Tuesday 10 November 2015

दीपोत्सव पर करें लक्ष्मी-कुबेर को प्रसन्न
महालक्ष्मी का प्राकट्यपर्व दीपावली 11 नवंबर बुधवार को है | देवराज इंद्र के अभद्र आचरण के कारण जब महर्षि दुर्वासा ने तीनों लोकों को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया तो व्याकुल देवता त्रिदेवों की शरण में गए, महादेव ने उन्हें समुद्रमंथन का सुझाव दिया, जिसे देवता और दानव सहमत हो गए | मंथन की प्रक्रिया आरम्भ करने के लिए नागराज वासुकी को रस्सी और मंदराचल पर्वत को मथानी के रूप में उपयोग किया गया | समुद्रमंथन के मध्य कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या को श्रीमहालक्ष्मी प्रकट हुईं थीं, तभी से इसदिन को श्रीमहालक्ष्मी की आराधना एवं प्रकाशपर्व के रूप में मनाया जाता है | इसदिन श्रीमहालक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ श्रीगणेश, कुबेर नवग्रह,षोडशमातृका, सप्तघृत मातृका, दसदिक्पाल और वास्तुदेव का आवाहन-पूजन करने से वर्षपर्यंत अष्टलक्ष्मी की कृपा बनी रहती है | परिवार में मांगलिक कार्यों और सुख-शान्ति से आत्मसुख मिलता है | इसदिन घर में आरही लक्ष्मी की स्थिरता के लिए देवताओं के कोषाध्यक्ष धन एवं समृद्धि के स्वामी कुबेर का पूजन-आराधन करने से नष्ट हुआ धन भी वापस मिल जाता है, व्यापार वृद्धि हेतु कुबेर यंत्र श्रेष्ठतम् है इसे किसी भी तरह के सोने, चांदी, अष्टधातु, तांबे, भोजपत्र, आदि पर निर्मितकर पूजन करना श्रेष्ठ होता है इन्हीं वस्तुओं पर यंत्रराज श्रीयंत्र भी निर्मित कर सकते हैं ! गृहस्त लोगों के लिए महालक्ष्मी पूजन के समय सर्वप्रथम गणेश जी के लिए ॐ गं गणपतये नमः | कलश के लिए ॐ वरुणाय नमः | नवग्रह के लिए ॐ नवग्रहादि देवताभ्यो नमः | सोलह माताओं की प्रसन्नता के लिए ॐ षोडश मातृकायै नमः | लक्ष्मी के लिए ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः | कुबेर के लिए ॐ कुबेराय वित्तेश्वराय नमः | मंत्र का प्रयोग करना सर्वोत्तम रहेगा | अमावस्या के दिन अपने-अपने निवास स्थान में पूजा के लिए सायं 05 बजकर 30 मिनट से रात्रि 08 बजकर 42 मिनट तक का समय सर्वश्रेष्ठ रहेगा | इस अवधि के मध्य बुधवार दिन, प्रदोषबेला, स्थिर लग्न बृषभ, गुरु का नक्षत्र विशाखा, शुभ चौघडिया और तुला राशिगत सूर्य-चन्द्र की युति होने से दीपावली पूजन कई गुना अधिक शुभफलदायी रहेगा | साधकों के लिए ईष्ट आराधना, कुल देवी-देवता का पूजन, मंत्र सिद्धि अथवा जागृत करने, श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त, कनकधारा स्तोत्र, आदि का जप-पाठ करने के लिए उपयुक्त निशीथकाल का शुभसमय रात्रि 08 बजकर 43 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा ! तांत्रिक जगत के लिए महानिशीथ काल रात्रि 10 बजकर 32 मिनट से मध्यरात्रि 01 बजकर 34 मिनट तक रहेगा | पं जयगोविन्द शास्त्री

Sunday 8 November 2015

आरोग्य शरीर के लिए करें धन्वंतरी की पूजा 'धनतेरस'
भगवान् विष्णु के अंशावतार एवं देवताओं के वैद्य भगवान धन्वन्तरि का प्राकट्य पर्व कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है | पूर्वकाल में देवराज इंद्र के अभद्र आचरण के परिणामस्वरूप महर्षि दुर्वासा ने तीनों लोकों को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया था जिसके कारण अष्टलक्ष्मी पृथ्वी से अपने लोक
चलीं गयीं | पुनः तीनोलोकों में श्री की स्थापना के लिए व्याकुल देवता त्रिदेवों के पास गए और इस संकट से उबरने का उपाय पूछा, महादेव ने समुद्रमंथन का सुझाव दिया जिसे देवताओं और दैत्यों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया | समुद्र मंथन की भूमिका में मंदराचल पर्वत को मथानी और नागों के राजा वासुकी को मथानी के लिए रस्सी बनाया गया | वासुकी के मुख की ओर दैत्य और पूंछ की ओर देवताओं को किया गया मंथन आरम्भ हुआ, समुद्रमंथन से चौदह प्रमुख रत्नों की उत्पत्ति हुई जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान् धन्वन्तरि प्रकट हुए जो अपने हाथों में अमृतकलश लिए हुए थे | भगवान् विष्णु ने इन्हें देवताओं का वैद्य एवं वनस्पतियों और औषधियों का स्वामी नियुक्त किया | इन्हीं के वरदान स्वरूप सभी वृक्षों-वनस्पतियों में रोगनाशक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ | आजकल व्यापारियों ने धनतेरस का भी बाजारीकरण हो गया है और इसदिन को विलासिता पूर्ण वस्तुओं के क्रय का दिन घोषित कर रखा है जो सही नहीं है इसका कोई भी सम्बन्ध धन्वन्तरि से नहीं है ये आरोग्य और औषधियों के देव हैं न कि हीरे-जवाहरात या अन्य भौतिक वस्तुओं के |अतः इसदिन इनकी पूजा-आराधना अपने और परिवार के स्वस्थ शरीर के लिए करें क्योंकि संसार का सबसे बड़ा धन आरोग्य शरीर है | आयुर्वेद के अनुसार भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर और दीर्घायु से ही संभव है, शास्त्र भी कहते हैं कि 'शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्' अर्थात धर्म का साधन भी निरोगी शरीर ही है तभी आरोग्य रुपी धन के लिए ही भगवान् धन्वन्तरि की पूजा आराधना की जाती है | ऐसा माना जाता है की इस दिन की आराधना प्राणियों को वर्षपर्यंत निरोगी रखती है | समुंद मंथन की अवधि के मध्य शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी और अमावस्याको महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ | धन्वंतरी ने ही जनकल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी | इन्हीं के वंश में शल्य चिकित्सा के जनक दिवोदास हुए महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत उनके शिष्य हुए जिन्होंने आयुर्वेद का महानतम ग्रन्थ सुश्रुत संहिता की रचना की | पं जयगोविन्द शास्त्री