Thursday 26 June 2014


शक्ति आराधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र'
पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाली दस महाविद्याओं की आराधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' कल से आरंभ हो रहे हैं पालनहार
श्री विष्णु के शयन काल की अवधि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के मध्य जब देव प्राण क्षीण हो जायेंगें और पृथ्वी पर रूद्र, वरुण, यम
आदि के द्वारा नाना प्रकार के रोग, बाढ़ सुखा आदि का प्रकोप रहेगा तो इन संभावित विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में माँ दुर्गा की उपासना की जाती
है शास्त्रों के अनुसार सतयुग में चैत्र शुक्लपक्षीय नवरात्र, त्रेता में आषाढ़ शुक्लपक्षीय नवरात्र, द्वापर में माघ शुक्लपक्षीय और कलयुग में आश्विन शुक्लपक्षीय
यानी शारदीय नवरात्र में माँ शक्ति की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है, यह नवरात्र आषाढ़ शुक्लपक्ष प्रतिपदा से नवमी तक रहता है दशमी के दिन
पारणा होती है और एकादशी को यज्ञदेव श्री विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए जाते हैं ! मार्कंडेय पुराण में उक्त चारों नवरात्रों में
शक्ति की आराधना के साथ-साथ अपने ईष्ट आराधना का भी विशेष महत्व बताया गया है ! घर में वास्तुदोष हो, पारिवारिक कलह हो, वंशवृद्धि अथवा संतान
प्राप्ति में बाधा आ रही हो शत्रुओं द्वारा प्रताणना हो रही हो, कोर्ट कचहरी के मामलों का भय हो या किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का भय सता रहा हो
तो ऐसे समय माँ दुर्गा की आराधना गुप्तरूप से की जाती है इस नवरात्र में साधक को अपनी समस्त योजनाएं एवं पूजा संबंधी बिधि तथा मंत्र आदि गुप्त रखने
चाहिये ! विद्यार्थी वर्ग के लिए इसकाल में मां सरस्वती की आराधना भी विशेष फलदायी रहती है ।
शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में 'रुरु' नामक महाबली दैत्य के पुत्र दुर्ग ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके वरदान स्वरुप चारों वेद प्राप्त किया जिसके
परिणाम स्वरुप वह अजेय होकर उपद्रव करने लगा ! उस समय वेदों के नष्ट हो जाने से देवता एवं ब्राह्मण पथभ्रष्ट होगये और जप-तप, दान, यज्ञ का भाव होने
लगा जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही ! सभी देवता माँ पराम्बा की शरण में गए और माँ से पृथ्वी की सारी विपत्तियों के निदान का निवेदन किया कि,
माँ उस 'दुर्ग' नामक महादैत्य का वध करो ! देवताओं के स्तवन से माँ प्रसन्न होकर उस दुर्ग नामक महादैत्य के वध का संकल्प लिया और अपने शरीर से काली,
तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बागला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट किया और महादैत्य दुर्ग की
सौ अक्षौहिणी सेना नष्ट करके अपने त्रिशूल द्वारा उस दुर्ग नामक महादैत्य का विनाश कर देवताओ को भय मुक्त किया जिसने फलस्वरूप  इनका
नाम 'दुर्गा' पड़ा |तभी से उपरोक्त दस महाविद्याओं की साधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' के रूप में मनाया जाने लगा ! 28 जून से 07 जुलाई तक चलने वाले इस
नवरात्र में यदि आप स्नान ध्यान करके एकांत में शुद्ध आसन पर विराजते हुए केवल ॐ दुं दुर्गायै नमः मंत्र का जप करेंगें तो मंत्र के प्रभाव से आपकी समस्त
परेशानियाँ नष्ट हो जायेंगी ! पं जयगोविंद शास्त्री

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ज्योतिर्लिंग पर महारुद्राभिषेक पाठ करने का निर्णय लिया गया है जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! अपनी उपस्थिति के लिए हमें सूचित करें ! पं जयगोविंद शास्त्री