Monday 12 October 2015

नवरात्र मे कलश स्थापन
शक्ति आराधना का मुख्यपर्व शारदीय नवरात्र 13 अक्टूबर मंगलवार से आरम्भ होकर 22 अक्टूबर गुरुवार तक चलेगा | शास्त्रों के अनुसार
नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापन का महत्व सर्वाधिक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र,  नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है, तभी तो विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है | जो आराधक नौ दिनों के लिए व्रत-संकल्प करते हैं अथवा श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ करवाते हैं उनके लिए कलश स्थापन आवश्यक है, जो लोग व्रत और पाठ दोनों करते हैं किन्तु प्रतिदिन यात्रादि करते हैं उनके लिए घटस्थापन आवश्यक नहीं है वे अपने विश्रामस्थल पर ही दीप अथवा धूप प्रज्जलित करके जप-पाठ आदि कर सकते हैं | धर्मग्रंथों के अनुसार नवरात्र के दिन सूर्योदय से 4घंटे तक के मध्य कलश स्थापन का विधान है, लेकिन यदि इसदिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग हो तो यह काल दूषित हो जाता है, ऐसे संयोग के समय अभिजित मुहूर्त के मध्य घटस्थापन का विधान है | ध्यान दें कि इसवर्ष की नवरात्र प्रतिपदा चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग से दूषित है, इसलिए प्रथम 4घंटे छोड़कर अभिजित मुहूर्त में दिन के 11 बजकर 49 मिनट से 12 बजकर 37मिनट के मध्य ही कलश स्थापन और दीप पूजन शुभ रहेगा |नवरात्र प्रतिपदा को सुबह स्नान आदि करके माँ दुर्गा, भगवान् गणेश, नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति और कलश लें | कलश सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिटटी का होना चाहिए, लोहे अथवा स्टील का कलश पूजा मे प्रयोग न करें | कलश के ऊपर रोली से ॐ तथा स्वास्तिक बनाएं |अपने पूजागृह में अथवा घर के आँगन से पोर्वोत्तर भाग में जो सुरक्षित और उचित स्थान हो वहीँ घटस्थापन सुनिश्चित करें | सर्वप्रथम भगवान् विष्णुका नाम लेकर स्वयं को जल से अभिमंत्रित करें पश्च्यात आचमन आदि करके 'ॐ भूम्यै नमः' कहते हुए पृथ्वी को स्पर्श करें विघ्नहर्ता गणेश को नमस्कार करें और पूजा स्थल से दक्षिण-पूर्व की ओर घी का दीपक जलाते हुए, 'ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः ! दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोऽस्तु ते' यह मंत्र पढ़ें | कोई अन्य मंत्र न आता हो तो दिए गए नवार्ण मंत्र के द्वारा ही हल्दी, अक्षत और पुष्प लेकर मानसिक संकल्प लें, कि माँ मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आप की आराधना 'अमुक' कार्य के लिए कर रहा-रही हूँ, मेरी पूजा स्वीकार कर ईष्टकार्य सिद्ध करो | तत्पश्च्यात कलश में जल-गंगाजल डालें और 'ॐ वरुणाय नमः' कहते हुए पूर्णरूप से भर दें | नवार्ण मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' पढ़ते हुए कलश में लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें,पश्च्यात आम का पल्लव डाले, यदि यह सुलभ न हो तो पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर का पल्लव कलश के ऊपर रख सकते हैं उसके पश्च्यात जौ अथवा कच्चा चावल जिस धातु का कलश हो उसी धातु के कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर रखें और उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखें, पूजन सामग्री के अभाव में केवल हल्दी अक्षत और पुष्प से ही माँ की आराधना करें संभव हो तो श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरुर चढ़ाएं | विद्यार्थी वर्ग 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः' मंत्र का जप करें तो प्रतियोगिता में सफल रहेंगें | जिन लोंगों पर भारी क़र्ज़ हो चुका हो वे 'या देवि ! सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ! का जप करें |जिन युवकों का विवाह न हो रहा हो, वै 'पत्नी मनोरमां देहि ! मनो वृत्तानु सारिणीम तारिणीम दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम ! का जप करके मनोनुकूल जीवन साथी पा सकते हैं ! जो कुंवारी कन्यायें हैं, तमाम प्रयासों के बावजूद जिनका विवाह न हो रहा हो वै ॐ कात्यायनि महामाये !महायोगिन्यधीश्वरी ! नन्द गोप सुतं देवि ! पतिं मे कुरु ते नमः | मंत्र का जप करके ईष्ट जीवनसाथी पा सकती हैं | पं जयगोविन्द शास्त्री