, कन्या, मकर, कुम्भ और मीन राशि वालों को सन्मार्ग पर चलते हुए सत्कर्मों की वृद्धि करनी चाहिए | जिन लोगों पर इनकी महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यांतरदशा, सूक्ष्मदशा आदि चल रही हो उन्हें विषम परिस्थियों में भी सत्यभाषण का त्याग नही करना चाहिए तभी शनि की अनुकूलता मिलेगी | वक्री शनि के अशुभ प्रबाव से बचने के लिए प्रतिदिन "ॐ नमो भगवते शनैश्चराय'' का जप करें, पीपल अथवा शमी का वृक्ष लगाएं |16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों-विद्यार्थियों पर शनि का कोई भी अशुभ प्रभाव नही रहेगा, अतः बच्चों को परीक्षा में अधिक सफलता के पाने के लिए माता, पिता एवं गुरु की सेवा तथा परोपकार करना चाहिए | पं जयगोविन्द शास्त्री 

Tuesday 8 March 2016

सूर्यग्रहण 09 मार्च को
आगामी फाल्गुन अमावस्या बुधवार 09 मार्च को लगने वाला सूर्यग्रहण भारत में खण्डग्रास एवं ग्रस्तोदय खण्डग्रास के रूप में दिखाई देगा | यह ग्रहण दक्षिण-पूर्व एशिया इंडोनेशिया, थाईलैंड, दक्षिणकोरिया, जापान, सिंगापुर एवं आस्ट्रेलिया में देखा जा सकेगा | भारत के उत्तर तथा उत्तर पश्चिमी भागों में ग्रहण दिखाई नहीं देगा अतः इन स्थानों पर ग्रहण से सम्बंधित दोष का विचार नहीं किया जायेगा इस स्थानों पर धार्मिक एवं मांगलिक कृत्य यथावत मनाये जायेंगें | ग्रहण का आरम्भ प्रातः 04 बजकर 49 मिनट पर होगा जिसके परिणाम स्वरूप इसका सूतककाल 12 घंटे पूर्व 08 मार्च की शायं 04 बजकर 49 मिनट से आरम्भ हो जाएगा | प्रातः 05बजकर 47 मिनट पर ही खग्रास प्रारम्भ हो जायेगा 07 बजकर 27 मिनट पर पूर्णग्रास दिखाई देगा | 09 बजकर 08 मिनट पर खग्रास समाप्त हो जाएगा |10 बजकर 05 मिनट पूरी तरह सूर्यदेव ग्रहण मुक्त हो जायेंगे | इस प्रकार ग्रहण की पूर्ण अवधि 05 घंटे 16मिनट की रहेगी | यह ग्रहण पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र एवं कुंभ राशि में घटित हो रहा है अतः इस राशि वाले जातकों को ग्रहण ॐ नमः शिवाय का जप अधिक से अधिक करना चाहिए | ग्रहण साध्य योग में पड रहा है इसलिए साधू-संतो एवं सन्मार्गियों के लिए अशुभ रहने वाला है | मेष, कर्क, बृश्चिक, धनु, राशि वालों के लिए ग्रहण का स्वास्थ्य, आर्थिक एवं व्यापारिक दृष्टि से शुभ रहेगा | तुला, मकर, कुंभ और मीन राशि वालों को अधिक व्यय के कारण आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा | बृषभ, मिथुन, सिंह, कन्या, राशि वालों के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार से सम्बंधित चिंताएं बढ़ायेगा | विद्यार्थी वर्ग को परीक्षा अथवा किसी भी प्रतियोगिता के भाग लेते समय गणेश एवं सरस्वती माँ का स्मरण करना चाहिए | इस ग्रहण के दुष्प्रभाव स्वरूप प्राणियों की जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमज़ोर हो सकती है अतः इससे बचने के लिए ॐ नमोऽ भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा | मंत्र का जप करना श्रेयष्कर रहेगा | गर्भवती महिलायें ग्रहण देखने से बचें अन्यथा जन्म लेने वाले जीव के क्रमिक विकास में बाधा आ सकती है | किसी भी ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए गर्भवती के उदरभाग में गाय का गोबर और तुलसी का लेप लगायें | ग्रहण के दौरान गर्भवती माताएँ-बहने पृथ्वी पर न लेटें और न ही किसी वस्तु को काटने के लिए कैंची एवं चाकू का प्रयोग करें | ग्रहण समाप्ति के पश्च्यात स्नान करके यथा शक्ति दान पुण्य करें | पं जयगोविन्द शास्त्री 

Sunday 28 February 2016

द्वै पक्षे बन्धमोक्षाय न ममेति ममेति च |
ममेति बध्यते जंतुः न ममेति प्रमुच्चते |
अर्थात बंधन और मोक्ष के लिए इस संसार में दो ही पद हैं एक
पद है 'यह मेरा नहीं है,'दूसरा पद है- 'यह मेरा है' (ममेति) |
मेरा है- इस ज्ञान से वह बंध जाता है और यह मेरा नहीं है इस
ज्ञान से वह मुक्त हो जाता है |