!! उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु करें नाग पूजा !! 'नाग पंचमी ११ अगस्त '
नाग हमारे शरीर में मूलाधार चक्र के आकार में स्थित हैं एवं उनका फन सहस्रासार चक्र है ! पुराणों में नागोत्पत्ति
के कई वर्णन मिलते हैं ! लिंग पुराण के अनुसार श्रृष्टि सृजन हेतु प्रयासरत ब्रह्मा जी उग्र तपस्या करते हुए हताश
होने लगे तो क्रोधवश उनके कुछ अश्रु पृथ्वी पर गिरे वहीँ पर अश्रुबिंदु सर्प के रूप में उत्पन्न हुए ! बाद में यह ध्यान
में रखकर कि इन सर्पों के साथ कोई अन्याय न हो तिथियों का बंटवारा करते समय भगवान सूर्य ने इन्हें पंचमी तिथि
का अधिकारी बनाया तभी से पंचमी तिथि नागों की पूजा के लिए विदित है इसके बाद ब्रह्मा जी ने अष्टनागों अनन्त,
वासुकि, तक्षक, कर्कोटक,पद्म, महापद्म, कुलिक, और शंखपाल की सृष्टि की, और इन नागों को भी ग्रहों के बराबर
शक्तिशाली बनाया ! इनमें अनन्त नाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक भौम के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के,
महापद्म शुक्र के, कुलिक और शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं ! ये सभी नाग भी सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही
भूमिका निभाते हैं ! इनके सम्मान हेतु गणेश और इन्हें रूद्र यज्ञोपवीत के रूप में, महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु
जी शैय्या रूप में सेवा में लेते हैं ! पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शेषनाग स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं !
गृह निर्माण, पितृ दोष और कुल की उन्नति के लिए नाग पूजा का और भी अधिक महत्व है ! इनकी पूजा
आराधना से सर्पदंश का भय नहीं रहता ! नाग पंचमी के दिन नाग पूजन और दुग्ध पान करवाने का विशेष महत्व है !
पूजा में ''ॐ सर्पेभ्यो नमः" अथवा ॐ कुरु कुल्ले फट स्वाहा ! कहते हुए अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार गंध, अक्षत,
पुष्प, घी, खीर, दूध, पंचामृत, धुप दीप नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए ! पूजन के पश्च्यात इस मंत्र से प्रणाम करें
!! नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु, ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः !!
जो नाग, पृथ्वी, आकाश, स्वर्ण, सूर्य की किरणों, सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं।
वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं इसप्रकार नागपंचमी के दिन सर्पों की पूजा करके
प्राणी सर्प एवं विष के भय से मुक्त हो सकता है पं. जयगोविंद शास्त्री
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