Sunday 29 September 2013

 !! और भी पुन्यफलदाई होता है पितृ विसर्जन के दिन श्राद्ध-तर्पण  !! पं. जयगोविन्द शास्त्री 
पितृपक्ष का पावन पर्व धीरे-धीरे समापन की ओर बढ़ रहा है ! परिवार के किसी भी मृत व्यक्ति/संबंधी की तिथि न 
मालूम हो तो पितृ विसर्जन के दिन ही श्राद्ध करें ! यह तिथि सभी के लिए ग्राह्य मानी गई है अगर सम्बंधित 
परिजन की मृत्यु की तिथि ज्ञात हो तो उस मृत्यु तिथि में ही उनका श्राद्ध करने का विधान है ! 
पितृ विसर्जन की तिथि का इतना अधिक महत्व क्यों ?
इसतिथि के 'सर्वपितृ श्राद्ध' होने के पीछे एक महत्वपूर्ण घटना है कि, देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' जो 
सोमपथ लोक मे निवास करते हैं ! उनकी मानसी कन्या, 'अच्छोदा' नाम की एक नदी के
रूप में अवस्थित हुई ! एकबार अच्छोदा ने एक हज़ार वर्षतक निर्बाध तपस्या की ! उनकी तपस्या से प्रसन्न 
होकर दिव्यशक्ति परायण देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' अच्छोदा को वरदान देने के लिए दिव्य सुदर्शन शरीर 
धारण कर आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए ! उन पितृगणों में 'अमावसु' नाम के एक अत्यंत सुंदर पितर की 
मनोहारी-छवि यौवन और तेज देखकर अच्छोदा कामातुर हो गयीं और उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं किन्तु अमावसु 
अच्छोदा की कामप्रार्थना को ठुकराकर अनिच्छा प्रकट की ! इससे अच्छोदा अति लज्जित हुई 
और स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरीं ! उसी पाप के प्रायश्चित हेतु कालान्तर में यही अच्छोदा महर्षि पराशर की 
पत्नी एवं वेदव्यास की माता बनी थी !तत्पश्यात समुद्र के अंशभूत शांतनु की पत्नी हुईं और दो पुत्र चित्रांगद तथा 
विचित्रवीर्य को जन्म दिया था ! इन्ही के नाम से कलयुग में इन्ही के नाम से 'अष्टका श्राद्ध' मनाया जाता है !
अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितरों ने सराहना की एवं वरदान दिया कि, यह अमावस्या की तिथि 
'अमावसु' के नाम से जानी जाएगी ! जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न करपाए वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्ध-तर्पण 
करके सभी बीते चौदह दिनों का पुन्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकतें हैं, 
तभी से यह तिथि 'सर्वपितृ श्राद्ध' के रूप में मानाई जाती है ! धन के अभाव में कैसे करें श्राद्ध ? 
वेद के अनुसार मृत पिता को वसुगण, दादा को रूद्रगण और परदादा को आदित्यगण कहागया है हमारे द्वारा किये 
श्राद्ध ये देव अग्नि, चन्द्र और यम के सहयोग से सम्बंधित लोकों में पहुचा देते हैं ! यदि धन-वस्त्रादि खरीदने के लिए
 रुपये न हों तो निराश होने जैसी कोईबात नहीं है - तस्मात्श्राद्धम नरो भक्त्या शाकैरपि यथाबिधिः ! 
अर्थात केवल श्रद्धा सहित शाक ही अर्पित करें और निवेदन करें की हे ! पितृ आप हमें सामर्थ्य वान बनाएँ ताकि 
भविष्य में और अच्छे ढंग से श्राद्ध-तर्पण कर सकूं ! ऐसा कहने से आप को लाखों गुना फल प्राप्त होगा ! 
गौ माता तो खिलाएं घास - पद्मपुराण के अनुसार सृष्टि सृजन के क्रम में ब्रह्मा जी ने सबसे पहले गौ कि रचना की, 
गौ माता में सभी तैतीस करोंड़ देवी-देवाताओं का वास है अतः 'कुतप काल; यानी दिन के ग्यारह बजकर छत्तीस 
मिनट से बारह बजकर चौबीस मिनट के मध्य गौओं का पंचोपचार बिधि से पूजन करके 
 उन्हें हरी घास (दूब) ही श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध के निमित्त खिलादें तब भी श्राद्ध-तर्पण का पूर्णफल प्राप्त हो जायेगा !
ब्राह्मणों के अभाव में किसे कराएं भोजन ?आज-कल श्राद्ध के दिनों में भोजन कराने हेतु ब्राह्मणों का अकाल पडता 
जा रहा है अधिकतर ब्राह्मण भी अब श्राद्ध का भोजन करने से परहेज करने करने लगे हैं ऐसे में कन्या के पुत्र को
 भोजन कराएँ यदि यह भी संभव न हो तो बैगैर पकाया हुआ अन्न मंदिर में दान करें इसके अतिरिक्त गौ
माता की पूजा-प्रदक्षिणा करके उन्ही को अपने हाथों से भोजन खिलायें तो भी अन्न का भाग सभी लोकों-पितृलोकों 
में पहुँच जायेगा ! 
श्राद्ध करने न करने से लाभ हानि - श्राद्ध करने का लौकिक अर्थ है अपने पूर्वजों और बड़ों के प्रति सम्मान 
प्रकट करना, समर्पण भाव रखना ! इसलिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने पर पितृ हमें -
''आयु पुत्रान यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम ! पशून सौख्यं धनं-धान्यं प्राप्नुयात पितृ पूजनात'' 
अर्थात आयु, पुत्र, ख्याति, स्वर्ग, बल-बुद्धि, पशु भौतिक सुखों के साथ-साथ सभी ऐश्वर्य वरदान रूप में प्रदान करते हैं ! 
श्राद्ध न करने पर -श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते ! जैसे शरीर अधिक दिनों तक भूखा रहने पर स्वयं की
 चर्बी को ही खाने लगता है उसी प्रकार पितृ भी इस पक्ष में श्राद्ध-तर्पण न पाने से अपने ही सगे सम्बन्धियों का खून
 पीने लगते हैं तथा अमावस्या के दिन श्राप देकर अपने-अपने लोक चले जाते है अतः श्राद्ध की अनेकों बिधाओं
 में से किसी भी विधा के अनुसार अपने पूर्वजो का सम्मान करें !     '''शिवसंकल्पमस्तु'''


Friday 20 September 2013


!! श्राद्ध-तर्पण से खुलते हैं सौभाग्य के दरवाजे !!
यूँ तो बद्रीनाथ धाम, पुष्कर तीर्थ, शूकर क्षेत्र, कुरुक्षेत्र, गंगा तट, काशी, सातों मोक्षदाईक पुरियां सहित अनेकों स्थानों 
पर श्राद्ध-तर्पण करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है, किन्तु गयातीर्थ में किया गया श्राद्ध-पिंडदान का फल अमोघ 
और पुण्यदाई कहागया है ऐसी मान्यता है कि गया में पिंडदान करने के पश्च्यात जीवात्मा को 
फिर श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती ! इसलिए गया को ही श्रेष्ठतीर्थ मानागया है सभी शास्त्रों-पुराणों में 
इस तीर्थ का फल सर्वाधिक बताया गया है ! शास्त्रों के अनुसार वर्षपर्यंत श्राद्ध करने के 96 अवसर आते हैं ये हैं
 बारह महीने की बारह अमावस्या, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुगके प्रारम्भ की चार तिथियाँ, मनुवों के आरम्भ 
की चौदह मन्वादि तिथियाँ, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ, 
पांच अष्टका पांचअन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने छियानबे अवसर हैं !
पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा उन्हें अक्षत और तिल मिश्रित जल अर्पित करने 
की क्रिया को तर्पण कहते हैं ! तर्पण करना ही पिंडदान करना है अतः सत्य और श्रद्धा से किए गए जिस कर्म से 
हमारे पूर्वज और आचार्य तृप्त हों वह ही तर्पण है ! वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा गया है यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, 
माता, पिता और आचार्य के प्रति एक विशेष तरह का सम्मान का भाव है ! इसी पितृयज्ञ यज्ञ के करने से प्राणी की 
वंश वृद्धि होती है और संतान को सही शिक्षा-दीक्षा भी मिलती है वह व्यक्ति पूर्णतः संपन्न होकर पृथ्वी के 
समस्त ऐश्वर्यों का भोग करता हुआ उत्तम लोक का वासी होता है वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं ब्रह्म यज्ञ, 
देव यज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ, अतिथि यज्ञ, इन पांच यज्ञों के विषय में पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार से 
वर्णन किया गया है। उक्त पांच यज्ञ में से ही एक यज्ञ है पितृयज्ञ ! इसे पुराण में श्राद्ध कर्म की संज्ञा दी गई है ! 
जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है, उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं 
उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पितृलोक चले जाते हैं किसी भी माह की जिस तिथि में 
परिजन की मृतु हुई हो इस श्राद्ध पक्ष (महालय) में उसी संबधित तिथि में श्राद्ध करना चाहियें कुछ ख़ास तिथियाँ 
भी हैं जिनमें किसी भी प्रक्रार की मृत वाले परिजन का श्राद्ध किया जाता है शौभाग्यवती यानि पति के रहते ही 
जिनकी मृत्यु हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है, एकादशी में वैष्णव सन्यासी का 
श्राद्ध चतुर्दशी में शस्त्र, आत्म हत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत लोंगों का श्राद्ध किया जाता है ! इसके अतिरिक्त
सर्पदंश,ब्राह्मण श्राप, वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु के आक्रमण से, फांसी लगाकर मृत्य, क्षय जैसे 
महारोग हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले प्राणी श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के दिन तर्पण 
और श्राद्ध करना चाहिये !जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका भी अमावस्या को ही करना चाहिए !
       पित्रों के स्वामी भगवान् जनार्दन के ही शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उतपत्ति 
हुई है इसलिए तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करना चाहिए ! श्राद्ध में ब्राह्मण भोज का सबसे 
पुण्यदायी समय कुतप, दिन का आठवां मुहूर्त 11बजकर 36मिनट से १२बजकर २४ मिनट तक का समय सबसे 
उत्तम है! शास्त्र मत है की श्राद्धं न कुरुते मोहात तस्य रक्तं पिबन्ति ते ! अर्थात जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितृ 
उनका ही रक्तपान करते हैं और साथ ही, पितरस्तस्य शापं दत्वा प्रयान्ति च !  अतः अमावस्या तक प्रतीक्षा करके
 अपने परिजन को श्राप  देकर पितृलोक चले जाते हैं !  पं जय गोविन्द शास्त्री 

Thursday 19 September 2013


ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति, ग्रहाः राज्यं हरन्ति च !
अर्थात - ग्रह अनुकूल हों तो राज्य दे देतें हैं, और
प्रतिकूल होने पर तत्काल हरण भी कर लेते हैं !!
शास्त्र भी कहते हैं कि-
अहिंसकस्य दान्तस्य धर्मार्जित धनस्य च ! नित्यं च नियमस्थस्य सदा सानु ग्रहा ग्रहाः !!
अहिंसक, जितेन्द्रिय, नियम में स्थित और न्याय से धन अर्जित करने वाले मनुष्यों ग्रहों
की सदा कृपा बरसती रहती है !

Saturday 14 September 2013


श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन (म.प्र ) में दिल्ली की संस्था ''शिवसंकल्पमस्तु''
द्वारा आयोजित विश्वशांति हेतु 'महारुद्र यज्ञ' के समाचार को स्थानीय टेलीविजन/समाचार
पत्रों ने प्रतिदिन प्रमुखता से प्रकाशित करके शिवभक्तों का उत्साह वर्धन किया ! इस सहयोग
के लिए 'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था उन सभी पत्रकार भाईयों, स्थानीय मित्रों/सहयोगियों
को साधुवाद देते हुए उनके सुखद भविष्य की कामना करती हैं !
पं जयगोविन्द शास्त्री ( संस्थापक/अध्यक्ष ) शिवसंकल्पमस्तु संस्था दिल्ली

श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन (म.प्र ) में दिल्ली की संस्था ''शिवसंकल्पमस्तु''
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पं जयगोविन्द शास्त्री ( संस्थापक/अध्यक्ष ) शिवसंकल्पमस्तु संस्था दिल्ली

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पं जयगोविन्द शास्त्री ( संस्थापक/अध्यक्ष ) शिवसंकल्पमस्तु संस्था दिल्ली

Thursday 12 September 2013


'शिवसंकल्पमस्तु' संस्था ( रजि ) दिल्ली, के संस्थापक-अध्यक्ष पं. जयगोविन्द शास्त्री
विश्वशांति का संकल्प लेकर श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन म.प्र. में महारुद्र यज्ञ
हेतु कलश यात्रा के लिए जाते हुए साथ में संस्था के सभी सदस्य और अलग-अलग
राज्यों से पधारे हुए वैदिक विद्वान ! shivasankalpmastu@gmail.com

Thursday 5 September 2013

................बाकी कुछ बचा तो महँगाई मार गई ! Friends Very Good Morning to all of you ..today You can Read My Artical in AMAR UJALA NEWS PAPER ON SHRDDA ..page !