Monday 22 September 2014


कन्या पूजन से ही प्रसन्न होती हैं माँ - पं जयगोविन्द शास्त्री
नवरात्र व्रत के नवें दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना करने के पश्च्यात ही व्रत समापन के सन्दर्भ में हवन और कन्या पूजन किया जाता है ! इसदिन हवन
सामग्री के रूप मे अनेकों पदार्थों का प्रयोग भक्तगण करते हैं किन्तु कुछ सामग्री ऐसी भी होती हैं जिनसे सकामभाव से हवन करके आप अपने सभी मनोरथ
पूर्ण कर सकते हैं ! इसके लिए जिन लोंगों पर क़र्ज़ अधिक हो गया हो घर में अन्न की कमी हो या जो बेरोजगार हो उन्हें नवरात्र के नवें दिन हवन करते
समय सामग्री में कमलगट्टे की प्रधानता रखनी चाहिए ! जिनको अपने मकान, फैक्ट्री में, दुकान अथवा अन्य प्रतिष्ठान में जादू-टोने या नकारात्मक ऊर्जा
की परेशानी हो उन्हें हवन सामग्री में गूगल-दशांग का अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए ! शिक्षा-प्रतियोगिता में आशातीत सफलता, मुकदमों में
अपेक्षित परिणाम पाने और शत्रुओं पर विजय के उद्देश्य पूर्ति के लिए अक्षत, जौ और शहद का प्रयोग अधिक मात्रा में करना अच्छे परिणाम देगा !
हवन के पश्च्यात करें कन्या पूजन - नवरात्र में नौ दिनों के व्रत में यदि कोई त्रुटि या कमी रह जाय तो कन्या पूजन के पश्च्यात उसका प्रायश्चित्त पूर्ण
हो जाता है कन्या श्रृष्टिसृजन श्रंखला का अंकुर होती हैं ये पृथ्वी पर प्रकृति स्वरुप माँ शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जैसे श्वांस लिए बगैर आत्मा नहीं
रह सकती वैसे ही कन्याओं के बिना इस श्रृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती ! कन्या प्रकृति रूप ही हैं अतः वह सम्पूर्ण है ! शास्त्रों के अनुसार
सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौ दुर्गा, व्यस्थापक रूपी नौ ग्रह, त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाकर चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली नौ प्रकार की भक्ति ही संसार
संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं ! जिस प्रकार किसी भी देवता के मूर्ति की पूजा करके हम सम्बंधित देवता की कृपा प्राप्त कर लेते हैं उसी प्रकार
मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करके साक्षात भगवती की कृपा पा सकते हैं ! इन कन्याओं में माँ दुर्गा का वास रहता है शास्त्रानुसार कन्या के जन्म
का एक वर्ष बीतने के पश्च्यात कन्या को कुवांरी की संज्ञा दी गई है अतः दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति,
चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की
कन्या सुभद्रा के समान मानी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात शक्ति का स्वरूप मानी जाती है ।
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि "कुमारीं पूजयित्या तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्" अर्थात दुर्गापूजन से पहले भी कुवांरी कन्याका पूजन करें तत्पश्च्यात ही
माँ दुर्गा का पूजन आरंभ करें और पारणा के भक्तिभाव से की गई एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग, तीन की चारों पुरुषार्थ,
और राज्यसम्मान, पांच की पूजा से -बुद्धि-विद्या, छ: की पूजा से कार्यसिद्धि, सात की पूजा से परमपद, आठ की पूजा अष्टलक्ष्मी और नौ कन्या की पूजा से
सभी एश्वर्य की प्राप्ति होती है। पुराण के अनुसार इनके ध्यान और मंत्र इसप्रकार हैं
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम् । नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि । पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
कुमार्य्यै नम:, त्रिमूर्त्यै नम:, कल्याण्यै नमं:, रोहिण्यै नम:, कालिकायै नम:, चण्डिकायै नम:, शाम्भव्यै नम:, दुगायै नम:, सुभद्रायै नम: !!
कन्याओं का पूजन करते समय पहले उनके पैर धुलें पुनः पंचोपचार बिधि से पूजन करें और तत्पश्च्यात सुमधुर भोजन कराएं और प्रदक्षिणा करते हुए यथा
शक्ति वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें ! इस तरह नौरात्र पर्व पर कन्या का पूजन करके भक्त माँ की कृपा पा सकते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री

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