Thursday 21 December 2017


विधाता एवं इंद्र मुहूर्तों के मध्य 'श्रीमहारुद्राभिषेकपाठ, तत्पश्च्यात 'अग्नि' मुहूर्त में भंडारा/प्रसाद |
माँघ शुक्लपक्ष पंचमी (बसंत श्री-पंचमी) 22जनवरी सोमवार को श्रीपरली वैजनाथज्योतिर्लिंग पर ही
'श्रीरुद्राभिषेकपाठ' पश्च्यात भंडारा/प्रसाद |
ध्यानाकर्षण- रेलमार्ग द्वारा यात्रा 19 जनवरी को तथा वायुमार्ग द्वारा यात्रा 20 जनवरी को |
रेलमार्ग द्वारा यात्रा 19जनवरी को ट्रेन संख्या 12716 सचखंड एक्सप्रेस द्वारा 13:20 पर आरम्भ होकर
20जनवरी को दोपहर 14:43 पर पूर्णा जंक्सन पर समाप्त होगी, वहाँ से पैसेंजर ट्रेन संख्या 57522
पूर्णा-परली पैसेंजर द्वारा शायं 16:15 से आरम्भ होकर 19:00 बजे परली पहुँचेगी | इन्हीं ट्रेनों द्वारा
23 जनवरी को वापसी भी होगी |
वायुमार्ग द्वारा यात्रा 20 जनवरी को सुबह 08बजकर 35 मिनट पर फ्लाईट संख्या 6E 5268 इंडिगो
एअरलाईन द्वारा दिल्ली एअरपोर्ट के टर्मिनल 1डी से हैदराबाद के लिए उड़ान भरकर 10 बजकर 50 मिनट
पर पहुचेगी, वहाँ से टैक्सी द्वारा परली वैजनाथ के लिए प्रस्थान होगा | वापसी की यात्रा 23 जनवरी को
हैदराबाद से शायं 19:30 पर फ्लाईट संख्या 6E 684 द्वारा दिल्ली के लिए प्रस्थान....|

Friday 13 October 2017

अकारो ब्रह्म च प्रोक्तं यकारो विष्णुरुच्यते | धकारो रुद्ररुपश्च अयोध्यानाम राजते |
अर्थात 'अ' कार ब्रह्मा है, 'य' कार विष्णु है, तथा 'ध' कार रूद्र का स्वरूप है | भगवान् विष्णु के चक्रसुदर्शन पर विराजमान आदिपुरी 'अयोध्या' परमपिता ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव इन तीनों का समन्वित स्वरूप ही है..भगवान् राम कहते हैं कि,
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना | बेद पुरान बिदित जग जाना || 
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोउ | यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ ||
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि | उत्तर दिशि बह सरजू पावनि || 
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा |मम समीप नर पावहि बासा ||

Saturday 8 July 2017

गुरु पूर्णिमापर्व' शिष्य को आत्मवत कराने का दिन, सृष्टि के आरम्भ से ही शुरू हुई गुरु-शिष्य की परंपरा..
वर्तमान श्रीश्वेतवाराह कल्प में ब्रह्म के विग्रह रूप श्रीपरमेश्वर ने नारायण का 'विष्णु' रूप में नामकरण किया और उन्हें 'ॐ'कार रूपी महामंत्र का जप करने की आज्ञा दी | श्रीविष्णु हज़ारों वर्षतक घोर तपस्या किये, तत्पश्च्यात परमेश्वर प्रसन्न होकर उन्हें सृष्टि की उत्पत्ति, पालन एवं संहार करने पूर्णता प्रदान की | श्रीविष्णु के कमलनाल से ब्रह्मा की उतपत्ति हुई, ब्रह्मा का अन्तःकरण भी मोहरूपी अज्ञानता के कारण भटकने लगा और उनके मन में परमेश्वर की सत्ता के प्रति तरह-तरह आशंकाएं जन्म लेने लगीं | वे उन परमेश्वर की सत्ता को अपनी ही सत्ता समझने लगे | ब्रह्मा को अज्ञानता से मुक्त करने के लिए परमेश्वर ने अपने हृदय से योगियों के परमसूक्ष्मतत्व श्रीरूद्र को प्रकट किया जिन्होंने ब्रह्मा के अंतर्मन को विशुद्ध करने के लिए 'ॐ नमः शियाय' मंत्र का जप करने की आज्ञा दी | जिसके फलस्वरूप ब्रह्मा का मोहरूपी अन्धकार दूर हुआ तभी से गुरु शिष्य परम्परा आरम्भ हुई | उसके बाद ब्रह्मा के पुत्र गुरु 'वशिष्ट' सूर्यवंश के गुरु हुए, अग्नि के अंश बृहस्पति देवताओं के गुरु हुए ! भृगु पुत्र शुक्राचार्य दैत्यों के और महर्षि गर्ग यदुवंशियों के गुरु हुए | अतः प्रत्येक युग में गुरु की सत्ता परमब्रह्म की तरह कण-कणमें व्याप्त रही है ! गुरु विहीन संसार अज्ञानता की कालरात्रि मात्र ही है ! गुरु-शिष्य का सम्बन्ध केवल परमात्मा की प्राप्ति के लिए ही होता है गुरु की महिमा वास्तवमेँ शिष्य की दृष्टि से है, गुरुकी दृष्टि से नहीँ | एक गुरु की दृष्टि होती है, एक शिष्य की दृष्टि होती है और एक तीसरे आदमी की दृष्टि होती है ! गुरु की दृष्टि यह होती है कि मैँने कुछ नहीँ किया, प्रत्युत जो स्वतः-स्वाभाविक वास्तविक तत्व है, उसकी तरफ शिष्य की दृष्टि करा दी ! तात्पर्य यह कि मैँने उसी के स्वरुप का उसीको बोध कराया है, अपने पास से उसको कुछ दिया ही नहीँ | शिष्य की दृष्टि यह होती है कि गुरु ने मुझे सब कुछ दे दिया ! जो कुछ हुआ है, सब गुरु की कृपा से ही हुआ है ! तीसरे आदमी की दृष्टि यह होती है कि शिष्य की श्रद्धा से ही उसको ज्ञान हुआ है | किन्तु असली महिमा उस गुरु की ही है, जिसने शिष्य को परमात्मा से मिला दिया है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि ''गुरु बिन भवनिधि तरई न कोई | जो बिरंचि संकर सम होई || अर्थात- गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता चाहे वह ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों न हो | शास्त्रों में 'गु' का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान, और 'रु' का अर्थ उसका निरोधक, 'प्रकाश' बताया गया है | गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन से निवारण कर देता है, अर्थात अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला 'गुरु' ही है | गुरु तथा देवता में समानता के लिए कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी | 'तमसो मा ज्योतिगर्मय' अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुता है |
गुरु स्तोत्रम्
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्। 
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु: साक्षात्परब्रह्म: तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
स्थावरं जंगमं व्याप्तं यत्किंचित्सचराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
चिन्मयं व्यापियत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजित पदाम्बुज:। वेदान्ताम्बुजसूर्यो य: तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
चैतन्य: शाश्वत:शान्तो व्योमातीतो निरंजन:। बिन्दुनाद: कलातीत: तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
ज्ञानशक्तिसमारूढ: तत्त्वमालाविभूषित:। भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
अनेकजन्मसंप्राप्त कर्मबन्धविदाहिने। आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापणं सारसंपद:। गुरो: पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तप:। तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
मन्नाथ: श्रीजगन्नाथ: मद्गुरु: श्रीजगद्गुरु:। मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
गुरुरादिरनादिश्च गुरु: परमदैवतम्। गुरो: परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव॥ पं जयगोविन्द शास्त्री

Monday 22 May 2017

श्री दशरथ कृत शनि स्तोत्र संपादन- पं जयगोविन्द शास्त्री
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनि स्तोत्र मंत्रस्य, कश्यप ऋषिः,
त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः,
कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध
पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः|
कर न्यासः-
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः | मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः |
अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः | कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां
नमः | शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय
करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः |
हृदयादि-न्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः | मन्दगतये शिरसे स्वाहा |
अधोक्षजाय शिखायै वषट् | कृष्णांगाय कवचाय हुम् |
शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय वौषट् | छायात्मजाय अस्त्राय फट् |
दिग्बन्धनः- ''ॐ भूर्भुवः स्वः''........शनिदेव का ध्यान मंत्र-

नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम् |
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाभीष्टकरं वरेण्यम् ||

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च |
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ||
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च |
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै नम: |
नमो दीर्घायशुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तुते ||
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: ||
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तुते |
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ||
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते |
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ||
तपसा दग्धदेहाय नित्यं  योगरताय च |
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ||
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे |
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ||
देवासुरमनुष्याश्च  सिद्घविद्याधरोरगा: |
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ||
प्रसादं कुरु मे सौरे ! वरदो भव भास्करे |
एवं स्तुत: तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ||

Friday 12 May 2017

वेदाः सांगोपनिषदः पुराणाध्यात्मनिश्चयाः ! यदत्र परमं गुह्यं स वै देवो महेश्वरः !!
अर्थात- वेद, वेदांग, उपनिषद् पुराण और आध्यात्मशास्त्रके जो सिद्धांत हैं तथा
उनमें जो भी परम रहस्य है, वह मेरे परमेश्वर केदारेश्वर ही हैं |

Sunday 5 February 2017

मित्रों प्रणाम ! मेरे परमेश्वर श्रीमहाकाल की असीम कृपा से बसंत पंचमी के पावन अवसर पर श्रीरामेश्वरम ज्योतिर्लिंगधाम (तमिलनाडु) में समुद्रतट से 2किलोमीटर दूर स्टीमर के द्वारा हिन्द महासागर में श्रीमहारुद्राभिषेक के समय के कुछ चित्र,