Monday 4 May 2015

अमावस्या का क्या महत्व..?
अमावस्या अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धारुपी नैवेद्य अर्पित करने की महत्वपूर्ण तिथि है | श्रीश्वेतवाराहकल्प में इसतिथि का निर्धारण पूर्णरूप से, पितृ श्राप से मुक्ति, अशुभ कर्मों के प्रायश्चित, उग्रकर्म जैसे मारण, मोहन, उच्चाटन एवं स्तम्भन आदि के लिए किया गया है | इस तिथि को सूर्य-चन्द्रमा एक ही राशि में आ जाते हैंजिसके फलस्वरूप चंद्र क्षीण एवं अदृश्य रहते है | मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार किसी भी मांगलिक कार्य के लिए सूर्य, चंद्र और बृहस्पति का स्वस्थ तथा शुभ प्रभावी रहना अति आवश्यक माना गया है | चूँकि अमावस्या को चंद्र का उदय नहीं होता, इसीलिए इसतिथि को शुभकार्यों के लिए वर्ज्य माना गया है | श्राद्ध-तर्पण के लिए अति पुण्यदायी इस तिथि के विषय में एक पौराणिक कथा है कि, देवताओं के पितृगण, जो पितृलोक में सोमपथ और अग्निष्वात नाम से जाने जाते हैं उनकी मानसी कन्या अच्छोदा ने एक बार देवताओं के एक हज़ार वर्षतक घोर तपस्या की | उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं के समान अतिसुंदर पितृगण पुष्प मालाओं तथा सुगन्धित पदार्थों से सुसज्जित होकर अच्छोदा को वरदान देने के लिए प्रकट हुए, ये सभी पितृगण युवा अमिततेजस्वी, परम बलशाली और कामदेव के समान सुंदर थे | इनमें  अमावसु नाम के एक सुंदर पितर को देख कर अच्छोदा अतिशय कामातुर होकर प्रणय निवेदन की याचना करने लगीं किन्तु अमावसु ने अच्छोदा की याचना पर अनिच्छा प्रकट कर कहा कि मेरी हाड़-मांस से निर्मित इस नश्वर शरीर में कोई रुचि नहीं हैं आप मुझे क्षमा करें | अमावसु के इस वैराज्ञपूर्ण जवाब से अच्छोदा लज्जित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं | तभी आकाश से देवता और पितर गण अमावसु के अनुपम धैर्य की सराहना करने लगे और सर्वसम्मति से उस तिथि को अमावसु के नाम पर रख दिया जिसे हम अमावस्या के नाम से जानते हैं | अमावसु का धर्म अक्षुण रहा और यह तिथि पितृगणों को अति प्रिय हुई | सभी देवतावों और पितृगणों ने वरदान दिया कि, जो भी प्राणी इस तिथि को
अपने पितरों को श्राद्ध-तर्पण करेगा वह सभी पापों एवं श्रापों से मुक्त हो जाएगा | उसके घर परिवार में सबप्रक्रार की सुख शांति रहेगी | पं जयगोविन्द शास्त्री

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सभी शिव भक्तों के लिए सुखद समाचार है, कि आगामी 19 और 20 सितंबर को श्री ओंकारेश्वर
ज्योतिर्लिंग पर महारुद्राभिषेक पाठ करने का निर्णय लिया गया है जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! अपनी उपस्थिति के लिए हमें सूचित करें ! पं जयगोविंद शास्त्री